SC Hearing on S.I.R: गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के बिहार में मतदाता सूची के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर तीखे सवाल उठाए और सत्यापन प्रक्रिया से आधार जैसे प्रमुख दस्तावेजों को बाहर रखे जाने तथा समय को लेकर चिंता व्यक्त की.
S.I.R. के टाइमिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
न्यायालय ने एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग के अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से संशोधन प्रक्रिया को जोड़ने के पीछे दिए गए तर्क पर सवाल उठाया.
अदालत ने पूछा, “आप विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनावों से क्यों जोड़ रहे हैं? यह चुनावों से इतर क्यों नहीं हो सकता?” पीठ ने यह भी कहा कि यदि एसआईआर का उद्देश्य नागरिकता सत्यापित करना है, तो आयोग को “पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए थी”, जिससे यह संकेत मिलता है कि अब यह प्रक्रिया “थोड़ी देर से” हो रही है.
चुनाव आयोग ने नागरिकता सत्यापित करने को बताया आवश्यक
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दोहराया कि यह प्रक्रिया अनुच्छेद 326 के तहत संवैधानिक रूप से अनिवार्य है, जिसमें कहा गया है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदाता के रूप में नामांकित किया जा सकता है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखने के लिए नागरिकता सत्यापित करना आवश्यक है.
SC Hearing on S.I.R: “आधार क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है?”
हालाँकि, अदालत ने आगे दबाव डालते हुए चुनाव आयोग से पूछा कि सत्यापन प्रक्रिया के दौरान आधार कार्ड को वैध दस्तावेज़ों से क्यों बाहर रखा जा रहा है? पीठ ने संभावित मताधिकार से वंचित होने की चिंताओं की ओर इशारा करते हुए सवाल किया, “आधार क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है?”
खासकर यह प्रश्न तब उठा जब वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने बताया कि यद्यपि आधार जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार एक स्वीकार्य दस्तावेज है, फिर भी चुनाव आयोग इसे बिहार एसआईआर के लिए वैध नहीं मान रहा है.
इस पर, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने चुनाव आयोग से पूछा कि ऐसा क्यों है.
जिसके जवाब में चुनाव आयोग के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि “आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.”
इसपर न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने टिप्पणी की: “… नागरिकता का मुद्दा भारत के चुनाव आयोग द्वारा नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा तय किया जाना है.”
हलांकि चुनाव आयोग अपने तर्क पर अड़ा रहा और कहा कि वर्तमान संशोधन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है और इसी तरह की एसआईआर पिछली बार 2003 में आयोजित की गई थी. वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह ने भी चुनाव निकाय के रुख का बचाव किया और एक मज़बूत और वैध मतदाता सूची की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.
याचिकाकर्ताओं ने S.I.R. की प्रक्रिया को बताया “असंवैधानिक”
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, और राजद, टीएमसी, कांग्रेस, एनसीपी (सपा), सीपीआई, शिवसेना (यूबीटी) और अन्य के सांसदों सहित 10 से अधिक दलों और व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं में एसआईआर को “मनमाना” और “असंवैधानिक” बताया गया है. उनका तर्क है कि पूरे मतदाता आधार, लगभग 7.9 करोड़ नागरिकों, को अपनी पात्रता का पुनर्सत्यापन करने के लिए कहा जाना अभूतपूर्व है, खासकर चुनाव के इतने करीब.
हालांकि चुनाव आयोग ने इस कदम को एक मानक और आवश्यक चुनावी प्रक्रिया बताते हुए इसका बचाव किया है, लेकिन आलोचकों का आरोप है कि इससे बड़ी संख्या में मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं और यह राजनीति से प्रेरित हो सकता है.
हलांकि सुनवाई के शुरु में ही सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने का भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के फैसला को संवैधानिक रूप से वैध बता दिया है.
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