मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान Bihar SIR के दौरान बाहर किये गये मतदाताओं का ब्यौरा 9 अक्टूबर तक प्रस्तुत करने को कहा. कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि इस बात को लेकर कुछ भ्रम है कि अंतिम मतदाता सूची में जोड़े गए मतदाता उन मतदाताओं की सूची से हैं जिन्हें पहले मसौदा सूची से हटा दिया गया था या बिल्कुल नए नाम हैं.
अंतिम मतदाता सूची में जोड़े गए नाम नए या पहले हटाए गए नामों से हैं
आज की सुनवाई में, एडीआर की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि एसआईआर के परिणामस्वरूप महिलाओं, मुसलमानों आदि का अनुपातहीन रूप से बहिष्कार हुआ है. भूषण ने दावा किया कि मतदाता सूची को साफ़ करने के बजाय, इस प्रक्रिया ने “समस्याओं को और बढ़ा दिया है”. उन्होंने आगे कहा कि चुनाव आयोग ने मतदाताओं के नाम हटाने के कारण नहीं बताए हैं और मसौदा सूची के प्रकाशन के बाद हटाए गए अतिरिक्त 3.66 लाख मतदाताओं की सूची प्रकाशित नहीं की है.
जब पीठ ने पूछा कि क्या हटाए गए मतदाता अपील दायर नहीं कर सकते, तो वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एएम सिंघवी ने दलील दी कि कारण जाने बिना वे अपील दायर नहीं कर सकते. साथ ही, हटाए गए नामों की कोई सूची प्रकाशित नहीं की गई है. सिंघवी ने कहा, “जिन लोगों के नाम हटाए जाते हैं, उन्हें इसकी सूचना नहीं मिलती. उन्हें कारण नहीं बताए जाते. अपील का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि किसी को पता ही नहीं है. कम से कम वे सूचना तो दे ही सकते हैं.”
इसपर चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि हटाए गए लोगों को आदेश दिए गए हैं.
न्यायमूर्ति कांत ने तब कहा, “अगर कोई इन 3.66 लाख मतदाताओं में से उन मतदाताओं की सूची दे सकता है जिन्हें आदेश नहीं मिले हैं… तो हम चुनाव आयोग को उन्हें आदेश देने का निर्देश देंगे… सभी को अपील करने का अधिकार है.”
भूषण ने मांग की कि हटाए गए नामों की सूची आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित की जानी चाहिए. द्विवेदी ने कहा कि प्रभावित मतदाताओं में से किसी ने भी अदालत का रुख नहीं किया है और “केवल दिल्ली में बैठे राजनेता और एनजीओ” ही इस मुद्दे को उठा रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं ने सितंबर में प्रकाशित अंतिम सूची को चुनौती नहीं दी है.
सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा नाम प्रकाशित किए बिना यह पता लगाना संभव नहीं है कि किन लोगों के नाम हटाए गए हैं और किनके नाम शामिल किए गए हैं. मसौदा प्रकाशित होने के बाद 65 लाख लोगों के नाम हटाए गए. अंतिम सूची के समय, चुनाव आयोग ने कहा कि उन्होंने लगभग 21 लाख मतदाताओं को जोड़ा है. सिंघवी ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि ये नए जोड़े गए लोग उन मतदाताओं में से थे जिनके नाम शुरू में हटाए गए थे, या बिल्कुल नए व्यक्ति थे. उन्होंने आगे कहा कि अंतिम सूची के समय 3.66 लाख लोगों के नाम अतिरिक्त रूप से हटाए गए हैं.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ बिहार में मतदाता सूची की एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने सुनवाई 9 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी है.
अगर कोई प्रभावित व्यक्ति न्यायालय का रुख करे तो कुछ निर्देश दे सकता है-कोर्ट
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि अगर कोई प्रभावित व्यक्ति न्यायालय का रुख करता है तो न्यायालय कुछ निर्देश दे सकता है. भूषण ने कहा कि वह सैकड़ों लोगों को ला सकते हैं. भूषण ने कहा, “मैं 100 लोगों को ला सकता हूँ… माननीय सदस्य कितने लोगों को चाहते हैं? मैंने पहले ही एक उदाहरण दे दिया है… कितने लोग आगे आएंगे? यह सामूहिक उल्लंघन है.” उन्होंने एक व्यक्ति का हलफनामा सौंपा जिसका नाम कथित तौर पर हटा दिया गया था. जब भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग को नए हटाए गए और जोड़े गए नामों की सूची प्रकाशित करनी चाहिए, तो न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यदि प्रथम दृष्टया कोई मामला सामने आता है, तो न्यायालय निर्देश देगा. भूषण ने तब बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले मसौदे से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने का निर्देश दिया था. न्यायमूर्ति कांत ने कहा, “यह एक भटकती हुई जाँच नहीं लगनी चाहिए. अगर हम प्रथम दृष्टया संतुष्ट हैं, तो हम आदेश पारित कर सकते हैं.”
चुनाव आयोग ने 30 सितंबर को बिहार के लिए अंतिम मतदाता सूची जारी की और 47 लाख नामों को बाहर कर दिया जो एसआईआर शुरू होने से पहले सूची में थे. कुल संख्या में से, 3.66 लाख नामों को जाँच के बाद अयोग्य पाए जाने पर हटा दिया गया.
Bihar SIR: चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद अदालतें हस्तक्षेप का विरोध करती हैं
सुनवाई के दौरान, चुनाव आयोग ने याचिकाकर्ताओं द्वारा पीठ को दस्तावेज़ सौंपने पर आपत्ति जताई और ज़ोर देकर कहा कि उन्हें उचित प्रक्रिया के अनुसार हलफनामा दाखिल करना चाहिए. द्विवेदी ने यह भी उल्लेख किया कि चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा पहले ही कर दी है और अनुच्छेद 329 का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद अदालतें हस्तक्षेप का विरोध करती हैं. अंततः, पीठ ने मामले की सुनवाई अगले गुरुवार के लिए स्थगित कर दी और चुनाव आयोग से आवश्यक जानकारी प्राप्त करने को कहा. चुनाव आयोग के वकीलों को संबोधित करते हुए, न्यायमूर्ति बागची ने कहा, “श्री द्विवेदी और श्री मनिंदर सिंह, आपके पास मसौदा सूची और अंतिम सूची दोनों हैं. नामों में चूक स्पष्ट है. बस उन्हें छाँटकर हमें जानकारी दें.” भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग यह “एक बटन दबाकर” कर सकता है. न्यायमूर्ति कांत ने तब कहा, “इतनी जाँच का सवाल तब उठेगा जब कुछ वास्तविक लोग होंगे. कुछ अवैध प्रवासी भी हैं जो उजागर नहीं होना चाहते. आइए 100-200 लोगों की सूची बनाएँ जो कहते हैं कि हम अपील दायर करना चाहते हैं लेकिन हमारे पास आदेश नहीं है.”
“वोट चोरी” के नाम पर चुनाव आयोग को बदनाम कर रहे हैं- विजय हंसारिया
वहीं, अश्विनी उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया, जिन्होंने सभी राज्यों में एसआईआर की मांग वाली याचिका दायर की है, ने याचिकाकर्ताओं की माँगों का विरोध किया. उन्होंने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता मीडिया में “वोट चोरी” के नाम पर अभियान चलाकर चुनाव आयोग को बदनाम कर रहे हैं.
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