Kedarnath Glacier : उत्तराखंड मे लगातार मूसलाधार बारिश का दौर जारी है जिसके कारण उत्तर काशी से लेकर राज्य के अधिकतर हिस्सों में तबाही का मंजर है. धराली में बादल फटने के कारण भीषण नुकसान हुआ है.
Kedarnath Glacier : मंदिर के पीछे ग्लेशियर टूटा..बहकर आ रहा है नीचे
अब खबर है कि केदारनाथ मंदिर के पीछे की पहाड़ी पर बने ग्लेशियर टूट रहे हैं. केदारनाथ क्षेत्र में चौराबाड़ी की ऊपरी तरफ ग्लेशियर टूटने की घटना कैमरे में कैद हुई है. हाल ही में सोशल मीडिया पर कई लोगों ने ग्लेशियर के टूटने और पहाडों से इसके टूटकर आने के वीडियो भी शेयर किये हैं.वीडियो में दिख रहा है कैसे ग्लेशियर टूटकर नीचे बह रहे है.
केदारनाथ से ऊपर हिमालय क्षेत्र से लगे चौराबाड़ी ग्लेशियर में भारी हिमस्खलन हुआ. ग्लेशियर से भारी मात्रा में बर्फ टूटकर निचले क्षेत्र में आ गई. जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार ने बताया कि घटना दोपहर करीब 2 बजे की है. #Kedarnath #Uttarakhand pic.twitter.com/UrRSOgwY5T
— Himanshu Mishra 🇮🇳 (@himanshulive07) September 4, 2025
ग्लेशियर का टूटना किस बात का है संकेत
हिमालय की पहाडियों से इस तरह से ग्लेशियर का टूट कर आना पर्यावरणविदों के मुताबिक अच्छे संकेत नहीं हैं, क्योंकि जिस इस तरह से पहाड़ से ग्लेशियर टूटकर नीचे गिरने लगे है, ये एक चेतावनी होती है. जिन पहाड़ों पर बर्फ होते हैं वहां एवलांच (बर्फीले तूफान) आना कोई नई बात नहीं है लेकिन इन दिनों जिस तरह से बर्फीले तूफानों की संख्या बढी है, ये चिंता का विषय है.
क्यों टूटते हैं ग्लेशियर
बीते कुछ वर्षों में पूरी दुनिया में तापमान बढा है. ग्लोबल वार्मिग का ही इफेक्ट है कि दुनिया के कई हिस्सों में ग्लेशियर पिघल रहे हैं. यहां तक कि बर्फ से ढंके अंटार्टिका में भी फूल खिलते देखे गये, जो पर्यावरण के मुताबिक दुनिया के लिए बेहद खराब संकेत हैं. भारत में भी ग्लेशियर्स का पिघलना बढते तापमान का ही परिणाम है.
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जब बर्फिले पहाड़ों से बर्फ तेजी से पिघलने लगता है तो उसका हिस्सा टूट टूट कर अलग हो जाता है.ग्लेशियर का जब कोई बड़ा हिस्सा टूटता है तो उसे काल्विंग कहते हैं. कुछ ग्लेशियर हर साल टूटते हैं, कुछ दो या तीन साल में टूटते हैं.
2013 की केदारनाथ त्रासदी
केदारनाथ में साल 2013 में बादल फटने के बाद आई भयानक बाढ़ के कारण सबकुछ तबाह हो गया था. यहां तक की 11 साल बाद भी स्थिति पूरी तरह से समान्य नहीं हुए है. पर्यावरणविदों के मुताबिक इस तरह से बादल फटने और बर्फिले तूफानों के अलावा ग्लेशियरों का पिघलना केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ हमारे खिलवाड़ का नतीजा है. ग्लेशियरों का पिघलना या बर्फ का टूटना ये दिखाता है कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते तापमान और मानवीय गतिविधियों का कितना गंभीर असर हो रहा है.