कांग्रेस के शशि थरूर Shashi Tharoor ने गुरुवार को पार्टी नेतृत्व के कुछ सदस्यों के साथ मतभेद होने की बात स्वीकार की, लेकिन कहा कि नीलांबुर निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव के कारण वह इन पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने से बचेंगे.
कांग्रेस नेतृत्व में कुछ लोगों के साथ मेरे मतभेद हैं-थरूर
पत्रकारों से बात करते हुए शशि थरूर ने कांग्रेस, उसके सिद्धांतों और कार्यकर्ताओं के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता पर जोर दिया. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार उन्होंने कहा कि उन्होंने 16 साल तक पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ काम किया है और वे उन्हें अपना करीबी दोस्त और भाई मानते हैं.
पीटीआई ने थरूर के हवाले से कहा, “हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व में कुछ लोगों के साथ मेरे मतभेद हैं. आप जानते हैं कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं, क्योंकि उनमें से कुछ मुद्दे सार्वजनिक डोमेन में हैं और आप (मीडिया) द्वारा रिपोर्ट किए गए हैं.”
Shashi Tharoor ने मतभेद राष्ट्रीय या राज्य नेतृत्व में किस से हैं साफ नहीं किया
समाचार एजेंसी एएनआई ने उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया, “कांग्रेस पार्टी, इसके मूल्य और इसके कार्यकर्ता मेरे लिए प्रिय हैं. मैं पिछले 16 वर्षों से उनके साथ काम कर रहा हूं और मैंने उनकी प्रतिबद्धता, समर्पण और आदर्शवाद देखा है.” कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनके मतभेद राष्ट्रीय या राज्य नेतृत्व के साथ थे. तिरुवनंतपुरम के सांसद ने संकेत दिया कि वह उपचुनाव के नतीजों के बाद उन मतभेदों के बारे में बात कर सकते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि वह उपचुनाव अभियान का हिस्सा क्यों नहीं थे, तो थरूर ने कहा कि उन्हें इसके लिए आमंत्रित नहीं किया गया था, जैसा कि पिछले साल वायनाड में हुए उपचुनाव सहित अन्य उपचुनावों के दौरान होता था. वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, “मैं वहां नहीं जाता, जहां मुझे आमंत्रित नहीं किया जाता.” लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि पार्टी कार्यकर्ताओं के अभियान के प्रयास सफल हों और नीलांबुर से यूडीएफ उम्मीदवार की जीत हो.
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कही ये बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी हालिया बातचीत के बारे में थरूर ने कहा कि यह ऑपरेशन सिंदूर के सिलसिले में प्रतिनिधिमंडलों की विभिन्न देशों की यात्राओं और वहां हुई चर्चाओं के बारे में थी.
उन्होंने कहा, “किसी घरेलू राजनीति पर चर्चा नहीं हुई.” प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए केंद्र के निमंत्रण को स्वीकार करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि जब वे संसद की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष बने थे, तब उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि उनका ध्यान भारत की विदेश नीति और उसके राष्ट्रीय हित पर है, न कि कांग्रेस और भाजपा की विदेश नीति पर. “मैंने अपनी लाइन नहीं बदली है. जब राष्ट्र से जुड़ा कोई मुद्दा सामने आता है, तो हम सभी का कर्तव्य है कि हम देश के लिए काम करें और बोलें. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मैंने जो कहा, वह मेरी अपनी राय थी. उन्होंने कहा, “केंद्र ने मेरी सेवाएं मांगी थीं. वास्तव में, मेरी पार्टी ने नहीं मांगी. इसलिए, मैंने गर्व के साथ एक भारतीय नागरिक के रूप में अपना कर्तव्य निभाया.”
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