माफिया से नेता बने अतीक अहमद को उम्र कैद की सजा हो गई. प्रयागराज के एमपी,एमएलए कोर्ट ने उसे उमेश पाल अपहरण मामले में दोषी पाया और उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई लेकिन इस सजा के मिलने से पहले जो तमाशा टीवी चैनलों पर चला. वो शर्मनाक था. गुजरात के साबरमती जेल से प्रयागराज के नैनी जेल तक अतीक अहमद की गाड़ी का पीछा कर मीडियाकर्मी सिर्फ ये दिखा रहे थे कि गाड़ी कभी भी पलट सकती है, अतीक अहमद खौफ में है…..उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई है….उसकी बहन वकील के साथ जेल वैन का पीछा कर रही है…ऐसा दिखाया जा रहा थी कि यूपी पुलिस कभी भी गाड़ी पलटा सकती है. योगी के राज में खौफ में हैं अपराधी. इन तमाम बातों के जोश में सरकार और मीडिया दोनों ये भूल गए थे कि फेक एनकाउंटर अपराध है. इसकी शाबाशी नहीं सज़ा मिलती है.
एनकाउंटर का जश्न मानाने लगा है मीडिया
नवंबर 2019 में, हैदराबाद में एक युवा पशु चिकित्सक का अपहरण कर गैंगरेप के बाद उसकी हत्या कर दी गई. आरोपियों ने सबूत मिटाने के लिए लड़की का शरीर जला दिया. इस खबर ने देश भर को गुस्से से भर दिया. इस घटना के 8 दिन बाद पुलिस ने उसी NH-44 के पास, ठीक घटनास्थल पर जहां लड़की का शव मिला था, बलात्कार के आरोपियों को दिसंबर 2019 में मार गिराया.
साइबराबाद पुलिस ने कहा कि चारों ने मौके की जांच के दौरान भागने की कोशिश की. पुलिस से हथियार छीन लिए इसलिए आत्मरक्षा में उन्हें मारना पड़ा. एनकाउंटर के बाद जनता ने पुलिस की खूब तारीफ की. कुछ जगहों पर लोगों ने पुलिस पर फूल भी बरसाए. मीडिया ने तो इसे इंसाफ ही करार दे दिया.
अब चलते हैं मध्य प्रदेश. यहां 31 अक्टूबर, 2016 को प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के आठ सदस्यों को जो भोपाल सेंट्रल जेल तोड़ के भागे थे पुलिस ने शहर के बाहरी इलाके में एक मुठभेड़ में मार गिराया. इस मुठभेड़ को लेकर काफी सवाल भी उठे. मुठभेड़ के पहले और बाद के रिकॉर्ड किए वीडियो ने मुठभेड़ के ‘फर्जी’ होने का शक पैदा कर दिया. इस बार भी मीडिया ने आरोपियों की मौत का जश्न मनाया और जनता ने पुलिस की वाहवाही की.
यूपी में हर तेरह दिन में होता है एक एनकाउंटर
अब चलिए लौटते हैं यूपी पर , तो अतीक अहमद मामले में जिस घटना का सबसे ज्यादा जिक्र हुआ वो थी विकास दुबे की गाड़ी पलटने की घटना. 2020 में कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर विकास दुबे को पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था. उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, स्पेशल टास्क फोर्स उसे उज्जैन से कानपुर वापस ला रही थी, तभी उसकी गाड़ी पलट गई और विकास दुबे ने भागने का प्रयास किया. पुलिस ने यह भी कहा कि भागते समय दुबे ने पुलिस पर गोली भी चलाई. इस घटना को भी मीडिया ने इसे ऐसे पेश किया कि सीएम योगी के राज में कोई अपराधी बच नहीं सकता.
