Bihar Voter List Revision:बिहार में मतदाता सूची में संशोधन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की है. जिसमें चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के चुनाव आयोग के
Bihar Voter List Revision- 3 करोड़ मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं
अपनी जनहित याचिका (पीआईएल) में एडीआर ने कहा कि एसआईआर को दरकिनार किया जाना चाहिए. एडीआर का कहना है कि, इस कवायद के चलते लोगों पर कम समय में अपनी और अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने का दबाव डालना गया है. याचिका में कहा गया है कि, बिना आधार कार्ड जैसे आसानी से उपलब्ध पहचानों को वैध दस्तावेज माने ऐसा करना लगभग 3 करोड़ मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है.
शुक्रवार को अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “ईसीआई के जारी 24 जून के आदेश ने मतदाता सूची में शामिल होने की जिम्मेदारी राज्य से नागरिकों पर डाल दी है. इसने आधार या राशन कार्ड जैसे पहचान दस्तावेजों को बाहर रखा है, जिससे हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों को मतदान से वंचित होने का खतरा और बढ़ गया है.”
SIR के फैसले, तरीके और समय पर उठाये सवाल
याचिका में आरोप लगाया गया है कि ईसीआई द्वारा अपनाया गया समय और तरीका संदिग्ध है. इसके साथ ही कहा गया है कि, एसआईटी संविधान के अन्य प्रावधानों के अलावा अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है. इसमें कहा गया है, “यदि एसआईआर आदेश को रद्द नहीं किया जाता है, तो यह मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से वंचित कर सकता है. याचिका में कहा गया कि इस कवायद से देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो की संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं.”
याचिका में एसआईआर को एक सकारात्मक कदम बताया गया है
एडीआर ने कहा, “जबकि बिहार या देश के किसी अन्य राज्य का एसआईआर एक सकारात्मक कदम है, लेकिन जिस तरह से चुनाव आयोग ने बिहार जैसे चुनावी राज्य में एसआईआर के संचालन का निर्देश दिया है, उसने सभी हितधारकों, खासकर मतदाताओं की ओर से सवाल खड़े किए हैं.” इसके साथ ही, “ईसीआई ने नवंबर 2025 में होने वाले राज्य चुनावों के करीब बिहार में एसआईआर आयोजित करने के लिए अनुचित और अव्यवहारिक समयसीमा जारी की है.” जिससे राज्य के लाखों मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं.
गरीबी और पलायन की उच्च दर के चलते SIR की कवायद बनी समस्या
याचिका में कहा गया है कि, बिहार में गरीबी और पलायन की उच्च दर के कारण समस्या और भी गंभीर हो गई है, जहाँ ज़्यादातर वंचित समुदायों से आने वाले लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे दस्तावेज़ नहीं हो सकते हैं. याचिका में कहा गया है, “अनुमानों के अनुसार, 3 करोड़ से ज़्यादा मतदाता और ख़ास तौर पर वंचित समुदायों (जैसे कि एससी, एसटी और प्रवासी मज़दूर) से आने वाले मतदाता एसआईआर आदेश में उल्लिखित कठोर आवश्यकताओं के कारण मतदान से बाहर हो सकते हैं. बिहार की मौजूदा रिपोर्ट, जहाँ एसआईआर पहले से ही चल रही है, दिखाती है कि गाँवों और वंचित समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास उनसे माँगे गए दस्तावेज़ नहीं हैं.”
बीएलओ का लगभग 1.5 करोड़ घरों का पहला दौरा पूरा हो गया है-चुनाव आयोग
वहीं, चुनाव आयोग ने शुक्रवार को घोषणा की कि एसआईआर अभ्यास के तहत 24 जून तक बिहार में 68.6 मिलियन से ज़्यादा गणना फ़ॉर्म वितरित किए गए हैं, जो 79 मिलियन नामांकित मतदाताओं में से 87% से ज़्यादा को कवर करते हैं. बीएलओ ने 4 जुलाई तक लगभग 15 मिलियन घरों का दौरा पूरा कर लिया.
ईसीआई ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “बीएलओ का लगभग 1.5 करोड़ घरों का पहला दौरा आज पूरा हो गया है और बिहार में 7,89,69,844 (लगभग 7.90 करोड़) मतदाताओं में से 87% से अधिक गणना फॉर्म (यानी 6,86,17,932) जो 24 जून 2025 तक नामांकित हैं, राज्य में आयोजित एसआईआर अभ्यास के दौरान वितरित किए गए हैं.”
एसआईआर अभ्यास 2003 के बाद राज्य में पहली बार किया गया है. इसमें मतदाताओं को अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान को साबित करने के लिए सभी जिलों में वितरित किए जा रहे फॉर्म के साथ-साथ दस्तावेज देने होंगे, अगर उनका नाम 2003 के रोल में नहीं है. इस कवायद में कुल 11 दस्तावेज हैं जो एक मतदाता प्रमाण के तौर पर दे सकता है.
चुनाव आयोग ने कहा है कि यह अभ्यास अंततः पूरे देश में किया जाएगा.