Chirag Paswan BJP : केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जिसतरह से जी- जान लगाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं, इससे इतना तो साफ है कि वो बिहार में चुनाव लड़ने जा रहे हैं लेकिन एनडीए में सीट शेयरिंग का फार्मूला क्या होगा, इसे लेकर अभी पिक्चर साफ नहीं हैं. सीट शेयरिंग का फार्मूला तय होने से पहले ही भाजपा के हनुमान ने अपनी मांगे सामने रख दी है. चिराग पासवान ने भाजपा नेतृत्व के आगे जो मांग रखी है, उसे देखकर लगता है कि आने वाले दिनों में ये भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है.इसकी वजह ये है कि चिराग पासवान ने बिहार चुनाव को लेकर बीजेपी के सामन जो मांगे रखी है, उसे मानना भाजपा के लिए लगभग नामुंकिन है.ऐसे में अगर भाजपा चिराग की मांगे ना मानने का फैसला करती है तो ये पार्टी और गठबंधन दोनों के लए बड़ी मुसीबत का कारण बन सकता है.
Chirag Paswan BJP : बिहार में एनडीए के घटक दल
नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में चल रही सरकार में जेडीयू के साथ साथ एलजेपी(रामविलास), जीतनराम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) शामिल है. राज्य में एनडीए की पार्टियां तो फिलहाल तय हैं लेकिन सीटों का बंटबारा किस तरह से होगा इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है.
कैसे होगा सीटों की बंटवारा ?
सीट बंटवारे को लेकर ये तो तय है कि 243 सीटों में से बड़ा हिस्सा भाजपा और जेडीयू के पास जायेगा.नई परिस्थितियों में बीजेपी और जेडीयू बराबर- बराबर सीटों पर लड़ने के लिए तैयार है लेकिन गठबंधन की टेंशन बढाई है चिराग पासवान की मांग ने. चिराग पासवान ने राज्य में 40 सीटों की मांग की है, जिसे पूरा करना भाजपा -जेडीयू के लिए मुश्किल दिखाई दे रहा है.
मान जा रहा है कि 100 से 110 सीटों पर जेडीयू चुनाव लड़ेगी. भाजपा स्वयं भी इतने ही सीट रखेगी. ऐसे में अगर 210- 220 सीटें जेडीयू-बीजेपी के खाते में चली जाती हैं तो बाकी की पार्टियों को बची सीटों में से ही बंटवारा करना होगा. माना जा रहा है कि तमाम जोड़ घटाव के बाद एलजेपी(रामविलास) के लिए एनडीए 20 से 25 सीटें ही निकाल पायेगी, क्योंकि दूसरे सहयोगी जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को भी सीटें देनी होगी. बीजेपी और जेडीयू के सीटों के बंटबारे के बाद केवल 33 से 43 सीटें बचेंगी जिसे तीन पार्टियों में बांटना होगा. सभी को संतुष्ट करने का फार्मूला बनाना भाजपा के लिए भी आसान नहीं होगा.
पिछले चुनाव में चिराग पासवान का प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर शत प्रतिशत सीटें जीतने वाले चिराग पासवान अपने पिता राम विलास पासवान की विरासत को अच्छी तरह से संभाल रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो जब उन्हें एनडीए में अपने मन के मुताबिक सीटें नहीं मिली तो उन्होंने एनडीए से नाता तोड़कर अकेले चुनाव लड़ा था. चिराग ने 243 में 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. चिराग ने उन सभी स्थानों पर अपने उम्मीदवार उतार दिये थे, जहां से जेडीयू चुनाव लड़ रही थी. चिराग ने भाजपा कैंडिडेट के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे. नतीजा ये हुआ कि नीतीश कुमार को भारी नुकसान उठाना पड़ा. जेडीयू केवल 43 सीटों पर सिमट गई , वहीं बीजेपी ने 74 सीटें जीती. माना गया कि जेडीयू की हालत एलजेपी के कारण खराब हुई थी.
चिराग पासवान की सियासी ताकत
जानकारों के मुताबिक चिराग पासवान की पार्टी का अभी भी बिहार के कम से कम 10 प्रतिशत वोट पर प्रभाव है.दलित और अतिपिछड़ों के बीच चिराग पासवान की पैठ है. बिहार में 2025 का चुनाव भाजपा नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ने जा रही है, लेकिन किसी भी हालत में बीजेपी जेडीयू से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी. ऐसे में चिराग पासवान के 40 सीटों की डिमांड को पूरा कर पाना लगभग असंभव जान पड़ता है. जबकि एनडीए के मौजूदा गुणा-गणित के मुताबिक एलजेपी के पास 5 सांसद हैं, इस लिहाज से उनके हिस्से कम से कम 20 विधानसभा सीटें मिलने का फार्मूला बनता है.
40 सीटें मांगे के पीछे एलजेपी का तर्क है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन शत प्रतिशत रहा. उनकी पार्टी दिये गये सभी पांच सीटों पर जीतने में सफल रही है और 6 प्रतिशत वोट भी मिले. उन्हें 5 लोकसभा की 30 विधानसभा सीटों में से 29 पर बढ़त मिली थी. इसलिए उन्हें कम से कम 40 सीटें मिलनी चाहिये लेकिन जानकारों के मुताबिक चिराग पासवान की इस मांग पर तबज्जो देने के लिए ना तो जेडीयू तैयार है और ना ही बीजेपी .
चिराग पासवान क्यों बन रहे है भाजपा के लिए गले की फांस ?
चुनावी गणित के हिसाब से देखें तो एनडीए के लिए चिराग पासवान को नाराज करना घाटे का सौदा हो सकता हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार कर अपनी ताकत दिखा दी थी.
64 सीटों पर चिराग पासवान की पार्टी तीसरे नंबर या उससे पीछे रही. 27 सीटों पर एलजेपी ने जेडीयू को सीधा नुकसान पहुंचाया.यहां तक की एनडीए को बहुमत काफी कम अंतर से मिला था.
वहीं जानकारों का मानना है कि अगर चिराग पासवान एनडीए से अलग होते हैं तो वो भले ही वो महागठबंधन का हिस्सा ना भी बने लेकिन अगर प्रशांत किशोर से हाथ मिला लेते हैं तो खेल बदल सकता है.अगर अकेले भी चुनाव लड़ते हैं तो पिछली बार की तरह वोट कटवा साबित हो सकते हैं, जो आखिरकार एनडीए के लिए जोखिम भरा हो सकता है.

