Tuesday, July 22, 2025

विवाह तय करते समय रखें ये सावधानियां, अन्यथा जीवन भर पड़ेगा रोना!

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शास्त्रों के अनुसार विवाह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार है. व्यक्ति के जन्म के पश्चात मृत्यु तक कुल 16 संस्कार संपन्न होते हैं. विवाह पूर्ण 16 संस्कार में से एक प्रमुख संस्कार होता है. यह व्यक्ति के जीवन में बहुत सी खुशियां भर देता है और कभी-कभी यही विवाह बहुत बड़े दुख का कारण भी बन जाता है. इसका कारण है कि विवाह तय करते समय हम कुछ बातों को अनदेखा कर देते हैं या उनके बारे में नहीं जानते हैं. विवाह में कुंडली मिलान के अलावा भी कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों है जिनका हमें पालन करना चाहिए अन्यथा अनिष्ट होने की संभावना बनती है.

पुत्र का विवाह करने के बाद 1 साल के अंदर दूसरे पुत्र या पुत्री का विवाह कभी भी नहीं करना चाहिए.
यदि आपके दो जुड़वा पुत्र संतान है तो कभी भी दोनों जुड़वा भाइयों का विवाह या मुंडन कम एक ही दिन में नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से अनिष्ट होने की संभावना रहती है.
यदि एक मां के गर्भ से उत्पन्न दो कन्याओं का विवाह 6 महीने के भीतर हो जाता है तो 3 वर्ष के भीतर किसी भी एक कन्या पर घोर संकट आता है. इसलिए कभी भी दो कन्याओं का विवाह 6 माह के भीतर न करें.
किसी भी जातक का विवाह वर्ष, महीने, तिथि या नक्षत्र के अंतिम चरण में नहीं करना चाहिए. यह शुभ फलदाई नहीं होता है.
पहली संतान का विवाह कभी भी उसके जन्म मास जन्म नक्षत्र और जन्मदिन को नहीं करना चाहिए.
जन्म से सम वर्षों में स्त्री का विवाह तथा विषम वर्षों में पुरुष का विवाह अत्यंत शुभ होता है यदि इस विपरीत करते हैं तो दोनों के लिए स्वास्थ्य में प्रतिकूल फल प्राप्त होंगे.
जिन व्यक्तियों की कुंडली में अशुभ ग्रहों की दशाएं चल रही है और उनका विवाह संपन्न हो जाए तो विवाह से पूर्व भी उन अशुभ ग्रहों की शांति कर लेनी चाहिए.अन्यथा विवाह के बाद जीवन सुख में नहीं रहता है.
वर-कन्या की एक नाड़ी हो तो आयु की हानि, सेवा में हानि होता है. आदि नाड़ी वर के लिए, मध्य नाड़ी कन्या के लिए और अन्त्य नाड़ी वर-कन्या दोनों के लिए हानि कारक होती है. अतः इसका त्याग करना चाहिए.
यदि वर और कन्या एक ही नक्षत्र में उत्पन्न हुए हों तो नाड़ीदोष नहीं माना जाता है. अन्य नक्षत्र हो तो विवाह वर्जित है. वर और कन्या की जन्म राशि एक हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो अथवा जन्म नक्षत्र एक हो जन्म राशि भिन्न हो अथवा एक नक्षत्र में भी चरण भेद हो तो नाड़ी और गणदोष नहीं माना जाता है.

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