Friday, October 18, 2024

Bismillah Khan: शहनाई के ‘उस्ताद’, जिसने बनाया पूरी दुनिया को अपना मुरीद, 21 मार्च 1916 को बिहार में हुआ था जन्म

Bismillah Khan: “सिर्फ संगीत ही है जो इस देश की विरासत और तहज़ीब को एकाकार करने की ताकत रखता है”. ये अल्फाज भारत रत्न और शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने बयां किये थे. शहनाई को पूरी दुनिया में एक नई पहचान दिलाने वाले बिस्मिल्ला खां साहब को रुख़सत हुए यूं तो कई साल गुजर चुके हैं, लेकिन उनकी शहनाई की गूंज आज भी सबको अपना दीवाना बना देती है.आज 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्ला खां साहब का जन्म बिहार के डुमराव जिले में हुआ था.

Bismillah Khan
Bismillah Khan

6 साल की उम्र में अपने पिता पैगंबर खां के साथ वह वाराणसी चले आए थे. यहां उनकी शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और शांतिनिकेतन में हुई.उनका परिवार पिछली पांच पीढ़ियों से शहनाई वादन के क्षेत्र में असरदार हैसियत रखता था. उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर रजवाड़े के दरबारी संगीतकार भी रह चुकें हैं.

चाचा से शहनाई सीखने का किया था आगाज

यहीं पर उन्होंने अपने चाचा अली बख्श विलायतु से छोटी उम्र में ही शहनाई बजाना सीखना शुरू कर दिया था.उनके परिवार वालों को शुरू से ही राग दरबारी बजाने में महारत हासिल थी.इस महारत को उन्होंने अपनी लगन और जुनून से उस मुकाम पर पहुंचा दिया कि जहां ‘शहनाई का मतलब बिस्मिल्ला खां’ हो गया.1947 को जब भारत आजाद हुआ था तो बिस्मिल्ला खां ने दिल को छू लेने वाली धुन बजाई थी. उसी समय से यह परंपरा चली आ रही है और प्रधानमंत्री के भाषण पर दूरर्शन पर उनकी मधुर धुन आज भी सबको भावुक कर देती है.

देश के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारों से नवाजे गए बिस्मिल्ला खां

अपनी शहनाई से सबको मंत्रमुग्ध करने वाले बिस्मिल्ला खां साहब भारत में दिए जाने वाले सभी बड़े पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं. उनको 2001 में देश के सर्वोत्तम पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया. इसके अलावा इन्हें 1968 में पद्म भूषण,1980 में पद्म विभूषण,1961 में पद्म श्री, 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इसके अलावा 1930 में ऑल इंडिया म्यूजिक कॉफ्रेंस में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का पुरस्कार भी मिला.मध्य प्रदेश सरकार ने भी अपने यहां के सर्वोच्च संगीत पुरस्कार ‘तानसेन’ की पदवी देकर उन्हें सम्मानित किया था.

Bismillah Khan
Bismillah Khan

कई लोकधुनों को बजाने में थे महारथी

उस्ताद खां संगीत की लोकधुनें बजाने में माहिर थे.जिसमें ‘बजरी’, ‘झूला’ और ‘चैती’ जैसी कठिन और प्रतिष्ठित धुनों पर महारत हासिल करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की थी. इसके अलावा इन्होंने क्लासिकल और मौसिकी में भी शहनाई को दुनिया में सम्मान दिलाया.

शहनाई के शहंशाह दिल से भी थे राजा

शहनाई के बादशाह बिस्मिल्लाह खां साहब दिल से भी बादशाह ही थे.वह अपनी दरियादिली के लिए भी जाने जाते थे.अपनी शहनाई की कमाई का सारा पैसा वह परिवार और जरूरतमंदों पर खर्च कर देते थे.अपने लिए वह बिल्कुल भी चिंता नहीं करते थे. इसके कारण उन्हें कई बार आर्थिक दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा था.इसी वजह से सरकार को आगे आकर उनकी मदद करनी पड़ी थी.

यह भी पढ़ें – CM Yogi Adityanath ने Invest UP के कार्यालय का किया उद्घाटन, कहा- उद्योग बन्धु से इन्वेस्ट UP बनना अपने आप में एक रिफॉर्म

एक ख्वाहिश रह गयी अधूरी

उस्ताद अपनी एक ख्वाहिश को साथ लिए हुए दुनिया से अलविदा कह गए. उनकी बड़ी इच्छा थी कि वह एक बार इंडिया गेट पर शहनाई बजाएं, मगर वह पूरी न हो सकी. उनके सम्मान में उनके साथ उनकी शहनाई को भी ‘सुर्पुदे’ खाक कर दिया गया.बिस्मिल्ला खां साहब 21 अगस्त 2006 को इस दुनियां से रुखसत हो गए, लेकिन उनकी शहनाई की गूंज हर साल स्वाधीनता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण के बाद आज भी सुनाई देती है.

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news