Wednesday, October 23, 2024

इस चमत्कारी मंदिर की वजह से पड़ा था नैनीताल शहर का नाम, जानिये पूरा इतिहास

वैसे तो हमारे देश में कई ऐसे मंदिर हैं जिन्हें उनकी दिव्यता और अलौकिक इतिहास के लिए जाना जाता है. तो आज आपको हम एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे देवी मां की 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है . ये प्रसिद्ध मंदिर है नैनीताल में मौजूद नैनी झील के उत्तरी किनारे पर सिद्ध शक्ति पीठ नैना देवी का मंदिर. इस पवित्र मंदिर में देवी को उनकी दो आंखों से जाना जाता है. मां सती के नैन की वजह से ही झील का नाम नैनीताल पड़ा है. आपको बता दें कि 1880 में भूस्खलन में यह मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया था लेकिन बाद में फिर से इस मंदिर का निर्माण किया गया.

क्या है इतिहास

नैना देवी मंदिर बेहद खूबसूरत लोकेशन पर मौजूद है. मंदिर के गर्भग्रह में तीन देवताओं की मूर्तियां भी हैं, वहीँ मंदिर के बीच में दो आंखें हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये मां सती के नयन हैं और यही दो आंखें नैना देवी का प्रतिनिधित्व करते हैं,. बाईं ओर माता काली देवी और दाईं ओर भगवान गणेश भी विराजमान हैं. मां नैना देवी का मुख्य मंदिर दो शेर की मूर्तियों से घिरा है.हिंदू धर्मग्रंथ में नैना देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है. 51 शक्ति पीठों में से एक के रूप में माना जाने वाला ये मंदिर, वो जगह है जहां देवी सती की आंखें गिरी थीं. इसलिए यहां देवी की आंखों की पूजा की जाती है.
15वीं ईस्वी में निर्मित, नैना देवी मंदिर की मूर्ति एक भक्त मोती राम शाह द्वारा 1842 में स्थापित की गई थी लेकिन 1880 में भारी भूस्खलन के बाद, नैना देवी मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था. लेकिन स्थानीय लोगों की अटूट आस्था के चलते 1883 में इस मंदिर का फिर से निर्माण किया गया.

इन त्योहारों पर रहता है भक्तों का जमावड़ा

इस मंदिर में नंदा अष्टमी के दौरान, नैना देवी मंदिर में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है, जहां भारी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं. यह नंदा अष्टमी उत्सव नैना देवी मंदिर के बाहर 8 दिनों तक चलता है. मेले के अंतिम दिन देवी नंदा देवी की बहन नैनी देवी के साथ प्रतिमा विसर्जन का समारोह मनाया जाता है. अन्य पवित्र त्योहारों जैसे नवरात्रि, चैत्र मेला जैसे मौकों पर भी नैना देवी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त आते हैं.

नैनी झील से जुड़ा इतिहास

नैना देवी मंदिर एक झील के किनारे है. इस झील को नैनीताल के नाम से जाना जाता है. नैनी झील में आप बोटिंग का लुत्फ़ उठा सकते हैं. इस झील को लेकर कई ऐतिहासिक और धार्मिक तथ्य जुड़े हुए हैं. एक ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार लगभग साल 1839 में, एक यूरोपीय व्यवसायी ने नैनी झील की खोज की थी. वहीं हिंदू ग्रंथों के अनुसार स्कंद पुराण में इस झील का नाम त्रिऋषि सरोवर से प्रचलित है. कहा जाता है कि पौराणिक काल में इसी जगह तीन महान ऋषि ध्यान किया करते थे और उन्होंने एक गड्ढा खोदा, जो पानी से भर गया और इसके बाद इसे नैनी झील और त्रिऋषि सरोवर के नाम से जाना जाने लगा.

नैनी झील की पौराणिक कथाएं

इस झील को कई लोग देवी सती की मृत्यु की कहानी से भी जोड़कर देखते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शिव ने सुदर्शन चक्र का उपयोग करते हुए देवी सती के शरीर को 52 हिस्सों में काटा, तब उनकी आंख इसी जगह पर गिरी थी, जिसके बाद इस झील को नैनीताल के नाम से जाना जाने लगा. आज भी कई लोग इस झील को नैनी देवी माता के नाम से जानते हैं. जिसके बारे में हमने आपको पहले ही बताया है.
ब्रिटिश काल में अंग्रेजों की यह सबसे पसंदीदा जगहों में से एक थी. यहां का मौसम इतना अच्छा था कि अंग्रेजों ने पूरा शहर बसा दिया था.नैनीताल का माल रोड आज भी अंग्रेजों की याद ताजा कर देता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नैनी यानि नैनीताल झील सात पहाड़ियों से घिरी हुई है. उत्तर पश्चिम में नैनी पीक, दक्षिण पश्चिम में टिफिन प्वाइंट और उत्तर में बर्फ से ढकी चोटियों से घिरी है.

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