Sunday, June 22, 2025

Triple talaq: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कानून का बचाव किया, कहा- यह प्रथा विवाह संस्था के लिए ‘घातक’

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Triple talaq: केंद्र ने तीन तलाक के खिलाफ अपने 2019 के कानून का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह प्रथा विवाह संस्था के लिए “घातक” है.

सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में सरकार ने क्या कहा

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस प्रथा को खारिज किए जाने के बावजूद, यह समुदाय के सदस्यों के बीच “इस प्रथा से होने वाले तलाक की संख्या को कम करने में पर्याप्त निवारक के रूप में काम नहीं कर पाया है”.
सरकार ने यह भी कहा कि संसद ने विवाहित मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के माध्यम से तलाक दिए जाने से बचाने के लिए कानून पारित किया है.
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, “यह विवादित अधिनियम विवाहित मुस्लिम महिलाओं के लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता के बड़े संवैधानिक लक्ष्यों को सुनिश्चित करने में मदद करता है और गैर-भेदभाव और सशक्तिकरण के उनके मौलिक अधिकारों को पूरा करने में मदद करता है.”

दो मुस्लिम संगठनों ने कानून के खिलाफ दायर की थी याचिका

दो मुस्लिम संगठनों, जमीयत उलमा-ए-हिंद और समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने अदालत से कानून को “असंवैधानिक” घोषित करने की मांग की है.
जमीयत ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि एक धर्म के लिए तलाक के एक खास तरीके को अपराध घोषित करना जबकि दूसरे धर्म में विवाह विच्छेद और तलाक को नागरिक कानून के तहत अपराध घोषित करना भेदभाव पैदा करता है, जो अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है.

Triple talaq पर क्या है नया कानून

22 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दा) को असंवैधानिक घोषित किया था. 23 अगस्त, 2019 को कोर्ट ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की वैधता की समीक्षा करने पर सहमति जताई. कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल तक की कैद हो सकती है.
केंद्र की भाजपा नीत एनडीए सरकार ने 30 जुलाई, 2019 को उच्च सदन में तीन तलाक विधेयक को 99 मतों के पक्ष में और 84 मतों के विपक्ष में पारित किया था. इस प्रथा को खत्म करना भाजपा का एक प्रमुख वादा था.
राज्यसभा में अपर्याप्त संख्या के कारण कानून पारित करने में संघर्ष करने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने कई अध्यादेश जारी किए थे.
कानून के अनुसार, तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिला अपने पति से अपने और अपने आश्रित बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने की हकदार है. इसके अलावा, वह अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी भी मांग सकती है.

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