फैमिली कोर्ट का आदेश खारिज, HC ने कहा- पत्नी की गरिमा से समझौता नहीं
दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि पति की आय में वृद्धि और जीवन-यापन की लागत में बढ़ोतरी परिस्थितियों में अहम बदलाव है। ऐसे में पत्नी को मिलने वाला भरण-पोषण भी बढ़ाया जाना चाहिए।
फैमिली कोर्ट का आदेश खारिज
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की बेंच ने 60 साल से अधिक उम्र की एक महिला को राहत देते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उनकी भरण-पोषण राशि बढ़ाने की याचिका को ठुकरा दिया गया था।
क्या है मामला?
याचिका के अनुसार पति-पत्नी की शादी वर्ष 1990 में हुई थी। तलाक की कार्यवाही के दौरान 2009 में पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में 5,000 रुपये प्रतिमाह दिए जाने का आदेश हुआ। वर्ष 2012 में यह राशि बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दी गई। बाद में पत्नी ने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और बढ़े हुए खर्चों का हवाला देते हुए इसे 30,000 रुपये मासिक करने की मांग की। उनका कहना था कि पति की आय में काफी बढ़ोतरी हुई है, जिसे फैमिली कोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया।
पति की आय और कोर्ट की टिप्पणी
2012 में पति की शुद्ध आय करीब 28,700 रुपये थी, जो अब पेंशन के रूप में 40,000 रुपये से अधिक हो चुकी है। हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने पति की मौजूदा आय पर ध्यान नहीं दिया और यह पत्नी के अधिकारों की अनदेखी है।
CGHS कार्ड पर भी अदालत की सख्ती
कोर्ट ने यह भी गंभीर चिंता जताई कि पति ने पत्नी का नाम अपने सीजीएचएस कार्ड से हटा दिया था। अदालत ने कहा कि यह वैवाहिक रिश्ते से जुड़ा अहम अधिकार है और इसे केवल इसलिए नहीं छीना जा सकता कि पत्नी सरकारी अस्पताल में इलाज कराती है।
अदालत ने आदेश दिया कि पति दो माह के भीतर पत्नी का नाम कार्ड में बहाल करे और उसकी प्रति पत्नी को सौंपे।
हाई कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट ने कहा कि पति और पत्नी दोनों वरिष्ठ नागरिक हैं और भले ही वे तीन दशक से अलग रह रहे हों, कानून की नजर में वे अब भी पति-पत्नी हैं। अदालत ने पति की उम्र और संसाधनों को देखते हुए भरण-पोषण राशि को 10,000 रुपये से बढ़ाकर 14,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने टिप्पणी की—"यह बढ़ोतरी संतुलित है और इससे पति-पत्नी दोनों की परिस्थितियों को देखते हुए न्यायसंगत संतुलन बना रहेगा।