बिहार में जाति जनगणना के आकड़े सामने आने के बाद यूपी की बीजेपी सरकार पर भी इसको कराने के लिए दबाव बढ़ने लगा है. हलांकि सीएम योगी आदित्यनाथ पहले ही ऐसी किसी जनगणना से इनकार कर चुकें हैं लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के सीएम को पत्र लिख जाति जनगणना कराने की मांग करने के बाद फिर इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है.
सत्ता में थे तब नहीं आई जातियों की याद- केशव प्रसाद मोर्या
यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने विपक्ष की मांग पर कहा, “ये सभी विपक्षी दल (उत्तर प्रदेश में बिहार जैसी जाति जनगणना की) मांग कर रहे हैं क्योंकि 2024 के चुनाव नजदीक हैं. 2024 के चुनाव खत्म होने तक, वे ओबीसी, एसटी, एससी, किसानों, महिलाओं और युवाओं के बारे में सोचेंगे, लेकिन वे जब वे सत्ता में थे तो उन्हें उनकी परवाह नहीं थी,”
VIDEO | “All these opposition parties are demanding (for Bihar-like caste census in Uttar Pradesh) because the 2024 elections are near. Until the 2024 elections are over, they will think about OBCs, STs, SCs, farmers, women and youth, but they didn’t care about them when they… pic.twitter.com/6F6hv87iik
— Press Trust of India (@PTI_News) October 3, 2023
जाति सहयोग का नया रास्ता खोलेगी जाति जनगणना-अखिलेश
वहीं समाजादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस की मांग का समर्थन करते हुए एक्स पर लिखा, “बिहार जाति आधारित जनगणना प्रकाशित : ये है सामाजिक न्याय का गणतीय आधार. जातिगत जनगणना 85-15 के संघर्ष का नहीं बल्कि सहयोग का नया रास्ता खोलेगी और जो लोग प्रभुत्वकामी नहीं हैं बल्कि सबके हक़ के हिमायती हैं, वो इसका समर्थन भी करते हैं और स्वागत भी. जो सच में अधिकार दिलवाना चाहते हैं वो जातिगत जनगणना करवाते हैं. भाजपा सरकार राजनीति छोड़े और देश व्यापी जातिगत जनगणना करवाए. जब लोगों को ये मालूम पड़ता है कि वो गिनती में कितने हैं तब उनके बीच एक आत्मविश्वास भी जागता है और सामाजिक नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ एक सामाजिक चेतना भी, जिससे उनकी एकता बढ़ती है और वो एकजुट होकर अपनी तरक़्क़ी के रास्ते में आने वाली बाधाओं को भी दूर करते हैं, नये रास्ते बनाते हैं और सत्ताओं और समाज के परम्परागत ताक़तवर लोगों द्वारा किए जा रहे अन्याय का खात्मा भी करते हैं. इससे समाज बराबरी के मार्ग पर चलता है और समेकित रूप से देश का विकास होता है. जातिगत जनगणना देश की तरक़्क़ी का रास्ता है. अब ये निश्चित हो गया है कि PDA ही भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा.”
बिहार जाति आधारित जनगणना प्रकाशित : ये है सामाजिक न्याय का गणतीय आधार।
जातिगत जनगणना 85-15 के संघर्ष का नहीं बल्कि सहयोग का नया रास्ता खोलेगी और जो लोग प्रभुत्वकामी नहीं हैं बल्कि सबके हक़ के हिमायती हैं, वो इसका समर्थन भी करते हैं और स्वागत भी।जो सच में अधिकार दिलवाना चाहते हैं…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) October 2, 2023
मायावती ने जाति जनगणना को बताया ओबीसी के हक की लड़ाई की पहली सीढ़ी
बीएसपी प्रमुख मायावती ने साफ तो नहीं लेकिन बिहार की जाति जनगणना को ओबीसी समाज के हक़ की पहली सीढ़ी बता उसका समर्थन ही किया है. मायावती ने एक्स पर लिखा, “बिहार सरकार द्वारा कराए गए जातीय जनगणना के आँकड़े सार्वजनिक होने की खबरें आज काफी सुर्खियों में है तथा उस पर गहन चर्चाएं जारी है. कुछ पार्टियाँ इससे असहज ज़रूर हैं किन्तु बीएसपी के लिए ओबीसी के संवैधानिक हक के लम्बे संघर्ष की यह पहली सीढ़ी है.”
बीजेपी समर्थक पार्टियां भी कर रही है जाति जनगणना की मांग
कांग्रेस के साथ एसपी, बीएसपी तो खुलकर जाति जनगणना की मांग कर रही है लेकिन अगर मुश्किल में तो वो 3 पार्टियां जिनका आधार ही ओबीसी समाज है लेकिन फिलहाल वो बीजेपी के साथ है. ये तीन पार्टियां है- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) पर ओबीसी जाति राजभरों का वर्चस्व है और इसका नेतृत्व ओम प्रकाश राजभर करते हैं; दूसरी पार्टी है, निषाद पार्टी एक पारंपरिक नाविक समुदाय की समर्थक है, और इसका नेतृत्व राज्य मंत्री संजय निषाद करते हैं; और तीसरी पार्टी है, अपना दल (सोनेलाल), जिसे यूपी में संख्यात्मक रूप से यादवों के बाद सबसे प्रभावशाली ओबीसी समूहों में से एक, कुर्मियों का समर्थन प्राप्त है. इस तीन पार्टियों की दिक्कत ये है कि ये जाति जनगणना का समर्थन तो करती है लेकिन क्योंकि फिलहाल बीजेपी के साथ है इसलिए इसकी खुलकर मांग नहीं कर सकती.
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