Thursday, April 24, 2025

MP election 2023: मामा का पत्ता साफ? न टिकट मिला न हुई बतौर मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा

क्या मध्य प्रदेश विधानसभा 2023 का चुनाव शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक सफर का अंत है? क्या प्रदेश में जीत हो या हार मामा इस बार बीजेपी के मुख्यमंत्री नहीं होंगे? क्या मामा को ठिकाने लगाने के लिए दिल्ली ने तैयार किया है बड़ा प्लान? क्या गुजरात लॉबी की पसंद नहीं है शिवराज? शिवराज सिंह चौहन को लेकर इसी तरह की चर्चाएं मध्य प्रदेश में आम है.

अब तक नहीं मिला शिवराज सिंह चौहान को टिकट

मध्य प्रदेश चुनावों के एलान से पहले ही बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की दो लिस्ट जारी कर दी है. पार्टी ने अब तक 230 सदस्यीय सदन के चुनाव के लिए 78 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है, जिसमें अगस्त में जारी की गई 39 नामों की पहली सूची भी शामिल है.
हलांकि अभी बहुत सीटों पर नाम की घोषणा बाकी है जिसमें बुधनी की सीट भी शामिल है जहां से 2018 में शिवराज सिंह ने चुनाव लड़ा था. लेकिन बीजेपी की दूसरी सूची आने के बाद ये अटकलें तेज हो गई की पार्टी ने शिवराज सिंह को कह दिया है कि अब और नहीं. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि पार्टी ने अपनी दूसरी लिस्ट में जो 7 सांसदों जिसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों के नाम शामिल है, के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें शिवराज को टक्कर देने उतारा गया है.

बीजेपी ने मैदान में उतारे तीन मुख्यमंत्री चेहरे

सोमवार (25 सिंतबर) को एक चौका देने वाले फैसले में, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते सहित सात सांसदों को मध्य प्रदेश के चुनावी मैदान में उतारने का एलान किया. इनके अलावा लिस्ट में एक नाम ऐसा भी था जिसने सबक हैरान कर दिया. बीजेपी ने अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी विधानसभा चुनाव लड़ने का आदेश दिया.
ऐसा माना जा रहा है कि यदि बीजेपी जीतती है तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री बनने की दौड़ के लिए मैदान खोल दिया है, जिसके लिए तोमर, पटेल और विजयवर्गीय अब प्रबल दावेदार हैं. ये तीनों न सिर्फ शिवराज सिंह चौहान के समकालीन हैं, बल्कि शिवराज सिंह के विरोधी भी माने जाते है. कहा जाता है कि पिछले 18 वर्षों में इन लोगों ने अपनी राजनीतिक चालों से राज्य में शिवराज सिंह के प्रभाव को धीरे-धीरे कमजोर करने का काम भी किया है.
इतना ही नहीं शिवराज सिंह के करीबी सूत्रों के मुताबिक, दूसरे उम्मीदवारों की सूची में हाई-प्रोफाइल नामों ने खुद मुख्यमंत्री को भी आश्चर्यचकित कर दिया.
दिलचस्प बात यह है कि जिन सांसदों के नामों की घोषणा सोमवार को की गई, उन्हें पार्टी के फैसले के बारे में पहले ही सूचित कर दिया गया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान को इसकी भनक भी नहीं लगने दी गई थी.
आपको याद होगा हाल ही में, तोमर, पटेल, कुलस्ते और विजयवर्गीय ने बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा के आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाई थी, जिसने इन तीनों ने 230 विधानसभा क्षेत्रों और 10,000 किमी से अधिक की यात्रा की. इस यात्रा की कमान पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में थी.

अबतक नहीं हुई शिवराज सिंह के बतौर मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा

इस बार अबतक बीजेपी की दो लिस्ट आ गई है. कोई कह रहा है बीजेपी ने 3 सीएम चेहरे मैदान में उतारे है तो कोई 5 चेहरों की बात कर रहा है. लेकिन शिवराज सिंह के चेहरे पर सस्पेंस बरकरार है. बीजेपी न अबतक न शिवराज सिंह के टिकट की घोषणा की है न हीं उन्हें बीजेपी का मुख्यमंत्री चेहरा बताया है. जबकी 2018 में 177 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में ही बुधनी सीट से शिवराज सिंह चौहान के नाम का ऐलान कर दिया गया था. साथ ही ये बी साफ किया गया था कि मामा ही कुर्सी संभालेंगे.

प्रधानमंत्री ने सीएम के नाम और काम दोनों को किया नज़र अंदाज

सीएम शिवराज सिंह के बतौर मुख्यमंत्री सफर के अंत का एक संकेत तब भी देखने को मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर की जन आशीर्वाद यात्रा के समापन के अवसर पर भोपाल में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए न तो मुख्यमंत्री के नाम का उल्लेख किया और न ही राज्य सरकार के प्रदर्शन का उल्लेख किया. अपने पूरे भाषण के दौरान उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोला.

मजे की बात यह है कि स्वयं मुख्यमंत्री भी, जो अन्यथा अपनी उपलब्धियों का बखान करने के लिए जाने जाते हैं, उस दिन अपनी योजनाओं और काम की चर्चा करते नज़र नहीं आए. उनका ध्यान विभिन्न वर्गों के लिए चुनाव पूर्व बोनस की घोषणा करने पर था. जिसे देख ऐसा लगा की सीएम को अब सबसे ज्यादा भरोसा मुफ्त सुविधाओं पर हैं, खासकर महिलाओं के लिए प्रमुख लाडली बहना योजना पर.

केंद्रीय नेतृत्व को शिवराज पर दाव लगाने से लग रहा है डर

इस सब बातों और राज्य में शिवराज सरकार पर लगे “50% कमीशन की सरकार” के विपक्षी आरोपों और हाल फिलहाल में की जा रही फ्री वाली घोषणाओं का असर जनता के दिलों दिमाग पर सही नहीं हो रहा है. कर्नाटक की तरह ही “50% कमीशन की सरकार” की गूंज ने मतदाताओं के दिलों दिमाग में जगह बनाने लगी है. वहीं सामाजिक कल्याण के नाम पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सभी वादों से भी जनता नाराज है. उसका मानना है कि “इतने वर्षों में आपने हमारे बारे में चिंता क्यों नहीं की? यह सब अब क्यों, जब चुनाव नजदीक है?”
शायद ये ही वजह है कि बीजेपी अब शिवराज पर दाव लगा अपना नुकसान नहीं करना चाहती. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि अगर चौहान पर अब लगाम नहीं लगाई गई तो मध्य प्रदेश भी कर्नाटक की राह पर जा सकता है. शायद इसलिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान भी संभाल ली है.

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