सुकमा :अय़ोध्या के राम मंदिर की चर्चा पूरे देश में हैं ,लोग राममंदिर में भगवान श्री राम के विग्रह की स्थापना की खुशी मनाते नहीं थक रहे. हो भी क्यों नहीं,आखिर पांच सौ वर्षो का इंतजार जो खत्म हुआ . अयोध्या में श्रीराम मंदिर के बनने की इंतजार था. जो अब पूरा हो गया है लेकिन देश एक राज्य छत्तीसगढ़ में एक ऐसा राम राममंदिर है, जो पिछले 21 साल से बंद पड़ा है. पिछली सरकारों के बड़े बड़े दावों के बावजूद यहां के लोग मंदिर और उसमें रह रहे भगवान की पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे थे. छत्तीसगढ़ के सुकमा में Shri RamTemple Sukma एक ऐसा श्रीराम का मंदिर है जिसे नक्सलियों के खौफ के कारण 21 साल पहले 2003 में बंद कर दिया गया था. अब इस मंदिर को सीआरपीएफ के 74वीं बटालियन के जवानों ने खोला है….
Shri RamTemple Sukma की 5 साल पहले हुई थी स्थापना
ये मंदिर सुकमा के घोर नक्सल प्रभावित लखापाल और केरलापेंदा गांव का है. यहां करीब 50 साल पहले 1970 में भगवान का के एक मंदिर की स्थापना की गई थी. इस मंदिर की स्थापना का श्रेय बिहारी महाराज जी को जाता है . कहते है कि जब बिहारी महाराजजी ने यहां मंदिर बनाने की बात कही तो आदिवासी बहुल इस गांव के लोगों ने आगे बढ़कर खुद अपनी मेहनत से इस मंदिर का निर्माण किया. लोग बताते हैं कि यहां के ग्रामीण तकरीबन 80 किलोमीटर दूर से सरिया, सिमेंट पत्थर,बजरी आदि निर्माण का सारा सामान खुद लेकर आते थे,जबकि उस समय इस इलाके में सड़क तक नहीं थी. लोग पैदल हाथों हाथों सामान लाते ओर जोड़ जोड़ कर मंदिर का निर्माण किया .

पूरे गांव ने छोड़ दिया था मांस मदिरा का सेवन..
इस मंदिर की महिमा का बखान करते हुए स्थानीय लोग बताते है कि जब इस गांव में श्री राम के मंदिर की स्थापना हुई तो सारा गांव श्रीराम का भक्त हो गया और सभी ने मिलकर फैसला किया कि अब गांव में कोई मांस मदिरा का सेवन नहीं करेगा. आदिवासी गांव होने के बावजूद लोगों ने मांस मदिरा का सेवन छोड़ दिया था. आज भी इस गांव के 95 प्रतिशत लोग मांस मदिरा का सेवन नहीं करते हैं. पूरे गांव ने कंठीमाला धारण कर लिया था. कंठीमाला धारण करने के बाद कहा जाता है कि मांस मदिरा का सेवन वर्जित होता है, और यहां केी आदिवासीबहुल आबादी इसे पूरी आस्था से मानते हैं. पूरे गांव के लोग सनातनी रीति के अनुसार भगवान राम में आस्था रखते हुए उनके भक्त हो गये थे लेकिन घोर नक्सली इलाका होने के कारण धीरे धीरे नक्सलियों को ये पसंद नहीं आने लगा और नक्सलियों ने 2003 में आखिरकार इस मंदिर में पूजा पाठ पर रोक लगा दी.
नक्सलियों ने बंद कराया मेला और साधुसंतों का आगमन
यहा के लोगों का कहना है कि जब मंदिर बना था तो अगले कई वर्षो कर इस मंदिर में बड़ा मेला लगता था. दूर दूर से साधुसंत आते थे. अय़ोध्या के संतो का भी यहां आना होता था लेकिन धीरे धीरे नक्सिली उत्पात ने पहले मेला बंद कराया, फिर साधु संतो का आना जाना भी बंद हो गया. यहां एक पुजारी टोला/ पारा भी है जिसमें करीब 25 पंडितों का परिवार रहता था, लेकिन नक्सलियों ने जब मंदिर में पूजा पाठ बंद कराया तो पुजारियों के परिवार भी यहां से चले गये औऱ धीरे धीर ये मंदिर सुनसान खंडहर में तब्दील होने लगा. रखरखाव के अभाव में पूरा मंदिर जंगली घास फूस से भर गया और इलाका वीरान हो गया.
CRPF जवानों ने कैंप लगा कर खोला मंदिर का कपाट
अब सीआरपीएफ की 74वीं बटालियान ने इस मंदिर के कपाट खोले हैं औऱ साफ सफाई की है. सीआरपीएफ 74 वी बटालियन ने नक्सल प्रभािवत इस इलाके में अपना कैंप लगा लिया है और य़हीं रहने लगे हैं. CRPF के जवानों के आने से लोगों के बीच एक साहस भी पैदा हुआ है और अब लोग सामने आकर साफ सफाई और पूजा पाठ में सहयोग दे रहे हैं.
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