Sunday, June 1, 2025

क्या राष्ट्रपति की आपत्ति पर बदला जा सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

- Advertisement -

President Draupadi Murmu , नई दिल्ली : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह मांगी है कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर फैसले लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए तय समयसीमा देश की सर्वोच्च अदालत के द्वारा तय की जा सकती है. यह कदम तब उठाया गया जब 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों को राष्ट्रपति को तीन माह में निपटाना होगा.

President Draupadi Murmu : राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे हैं 14 सवाल 

संविधान के तहत राष्ट्रपति किसी कानूनी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकते हैं. यह राय बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका संवैधानिक महत्व बहुत ज्यादा होता है. सुप्रीम कोर्ट को यह सलाह संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दी जाती है. राष्ट्रपति ने यह संदर्भ 13 मई को भेजा और इसमें कुल 14 कानूनी प्रश्न शामिल किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दो बार राष्ट्रपति की राय मांगने पर जवाब देने से इनकार किया है.

राष्ट्रपति ने कब-कब मांगी है सुप्रीम कोर्ट से सलाह ?

1993 में जब राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद में मंदिर की पूर्वस्थिति पर राय मांगी गई थी, जिसे कोर्ट ने धार्मिक और संवैधानिक मूल्यों के विपरीत मानते हुए खारिज कर दिया था.

इससे पहले 1982 में पाकिस्तान से आए प्रवासियों के पुनर्वास संबंधी कानून पर राय मांगी गई थी, लेकिन बाद में वह कानून पारित हो गया और कोर्ट में याचिकाएं दायर हो गईं, जिससे राय अप्रासंगिक हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि अनुच्छेद 143 का इस्तेमाल किसी पहले से दिए गए निर्णय की समीक्षा या पलटने के लिए नहीं किया जा सकता है.

1991 में कावेरी जल विवाद पर कोर्ट ने कहा था कि फैसला देने के बाद उसी विषय पर राष्ट्रपति की राय मांगना न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ है. यदि सरकार चाहे तो वह पुनर्विचार याचिका या क्यूरेटिव याचिका दायर कर सकती है, जो कि न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है. ज्यादातर प्रश्न 8 अप्रैल के फैसले से जुड़े हैं, लेकिन अंतिम कुछ प्रश्नों में सुप्रीम कोर्ट की स्वयं की शक्तियों पर भी सवाल उठाए गए हैं.

प्रश्न 12 में पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को पहले यह तय करना चाहिए कि कोई मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है या नहीं, ताकि उसे बड़ी पीठ को भेजा जा सके?

इसी तरह प्रश्न 13 में पूछा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के प्रयोग की सीमा क्या है. प्रश्न संख्या 14 में पूछा गया है कि केंद्र-राज्य विवादों की मूल सुनवाई का अधिकार किसके पास है. सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास या अन्य अदालतों के पास भी?
बता दें यह मामला उन परिस्थितियों से उपजा है, जब राज्यपाल विपक्ष-शासित राज्यों के विधेयकों को लंबित रखते हैं या अस्वीकृत करते हैं. तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि यह केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन का मुद्दा है और समय सीमा जरुरी है. राष्ट्रपति को निर्देश मिलने से सरकार को यह संवैधानिक असंतुलन लगा. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और आर वेंकटरमणी ने भी इसे कार्यपालिका की गरिमा के खिलाफ बताया .

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news