वॉशिंगटन: डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति ने अमेरिका की सुरक्षा को लेकर सहयोगी देशों को ही डरा दिया है। सहयोगी देशों में अब अमेरिका की 'किल स्विच' नीति पर जोरदार चर्चा हो रही है। खासकर जब डोनाल्ड ट्रंप भारत पर अमेरिकी एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने के लिए दबाव बना रहे हैं, उस वक्त सवाल उठ रहे हैं कि क्या 'किल स्विच' को लेकर आशंका पहले ही साफ कर लेने की जरूरत नहीं है? अमेरिका अपनी इस नीति का इस्तेमाल फाइटर जेट्स को अपंग बनाने के लिए कर सकता है। 'किल स्विच' की वजह से ही पुर्तगाल ने एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने के फैसले को कैंसिल करने के संकेत दिए हैं।
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप पहले से ही नॉर्थ अटलांटिक संधि संगठन (Nato) और यूरोपीय सहयोगियों की आलोचना करते रहे हैं। लेकिन उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिका की विदेश नीति की किताब को ही पलट दिया है। उन्होंने रूस का साथ देने का फैसला किया है और यूरोप को अपनी सुरक्षा खुद करने के लिए कहा है। यूरोपीय देशों में अब अमेरिका को लेकर विश्वास टूटता जा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने वाइट हाउस में यूक्रेनी राष्ट्रपति को जिस अंदाज में बेइज्जत किया और जैसे उन्होंने यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोकी। उससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या एफ-35 लड़ाकू विमान का इस्तेमाल करना किसी और देश के लिए सही फैसला होगा?
क्या एफ-35 में किल स्विच है?
डोनाल्ड ट्रंप के फैसलों से यूरोपीय देश काफी परेशान है। जिनमें से एक है डेनमार्क। डोनाल्ड ट्रंप ने डेनमार्क के ग्रीनलैंड द्वीप पर आक्रमण करने और उसे अपने कब्जे में लेने की धमकी दी है। ऐसी आशंका है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप वाकई ग्रीनलैंड पर कब्जा करने का आदेश देते हैं। तो सबसे पहले अमेरिका दूर से डेनमार्क के एफ-35 लड़ाकू विमान को अपंग बना देगा। यानि एफ-35 किसी काम का नहीं रहेगा। किल स्विच के बारे में कहा जाता है कि अगर F-35 लड़ाकू विमान को ऑपरेट करने वाला कोई देश डोनाल्ड ट्रंप की आज्ञा का पालन नहीं करता है। तो संयुक्त राज्य अमेरिका इन किल स्विच को दूर से ही ट्रिगर कर सकता है ताकि ये युद्धक विमान बेकार हो जाएं। हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा कोई किल स्विच मौजूद नहीं है जो F-35 को उड़ान भरने में असमर्थ बना सके।
हालांकि एफ-35 लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन और साथ ही एक ऑपरेटर स्विस सरकार ने सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि किल स्विच जैसा कुछ नहीं है। लेकिन एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि किल स्विच हो या न हो, ऐसे कई तरीके हैं जिनसे संयुक्त राज्य अमेरिका इन युद्धक विमानों को दूर से ही बेकार कर सकता है। सबसे पहली बात तो ये कि ये लड़ाकू विमान मेटिनेंस के लिए अमेरिका पर निर्भर होते हैं। दूसरा उनके कंपोनेंट्स और सॉफ्टवेयर को लगातार अमेरिका ही अपडेट करता है। इसके अलावा डेटा और खुफिया नेटवर्क भी अमेरिका से ही जुड़ा है। तीसरा एफ-35 लड़ाकू विमान को बेचते वक्त अमेरिका जो शर्तें तय करता है, उनमें ऐसे ऐसे प्रावधान शामिल किए जाते हैं कि अमेरिका की मंजूरी के बिना ये फाइटर जेट किसी लायक नहीं रहते हैं।
कैसे किल स्विच के बिना भी एफ-35 को बना सकता कबाड़?
भले ही ऐसे किसी किल-स्विच के फिलहाल कोई सबूत नहीं मिले हैं, ताकि अमेरिका दूर से ही उसे दबाकर एफ-35 लड़ाकू विमान को बेकार सक सके, लेकिन इन विमानों को बेकार करने के कई तरीके हैं। फिलहाल एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट का इस्तेमाल 16 देश कर रहे हैं। इन देशों को मिलाकर करीब 1000 एफ-35 फाइटर जेट एक्टिव हैं। इन देशों में ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, इजरायल, इटली, नीदरलैंड, डेनमार्क और जापान जैसे देश शामिल हैं। इजरायल को छोड़कर बाकी सभी देशों के ऊपर एफ-35 फाइटर जेट के इस्तेमाल को लेकर कई तरह की शर्तें शामिल हैं। द एविएशनिस्ट में डेविड सेन्सियोटी और स्टेफानो डी'उर्सो ने लिखा है कि शर्तों की वजह से एफ-35 का इस्तेमाल करना किसी के लिए संभव नहीं है।
अमेरिकी बिक्री नीति के मुताबिक F-35 खरीदारों को "अमेरिकी नीति के आधार पर महाद्वीपीय संयुक्त राज्य अमेरिका (CONUS) के बाहर स्वतंत्र परीक्षण ऑपरेट करने की इजाजत नहीं है। यूनाइटेड स्टेट्स गवर्नमेंट (USG) सुरक्षा नियमों और राष्ट्रीय रक्षा नीति (NDP) के मुताबिक अमेरिकी नागरिकों को महत्वपूर्ण अमेरिकी टेक्नोलॉजी की सुरक्षा के लिए काम करने होंगे"। इसका मतलब यह है कि इन देशों को न सिर्फ अपने सभी मिशनों के लिए अमेरिका की इजाजत की जरूरत होगी, बल्कि वे अमेरिका के टेक्निकल कर्मियों के बिना इन फाइटर जेट्स का मरम्मत भी नहीं कर सकते हैं। भारत एफ-35 फाइटर जेट को लेकर अमेरिकी शर्तों को जानता है और माना जा रहा है कि अगर भारत इसे खरीदने का फैसला करता है तो निश्चित तौर पर इन शर्तों को लेकर बातचीत होगी।