‘Laat Saheb’ Holi, शाहजहांपुर में होली की तैयारियों को लेकर प्रशासन चर्चा में आ गया है. यहां पारंपरिक ‘लाट साहब’ होली जुलूस के मार्ग में स्थित मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया गया है और रंगों के त्योहार से पहले कड़े सुरक्षा उपाय किए गए हैं. इस बार होली का त्योहार शुक्रवार की नमाज के साथ मनाया जाएगा.
18वीं शताब्दी की परंपरा के अनुसार, शाहजहांपुर में होली की शुरुआत एक बैलगाड़ी पर बैठे ब्रिटिश राजा ‘लाट साहब’ का रूप धारण किए एक व्यक्ति पर जूते फेंकने से होती है.
‘Laat Saheb’ Holi के लिए पुलिस ने किए है कड़े इंतेजाम
जुलूस के मार्ग पर बैरिकेड्स लगाए गए हैं और स्थानीय प्रशासन द्वारा कई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं.
पुलिस अधीक्षक राजेश एस ने पीटीआई को बताया, “शहर में 18 होली जुलूस हैं, जिनमें दो प्रमुख ‘लाट साहब’ जुलूस शामिल हैं. सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, बड़े जुलूस को तीन ज़ोन और आठ सेक्टरों में विभाजित किया गया है, जिसमें लगभग 100 मजिस्ट्रेट तैनात हैं.”
उन्होंने कहा, इसके अलावा, पुलिस ने संभावित उपद्रवियों को रोकने के लिए 2,423 लोगों के खिलाफ निवारक कार्रवाई की है.
एसपी ने कहा, “सुरक्षा तैनाती में 10 पुलिस सर्कल अधिकारी, 250 सब-इंस्पेक्टर, लगभग 1,500 पुलिसकर्मी और प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी की दो कंपनियां शामिल हैं.”
पुलिस अधिकारी ने चेतावनी देते हुए कहा कि किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी, “हम सभी से शांतिपूर्ण तरीके से होली मनाने का आग्रह करते हैं. हमारा पुलिस बल उपद्रवियों पर कड़ी नज़र रखेगा और पूरे कार्यक्रम की लाइव निगरानी की जाएगी.”
मस्जिदों को तिरपाल से ढका गया है
नगर आयुक्त विपिन कुमार मिश्रा ने कहा, “हमने जुलूस के मार्ग पर लगभग 350 सीसीटीवी और स्टिल कैमरे लगाए हैं. इसके अलावा, मार्ग पर लगभग 20 मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया गया है ताकि वे रंगों से रंगे न जाएँ.”
उन्होंने बताया कि सुरक्षा के लिए मस्जिदों और बिजली के ट्रांसफार्मरों के पास बैरिकेड भी लगाए गए हैं.
कचरे उठाने जुलू के साथ चलेगी दो ट्रैक्टर ट्रॉलियां
“जूते, फटे कपड़े और अन्य मलबे को इकट्ठा करने के लिए जुलूस के साथ दो ट्रैक्टर ट्रॉलियां भी होंगी. जुलूस में एक स्काई लिफ्ट भी शामिल होगी और वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए 16 पुलिस पिकेट पॉइंट पर कैमरे लगाए जाएंगे और इसकी लाइव निगरानी की जाएगी.”
1728 से खेली जा रही है ‘Laat Saheb’ Holi
स्वामी सुखदेवानंद कॉलेज के इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने इस परंपरा की शुरुआत 1728 से मानी, जब शाहजहांपुर छोड़कर फर्रुखाबाद गए नवाब अब्दुल्ला खान होली के दिन शहर लौटे थे.
उन्होंने बताया, “वापसी के बाद उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ होली खेली, जो एक वार्षिक परंपरा बन गई. 1930 में जुलूस में ऊंट गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाने लगा. समय के साथ इसका स्वरूप बदल गया.”
खुराना ने आगे बताया कि 1990 के दशक में जुलूस को रोकने के लिए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, लेकिन कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह एक पुरानी परंपरा है और इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
आयोजन समिति के सदस्य हरनाम कटिहार ने जुलूस के मार्ग और रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से बताया.
उन्होंने बताया, “जुलूस कुंचा लाला से शुरू होकर फूलमती मंदिर तक पहुंचता है, जहां ‘लाट साहब’ की पोशाक पहने एक व्यक्ति प्रार्थना करता है. इसके बाद जुलूस पुलिस थाने पहुंचता है, जहां ‘लाट साहब’ पुलिस से पिछले साल में हुए अपराधों के बारे में सवाल करते हैं.”
कटिहार ने कहा, “परंपरा के अनुसार, पुलिस रिश्वत के तौर पर शराब की एक बोतल और कुछ नकदी देती है. इसके बाद जुलूस सात किलोमीटर के रास्ते से गुजरता है और वापस कुंचा लाला पहुंचता है. पूरे मार्च के दौरान, प्रतिभागी ‘लाट साहब’ पर जूते से हमला करते हैं.”
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