इलाहाबाद उच्च न्यायालय Allahabad HC के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने बलात्कार के एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि पीड़िता ने शराब पीकर आवेदक के घर जाने के लिए सहमत होकर “खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया है”.
पिछले महीने अपने आदेश में न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि महिला एमए की छात्रा है और इसलिए वह “अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी”.
यह खबर ऐसे वक्त पर आई है जब बलात्कार के प्रयास के एक दूसरे मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्रा के पारित “असंवेदनशील” आदेश पर रोक लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा था.
चौतरफा हो रही है फैसले की आलोचना
गुरुवार को खबर आने के बाद राजनेताओं समेत कई लोगों ने जस्टिस संजय कुमार सिंह के आदेश पर सवाल उठाए हैं.
शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “इलाहाबाद हाईकोर्ट को वाकई बेहतर जजों की जरूरत है. जस्टिस मिश्रा के खिलाफ उनके दयनीय फैसले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी और अब हमारे पास यह है.”
Allahabad HC का एक और विवादास्पद आदेश
इसी साल 17 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने आदेश में कहा, “बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे निकल गया था. अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच का अंतर मुख्य रूप से दृढ़ संकल्प की अधिक डिग्री में निहित है.”
उन्होंने अपने आदेश में किसी लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना, अपराधी पर बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं माना था, तथा उसने “तैयारी के चरण” और “वास्तविक प्रयास” के बीच अंतर स्पष्ट किया.
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वता संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाते हुए था कि उच्च न्यायालय का आदेश “पूरी तरह से असंवेदनशील, अमानवीय” और “कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ” था.
कोर्ट ने इस मामले में जज के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश की थी.
क्या है मामला?
इससे पहले, आवेदक की ओर से प्रस्तुत किया गया था कि यह महिला का एक स्वीकृत मामला था कि वह एक वयस्क थी और पीजी हॉस्टल में रहती थी. वह अपनी मर्जी से अपनी महिला मित्रों और उनके पुरुष मित्रों के साथ एक रेस्तरां में गई, जहाँ सभी ने एक साथ शराब पी. इसके कारण वह बहुत नशे में हो गई.
आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि महिला अपने दोस्तों के साथ सुबह 3 बजे तक बार में रही. चूंकि उसे सहारे की जरूरत थी, इसलिए वह खुद आवेदक के घर जाकर आराम करने के लिए तैयार हो गई.
उसका यह आरोप कि आवेदक उसे अपने रिश्तेदार के फ्लैट में ले गया और उसके साथ दो बार बलात्कार किया, झूठा है और रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों के खिलाफ है, वकील ने अदालत को बताया.
यह तर्क दिया गया कि महिला द्वारा बताए गए मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, यह बलात्कार का मामला नहीं है, बल्कि संबंधित पक्षों के बीच सहमति से संबंध का मामला हो सकता है.
अदालत ने कहा, “पक्षों के विद्वान वकील को सुनने और मामले की पूरी तरह से जांच करने के बाद, मुझे लगता है कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि पीड़िता और आवेदक दोनों ही बालिग हैं. पीड़िता एम.ए. की छात्रा है. इसलिए, वह एफआईआर में बताए गए अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी.”
“इस न्यायालय का मानना है कि यदि पीड़िता के आरोप को सच मान भी लिया जाए, तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया और इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार है. पीड़िता ने भी अपने बयान में इसी तरह का रुख अपनाया है. उसकी मेडिकल जांच में उसकी योनि की झिल्ली फटी हुई पाई गई, लेकिन डॉक्टर ने यौन उत्पीड़न के बारे में कोई राय नहीं दी.”
आवेदक को जमानत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, “मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के साथ-साथ अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, अभियुक्त की मिलीभगत और पक्षों के विद्वान वकील की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, मेरा मानना है कि आवेदक ने जमानत के लिए उपयुक्त मामला बनाया है.”
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