एक आंकड़ों के मुताबिक यूपी पुलिस ने मार्च 2017 से अब तक 178 सूचीबद्ध अपराधियों को मार गिराया है. यानी पिछले छह सालों में तकरीबन हर 13वें दिन एक अपराधी को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया है. अब सवाल उठता है कि इतने एनकाउंटर करने वाली पुलिस पर सवाल क्यों नहीं उठते. तो जनाब सवाल उठाने का काम जिस मीडिया का है वो मीडिया तो सरकार को शाबाशी देने में लगी है. हर एनकाउंटर के बाद योगी का खौफ, योगी का इंसाफ, बेखौफ उत्तर प्रदेश, यूपी में अपराधियों में खौफ जैसी खबरों की भरमार हो जाती है.
मीडिया को खून का चस्का लग गया है
कुल मिलाकर देखें तो ऐसा लग रहा कि जैसे मीडिया को खून का चस्का लग गया है. एनकाउंटर को मीडिया ने जैसे कानूनी मान्यता ही दे दी है. न कोर्ट….न सुनवाई….सीधे इंसाफ….इन सभी एनकाउंटर में एक बात खास थी कि इनको लेकर पुलिस पर सवाल नहीं उठाए गए. बस एनकाउंटर का जश्न मनाया गया. मीडिया ने बड़े-बड़े ब्रेकिंग के साथ बताया कि राज्य में कानून का इकबाल कायम हो गया है. अपराधी थर थर कांप रहे हैं. राजनीति और अर्थव्यवस्था की खबरों पर सरकार से सवाल पूछने के नाम पर थर-थर कांपने वाली मीडिया एनकाउंटर जैसी घटनाओं को पूरी बहादुरी से दिखाती है.
खबरों के ज़रिए नफरत फैलाने का काम कर रहा है मीडिया
इतना ही नहीं मीडिया हत्या जैसे अपराधों में भी उसको ज्यादा तवज्जो देती है जिसमें 2 समुदायों के बीच नफरत को हवा मिल सके. जैसे श्रद्धा के मर्डर में 35 टुकड़े करने वाला आफताब महीना भर,24 घंटे सुर्खियों में छाया रहा. जबकि दिल्ली के पांडव नगर में पत्नी और बेटे ने पिता के टुकड़े कर फ्रिज में रखने वाली खबर को उतनी सुर्खियां नहीं मिली. इसी तरह नजफगढ़ के मितरांव गांव के साहिल गहलोत जिसने प्रेमिका का शव ढाबे के फ्रिज में छुपाया था उसे भी वो सुर्खियां नहीं मिल पाई. यानी सीधे कहें तो मीडिया अब सरकार की भोंपू हो गई है. उसे आरोपी की गाड़ी का पलटना और एनकाउंटर इंसाफ जैसा लगने लगा है और अपराध भी सरकार की सहूलियत के हिसाब से ही नज़र आते हैं. कुछ मामलों में तो जिस तरह की रिपोर्टिंग की जा रही है उसको देख कर ये कहना गलत नहीं होगा कि मीडिया के मुंह खून लग गया है.
राजनीतिक खबरों को ना दिखा पाने की बेबसी, अपराध की खबरों में सनसनी पैदा पूरा की जा रही है
राजनीतिक खबरों को ना दिखा पाने की जो बेबसी है वो अपराध की खबरों में सनसनी पैदा कर पूरा कर रही है. सनसनी भी ऐसी जिसमें न न्याय का पक्ष होता है न सवाल. होते हैं तो सिर्फ लाल खून से पैदा हुआ उन्माद जो इंसान की मौत को सिर्फ रोमांच पैदा करने के लिए इस्तेमाल करता है. ऐसा लगने लगा है कि आपराधिक वारदातों के कवरेज में मीडिया की भूमिका आदमखोर जैसी हो गई है जो अपराध को रोमांच के साथ परोस कर सिर्फ उन्माद पैदा कर रही है. मीडिया की इसी रोमांचक कहानियों का नतीजा है कि अब अपराधी अपराध को रिकॉर्ड कर वायरल भी करने लगे हैं.
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