Hindenburg Research Report: हिंडनबर्ग रिसर्च ताज़ा रिपोर्ट में फिर एक बार भारत की राजनीति और स्टॉक मार्किट में भूचाल ला दिया है. इस बार भी निशाने पर अडानी समूह और प्रधानमंत्री है. लेकिन इस बार सवाल सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) पर है. सेबी जिसका मुख्य काम पूंजी बाजार को विनियमित करना है. ताकि व्यापारियों और निवेशकों के हितों की रक्षा हो सके, स्टॉक एक्सचेंज में निष्पक्षता बढ़े.
माधवी और धवल बुच का क्या है अडानी से कनेक्शन?
इसके अलावा हिंडनबर्ग-अडानी मामले में सेबी वो संस्था थी जिसपर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आरोपों की जांच की जिम्मेदारी भी थी. यानी इस बार की हिंडनबर्ग रिसर्च ने सवाल जांच एजेंसी के निष्पक्ष जांच करने को लेकर ही उठाए है. ऐसे में सबसे पहला सवाल ये उठता है कि जांच एजेंसी की जांच कौन करेगा. तो इस मामले में पहले भी जेपीसी की मांग होती रही है.
Hindenburg Research Report: राहुल गांधी ने पीएम मोदी को लेकर क्या कहा?
ताजा रिपोर्ट के बाद विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कहा कि सेबी प्रमुख के बारे में नए दावे बड़े पैमाने पर हितों के टकराव हैं, जिसकी जांच की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सच्चाई’ के सामने आने से डरते हैं और नहीं चाहते कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) इस मामले की जांच करे.
उन्होंने कहा, “अगर निवेशक अपनी मेहनत की कमाई खो देते हैं, तो कौन जिम्मेदार होगा- प्रधानमंत्री मोदी, सेबी अध्यक्ष या गौतम अडानी?… नए और बहुत गंभीर आरोप सामने आए हैं, क्या सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर इस मामले की स्वत: संज्ञान लेगा? अब यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मामले की जांच जेपीसी द्वारा किए जाने के खिलाफ क्यों हैं”
सेबी के चीफ की कंसल्टेंसी फर्म का क्या है मामला?
यानी इस बार किसी भी सरकारी एजेंसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. खासकर तब जब हिंडनबर्ग रिसर्च ने रविवार रात किए पोस्ट में यह भी दावा किया कि बुच ने अपनी प्रतिक्रिया में उनकी रिपोर्ट के इस आरोप की पुष्टि की कि ऑफशोर फंड उनके पति धवल बुच के बचपन के दोस्त, अडानी समूह में निदेशक द्वारा चलाया जा रहा था, जो हितों का एक बड़ा टकराव था.
बुच दंपति के हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर दी गई प्रतिक्रिया के बाद, रविवार को हिंडनबर्ग रिसर्च ने X पर देर रात तक कई पोस्ट कर दावा किया कि सेबी प्रमुख माधबी बुच और उनके पति धवल बुच के संयुक्त बयान ने और भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जिन्हें स्पष्ट करने की आवश्यकता है. शोध फर्म ने बुच से उन सभी लोगों की क्लाइंट सूची जारी करने के लिए कहा, जो उनके साथ उनके ऑफशोर निवेशों पर कंसल्ट कर रहे थे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे उन फर्मों से संबंधित हैं या नहीं, जिन्हें सेबी द्वारा विनियमित किया जाता है.
इतना ही नहीं , हिंडनबर्ग अनुसंधान के अनुसार सेबी प्रमुख माधबी बुच की भारतीय कंसल्टेंसी फर्म, जो अभी भी 99 प्रतिशत उनकी स्वामित्व में है, ने वित्तीय वर्षों (’22, ’23, और ’24) के दौरान 23.985 मिलियन रुपये कंसल्टेंसी से कमाए हैं. ये वो समय है जब माधवी सेबी के अध्यक्ष के रूप में काम कर रही थीं.
हिंडनबर्ग रिसर्च की जांच जेपीसी से होनी चाहिए?
अडानी-हिंडनबर्ग विवाद में सबसे ज्यादा नुकसान छोटे निवेशकों का हुआ था ऐसे में विपक्ष का इस मामले में जांच की मांग करना गलत तो नहीं है. हलांकि इस पूरे मामले में एक राष्टवादी एंगल भी जोड़ा जा रहा है. अदानी समूह ने अपने बयान में कहा है कि विदेशी ताकते देश की अर्थव्यवस्था को तोड़ने के लिए इस तरह के आरोप लगा रही है.
अगर ऐसा है भी तो इन विदेशी ताकतों को जवाब देने के लिए सरकार को विपक्ष की जेपीसी की मांग मान लेनी चाहिए ताकी जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए.
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