Sunday, December 3, 2023

BadriNath Dham: शीतकाल के लिए बद्रीनाथ के कपाट हुए बंद, इस साल 18 लाख से ज्यादा श्रद्धुलओं ने किये दर्शन

बद्रानाथ धाम : बद्रीनाथ धाम BadriNath Dham में पंचपूजा के समापन के बाद आज दोपहर 3 बजकर 33 मिनट पर बद्रीनाथ धाम BadriNath Dham के कपाट को बंद कर दिया गया.बद्रीनाथ धाम के कपाट अगले 6 महीनों के लिए बंद रहैंगे. इसी के साथ चार धाम को होने वाली यात्रा को भी विराम मिल गया है. आज BadriNath Dham मंदिर के कपाट को बंद करने से पहले पूरे परिसर को 10 क्विटल फूलों से सजाया गया और शाम तक करीब 10 हजार श्रद्धालुओं ने दर्शन किये.

BadriNath Dham के कपाट बंद होने से पहले पंच पूजन की प्रकिया

बद्रीनाथ धाम के कपाट को पूरे शीतकाल के लिए बंद किये जाने से पहले परंपरागत रुप से पांच दिन तक चलने वाली पंच पूजन की प्रक्रिया की जाती है. इस दौरान एक खास परंपरा निभाई जाती है, जिसमें धाम के पुजारी रावल स्त्रीवेश में मंदिर के भीतर प्रवेश करते है, भगवान विष्णु की पूजा करते है, फिर उल्टे पांव वापस आते हैं. इस दौरान भगवान विष्णु के बड़े भाई उद्धव जी के चल विग्रह को गर्भगृह से बाहर लाया जाता है. बद्रीनाथ धाम में पंच पूजन की प्रक्रिया 14 नवंबर से शुरु हुई थी.

BADRINATH TEMPLE CLOSED
BADRINATH TEMPLE CLOSED

 पंच पूजन के पांच दिन में क्या क्या हुआ खास ?

बद्रीनाथ धाम  में हर साल की तरह इस साल भी बद्री विशाल के कपा को बंद करने से पहले पारंपरिक पंच पजून की परंपरा निभाई गई जिसमें  पहले दिन बद्री विशाल के प्रांगण में मौजूद  भगवान गणेश के मंदिर के द्वार बंद किये गये. फिर दूसरे दिन आदि केदारेश्वर केदारेश्वर के मंदिर और आदि शंकराचार्य के मंदिर के कपाट बंद हुए. तीसरे दिन खड्ग पुस्तक पूजन के बाद वेद ऋचाओं का पाठ पूरा किया गया.

 स्त्री रुप में रावल क्यों करते हैं बद्री विशाल की पूजा

भगवान बद्री विशाल की पंच पूजा में चौथे दिन होने वाली पूजा खास होती है. इस दिन मंदिर के रावल मंदिर के भीतर स्त्री रुप में प्रवेश करते हैं और वहां  जाकर भगवान विष्णु के बड़े भाई उद्धव जी को मंदिर से बाहर लाते हैं . फिर मंदिर के अंदर मां लक्ष्मी को अगले 6 महीने के लिए  भगवान विष्णु के वामांग में स्थापित कर दिया जाता है. रिश्ते में उद्धवजी भगवान विष्णु के बड़े भाई और मां लक्ष्मी के जेठ लगते हैं . ग्रामीण परंपरा के मुताबिक जेठ के सामने छोटे भाई की अर्धांगिनी नहीं जाती हैं. इसलिए जब मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के वामांग मे स्थापित किया जाता है तो  भगवान उद्धव के विग्रह को लेकर बाहर आते हुए रावल उल्टे पैर बाहर आते हैं.

पाचंवे दिन तमाम रीति रिवाजों को पूरा करते हुए बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद कर दिये जाते हैं. इस साल भी तमाम पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ कपाट को बंद करने की प्रक्रिया की गई. बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट समेत तमाम पुजारियों की उपस्थिति में माता लक्ष्मी की पूजा की गई  और उन्हें कढ़ाई भोग चढाने के बाद कपाट को बंद कर दिया गया.

मान्यता है कि मां लक्ष्मी को बद्री विशाल के साथ गर्भगृह में स्थापित करने के बाद मंदिर के पुजारी रावल भावुक हो जाते हैं.इसलिए उन्हें मंदिर से बाहर उल्टे पैर लाया जाता है. ताकि वो पलट कर वो दृश्य ना देखें.  कपाट को बंद करने के दौरान भगवान बद्री को माणा गांव की अविवाहित कन्याओं द्वारा बनाये गये घृत कंबल को ओढ़ाकर कपाट को बंद कर दिया जाता है . कहा जाता है कि जब 6 महीने के बाद इस कपाट को खोला जाता है तो यहां जलाया गया दीपक जलता हुआ ही मिलता है.

आपको बता दें कि इस साल बद्रीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल को सुबह 6 बजे खुले थे. पूरे छ महीनों के बाद कपाट को शीतकाल के लिए बंद कर दिया गया है.

 

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