छत्तीसगढ़ के बस्तर की नैना सिंह धाकड़ की कहानी पहाड़ जैसे हौसले की कहानी है. ऐसे साहसी लड़की की कहानी जिसे न समाज हरा पाया न आर्थिक तंगी. उसने अपने हौसले से माउंट एवरेस्ट को नाप लिया. बस्तर गर्ल नैनासिंह धाकड़ को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु के हाथों तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया.छत्तीसगढ़ की पहली महिला माउंटेनियर नैना के लिए ये सफर आसान नहीं था. विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई नैना ने सातवीं क्लास से ही शुरु कर दी थी.
बचपन रहा मुश्किलों से भरा
बस्तर गर्ल नैनासिंह धाकड़, जिसने 2 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया, एक साधारण परिवार में जन्मी बच्ची थी. बस्तर के टाकरगुड़ा में जन्मी नैना सिंह ने अपने जीवन में संघर्ष की शुरूआत तीन साल की उम्र में ही कर दिया था. उन्हें बचपन से नाटक और संगीत का शौक था. वह स्टेज परफॉरमेंस करती थी. लेकिन बिना बाप की बेटी के लिए समाज वैसे ही बहुत सख्त नियम रखता है. पिता की कमी और सामाजिक दबवा के कारण नैना को संगीत और नाटक छोड़ना पड़ा. पांचवीं कक्षा में पहुंची तो पढ़ाई छोड़ने की नौबत आ गई लेकिन बचपन से ही साहस की धनी नैना ने हौसला नहीं हारा और वह आगे बढ़ती रही. जब 7वीं कक्षा में आई तो पढ़ाई की राह में आर्थिक तंगी आ गई. नैना ने इसका सामना दूसरे छोटे बच्चों को पढ़ाकर किया. ट्यूशन की फीस से नैना ने अपनी फीस भरी और पढ़ाई जारी रखी. नैना का खेल की तरफ रुझान 7वीं कक्षा से हुआ. उसने हॉकी की शुरुआत 7वीं कक्षा में ही की. लेकिन 6 महीने में हॉकी खेलना छोड़ना पड़ा. 9वीं क्लास में आई तो स्कॉउट एंड गाइड ज्वाइंन किया. 11 वीं में आते ही NSS से जुड़ गई. NSS में रहते हुए दूसरे खेल खास कर जूडो से जुड़ी. हिमाचल प्रदेश में महिलाओं को काम के दौरान रोजमर्रा की चीजें उठाकर पहाड़ों पर चढ़ते देख तो वहां से प्रेरणा माउंटेनियरिंग मिली.
माउंटेनियरिंग को जीवन बनाने का फैसला किया
पहाड़ चढ़ने का नैना का फैसला ऐसा हुआ कि फिर उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मां ने भी माउंटेनियरिंग के लिए हामी भर दी थी. फिर शुरु हुआ संघर्ष जो 10 साल तक चला. और फिर वो मंज़िल आई जिसका नैना को बेसब्री से इंतेज़ार था.
कैसी नापा माउंट एवरेस्ट
31 मार्च 2021 बस्तर से पहले बस फिर ट्रेन से शुरु किया सफर रायपुर से वारणसी और गोरखपुर के रास्ते नेपाल तक ले पहुंच. काठमांडु में सात दिन तक ट्रेनिंग की. काठमांडु बेस कैंप ने ट्रेनिंग के दौरान कुंभु ग्लेशियर में वास्तविक बर्फ की दीवार से सामना हुआ. शाकाहारी होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ा. कुंभु ग्लेशियर के बाद कैंप वन पहुंची. फिर वहां से 14 घंटे दूर कैंप 2 तक पहुंची. 8 मई से कैंप शुरु किया. 23 मई 2021 को माउंट लोह्से पहुंची, इस चोटी को विश्व की चौथी सबसे ऊंची चोटी माना जाता है. फिर 1 जून 2021 को माउंट एवरेस्ट (8884 .86 मीटर) पर चढाई की और अपने नाम के धाकड़ शब्द को साकार कर दिया.