सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पटना उच्च न्यायालय के जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली बिहार सरकार की याचिका को स्थागित कर दिया.
न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि वह इस मामले को लंबित रखेगे क्योंकि उच्च न्यायालय इस पर 3 जुलाई को सुनवाई करने वाला है. इसने कहा कि यदि किसी कारण से उच्च न्यायालय में रिट याचिका नहीं ली जाती है, तो वह 14 जुलाई को वो इस मामले पर विचार करेगा.
बुधवार को जस्टिस संजय करोल ने खुद को मामले से अलग कर लिया था
बुधवार को जब मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच के सामने आया तो जस्टिस करोल ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. न्यायमूर्ति करोल, जो 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति से पहले पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे, ने कहा कि उन्होंने इस मामले को उच्च न्यायालय में निपटाया था.
बिहार सरकार ने कोर्ट में क्या कहा
बिहार सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने तर्क दिया कि सर्वेक्षण के लिए संसाधन पहले ही जुटा लिए गए थे और उच्च न्यायालय को इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी. उन्होंने तर्क दिया की राज्य नीतियों के प्रभावी निर्माण के लिए “परिमाण योग्य डेटा” प्राप्त करने के लिए ये प्रक्रिया आवश्यक है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
हालांकि, पीठ ने कहा कि उसे यह निर्धारित करना होगा कि क्या सर्वेक्षण के नाम पर राज्य जातिगत जनगणना कराने की कोशिश कर रहा है. जस्टिस बिंदल ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “बहुत सारे दस्तावेज़ दिखाते हैं कि यह केवल जनगणना है.”
इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि, “हम निर्देश देते हैं कि इस याचिका को 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाए. यदि किसी भी कारण से रिट याचिका की सुनवाई अगली तारीख से पहले शुरू नहीं होती है तो हम याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील द्वारा दी गई दलीलों को सुनेंगे.”
पटना हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था
आपको बता दें पटना उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया कहा था कि जाति आधारित सर्वेक्षण एक जनगणना के समान है जिसे करने के लिए राज्य सरकार के पास कोई शक्ति नहीं है.
“प्रथम दृष्टया, हमारी राय है कि राज्य के पास जाति-आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है, जिस तरह से यह अब फैशन में है, जो एक जनगणना की राशि होगी, इस प्रकार संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा.
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा था कि इस मामले में निजता का अधिकार भी एक मुद्दा है.
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