Mahakumbh : महाकुंभ में नहा के आपने अपने पाप धोये, पुण्य कमाया या फिर अनजाने में आपके हाथ से पाप हो गया. नदियां जीवन देने वाली होती है. उनके किनारों पर सभ्यताएं फलती फूलती रही हैं. गंगा के किनारों पर तो मोक्ष के धाम है. यहां मरने के बाद भी मोक्ष की चाह में अस्थियां लाई जाती है. गंगा पाप हरती है लेकिन क्या गंगा 70 करोड़ लोगों के पाप हरते-हरते गंगा इतनी गंदी हो गई कि उसका पानी अब नहाने के भी काबिल नहीं रहा.
Mahakumbh : क्या नहाने के भी लायक नहीं है पानी?
क्या गंगा जो जीवन देने वाली है….उसका पानी इतना गंदा हो गया है कि वो नहाने के भी लायक नहीं है और अगर ऐसा है तो महाकुंभ प्रशासन श्रद्धालुओं की भीड़ को रोकता क्यों नहीं है.क्या आस्था का सैलाब मां गंगा के अस्तित्व और पवित्रता से ऊपर है.
असल में गंगा के पानी को लेकर बीच कुंभ में आई खबर चौंकाने वाली है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 3 फरवरी को एनजीटी में एक रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें कहा गया है कि, “गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता विभिन्न अवसरों पर सभी निगरानी स्थानों पर फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) के संबंध में स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं थी. प्रयागराज में महाकुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में लोग नदी में स्नान करते हैं, जिसमें शुभ स्नान के दिन भी शामिल हैं, जिससे अंततः मल की सांद्रता बढ़ जाती है.” सीपीसीबी ने 12, 13, 15, 19, 20 और 24 जनवरी को गंगा और यमुना के किनारे विभिन्न स्थानों से पानी के नमूने लिए थे.
CPCB ने अपनी रिपोर्ट में तीन प्रमुख बातें कहीं
1- 12-13 जनवरी को की गई निगरानी के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) के संबंध में स्नान के मानदंडों के अनुरूप नहीं थी.
2- विभिन्न अवसरों पर सभी निगरानी स्थानों पर नदी के पानी की गुणवत्ता फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) के संबंध में स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं थी.
3- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महाकुंभ के दौरान, खास तौर पर शुभ दिनों में, बड़ी संख्या में लोगों के गंगा में स्नान करने से मल की मात्रा में वृद्धि हुई. जबकि क्षेत्र में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) आम तौर पर चालू थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि शाही स्नान और त्योहार के अन्य प्रमुख अनुष्ठानों के दौरान प्रदूषण का स्तर बढ़ा .
यानी कुल मिलाकर कहें तो गंगा का पानी नहाने के लायक भी नहीं था. इसका मतलब न सिर्फ जिन लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई, ये उनके लिए खतरनाक था बल्कि गंगा नदी की सेहत को भी खराब कर रहा था.
लोग अनजाने में खुद ही मां गंगा को गंदा कर रहे थे. गंगा किनारे हुई भगदड़ या भगदड़ों, रेलवे स्टेशन पर मरने वालों और और 30-35 घंटे लगे जाम और व्यवस्था के लेकर बाकी सभी सवालों को दरकिनार भी कर दिया जाए तो ये सवाल जरुरी है कि नदी की सेहत का ध्यान क्यों नहीं रखा गया. पहले भी कुंभ हुए तब भी हरिद्वार से ज्यादा पानी छोड़ गंगा की सेहत को दुरुस्त करने की कोशिश की गई. तब भी ये सवाल भी उठे थे कि गंगा में नहाना सेहत के लिए ठीक है कि नहीं. बहस हुई कई कदम उठाए गए. गंगा की सफाई के लिए लाखों करोड़ खर्च कर मिशन भी चला. दिल्ली में तो पूरा चुनाव ही यमुना की गंदगी को लेकर लड़ लिया गया लेकिन गंगा जो सिर्फ नदी नहीं बल्कि मां है, सनातन धर्म की आस्था का प्रतीक है. उसकी सेहत को लेकर सजगता क्यों नहीं दिखाई गई , ये बड़ा सवाल है.
19 फरवरी को होगी सुनवाई, यूपीपीसीबी होगी पेश
कोर्ट और एनजीटी भी जागा तो तब जब कुंभ खत्म होने को है…..जब नुकसान जो होना था हो गया….अब कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में न्यायाधिकरण ने निष्कर्षों की समीक्षा की और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के अधिकारियों को बुधवार, 19 फरवरी को वर्चुअल रूप से पेश होने के लिए बुलाया. अधिकारियों को बढ़ते प्रदूषण के स्तर के जवाब में उठाए गए उपायों के बारे में बताना होगा.
सवाल पूछे जाएंगे, कड़ी टिप्पणी भी होगी….लेकिन गंगा जिसको करोड़ों के पाप धोने का जिम्मा दिया गया, उस मां गंगे को क्या मिलेगा ? क्या एनजीटी के पास फटकार लगाने के सिवा कोई अधिकार है ?
गंगा में डुबकी लगाने से आपके सारे पाप नहीं धुल जाते
सवाल सरकार पर भी होंगे जो आस्था के नाम पर करोड़ की भीड़ जुटा रही है. जिसने कुंभ के प्रचार और प्रसार में ऐसा ताना-बाना तैयार किया है कि लोग तकलीफ उठाकर , व्यवस्थाओं के अभावों में भी चले आ रहे है. ऐसे में आस्था के नाम पर डुबकी लगाने वालों को हम इतना ही कहेंगे कि मोटिवेशनल स्पीकर जया किशोर की ही बात ध्यान से सुननी चाहिए. जय किशोरी ने महाकुंभ में स्नान को लेकर कहा कि देखिए, महाकुंभ में कौन डुबकी लगा रहा है. वो कौन नहीं लगा रहा है. कौन अच्छा है, वो तो मुझे नहीं पता, लेकिन एक बात याद रखें, डुबकी लगाने से आपके सारे पाप नहीं धुल जाते. डुबकी लगाने से वही पाप धुलते हैं जो गलती से किए गए हैं ,जो अनजाने में किए गए हैं. सोची-समझी योजनाएं नहीं धुलतीं हैं.
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