Friday, September 19, 2025

Delhi riots case: हाई कोर्ट से जमानत न मिलने पर उमर खालिद ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा

- Advertisement -

सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र उमर खालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने उमर को राष्ट्रीय राजधानी में फरवरी 2020 के सांप्रदायिक दंगों Delhi riots case के पीछे कथित साजिश से जुड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया गया था.

Delhi riots case: हाई कोर्ट ने क्यों नहीं दी जमानत

2 सितंबर को, उच्च न्यायालय ने खालिद और कार्यकर्ता शरजील इमाम सहित नौ आरोपियों की ज़मानत याचिकाएँ यह कहते हुए खारिज कर दी थीं कि “प्रदर्शनों या विरोध प्रदर्शनों की आड़ में” हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती. जिन आरोपियों की ज़मानत याचिका खारिज की गई, उनमें मोहम्मद सलीम खान, शिफ़ा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद शामिल हैं. उच्च न्यायालय की एक अलग पीठ ने उसी दिन एक अन्य सह-आरोपी तस्लीम अहमद की ज़मानत याचिका भी खारिज कर दी.
पिछले हफ़्ते, इमाम और फ़ातिमा ने उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया था.
अपने फ़ैसले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संविधान अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत विरोध प्रदर्शन के अधिकार की रक्षा करता है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है और इसे “उचित प्रतिबंधों” के भीतर ही रहना चाहिए. न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ ने कहा, “अगर विरोध प्रदर्शन के अप्रतिबंधित अधिकार के प्रयोग की अनुमति दी गई, तो यह संवैधानिक ढाँचे को नुकसान पहुँचाएगा और देश में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करेगा.”

किस मामले में जेल में बंद है उमर खालिद और दूसरे आरोपी

आरोपियों को 2020 के दिल्ली दंगों के कथित “मास्टरमाइंड” होने के आरोप में यूएपीए और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था. इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से ज़्यादा घायल हुए थे. यह हिंसा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी.
निचली अदालतों द्वारा पहले खारिज की गई ज़मानत याचिकाओं के बाद उच्च न्यायालय में ज़मानत याचिकाएँ दायर की गईं. आरोपियों ने तर्क दिया कि वे पहले ही चार साल से ज़्यादा समय तक हिरासत में रह चुके हैं और उनका मुक़दमा अभी तक पूरा नहीं हुआ है. उन्होंने सह-आरोपी नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा के साथ समानता की माँग की, जिन्हें 2021 में ज़मानत दी गई थी.

दिल्ली पुलिस ने क्या कहकर किया जमानत का विरोध

दिल्ली पुलिस ने ज़मानत का विरोध करते हुए दोहराया कि दंगे “स्वतःस्फूर्त” नहीं थे, बल्कि समुदायों को विभाजित करने और भारत को वैश्विक स्तर पर शर्मिंदा करने के लिए रची गई एक “सुनियोजित, सुनियोजित साज़िश” थी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद के साथ तर्क दिया कि यूएपीए के तहत आरोपों की गंभीरता के कारण उन्हें लगातार हिरासत में रखा जाना ज़रूरी है.
खालिद, इमाम और अन्य ने लगातार आरोपों का खंडन किया है और मामले को राजनीति से प्रेरित बताया है. वे 2020 से हिरासत में हैं और उन्हें केवल कुछ समय के लिए अंतरिम ज़मानत मिली है.

ये भी पढ़ें-Bihar SIR: चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव अधिकारियों से आधार कार्ड को अतिरिक्त पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करने को कहा

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news