मार्च खत्म हो रहा है और इसके साथ ही खत्म हो गया वो विवाद जो इस महीने के शुरु होने के साथ शुरु हुआ था. हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों की पिटाई और दुर्व्यवहार वाले विवाद की. जी हां अब न सोशल मीडिया पर बिहार ट्रेंड कर रहा है न तमिलनाडु और इन होनों राज्यों के साथ जो मनीष कश्यप SON OF BIHAR ट्रेंड कर रहा था अब वो भी बंद हो गया है.
कहा है अब मनीष कश्यप
आप सोच रहे होंगे कि जब मनीष कश्यप ट्रेंड नहीं कर रहा तो हम आज उसकी बात क्यों कर रहे हैं. तो जनाब कई बार तूफान गुज़र जाने के बाद ही इस बात की समीक्षा करना ज़रूरी होता है कि क्या तूफान से बचा जा सकता था, तूफान से किसे ज्यादा नुकसान हुआ. कौन है जिसने तूफान में भी लाभ पाया और सबसे जरूरी होता है तूफान के गुज़र जाने के बाद उससे हुए नुकसान का आकलन करना.
तो सबसे पहले आपको बता दें कि मनीष कश्यप है कहां तो इस वक्त बिहार की राजनीति से दूर मनीष तमिलनाडु पुलिस की गिरफ्त में है. वहां उसे 30 मार्च को मदुरै की अदालत में पेश किया गया. पुलिस अब उससे पूछताछ कर रही है. उसपर तमिलनाडु की साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है.
मनीष कश्यप पर क्या है आरोप
आपको थोड़ा पीछे ले जाकर याद दिला दें कि मनीष कश्यप पर तमिलनाडु में बिहारियों के साथ कथित हिंसा के मामले में फर्जी वीडियो वायरल करने का आरोप है. बिहार के साथ-साथ तमिलनाडु में भी उस पर कई मामले दर्ज किए गए हैं. इसके पहले आर्थिक अपराध इकाई की टीम पांच दिन की रिमांड लेकर मनीष से पूछताछ कर चुकी है. अब तमिलनाडु पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर मनीष कश्यप को तमिलनाडु लेकर चली गई. तमिलनाडु में मनीष कश्यप के खिलाफ 13 मामले दर्ज हैं.
अब क्यों अकेला छोड़ दिया गया मनीष कश्यप
मनीष बिहार से बाहर क्या गया. सोशल मीडिया पर उसके समर्थक भी शांत हो गए. अब कोई मनीष के लिए इंसाफ की लड़ाई नहीं लड़ रहा है. राजनीतिक पार्टियां भी उसको भूल गई हैं. मनीष आज अकेले अपनी लड़ाई लड़ रहा है.
मनीष मामले से क्या सबक मिलता है
तो मनीष मामले से हमें कुछ सबक लेना चाहिए. जी हां मनीष मामले में एक नहीं कई सबक हैं. सबसे पहला सबक तो ये है कि फेक न्यूज़ कितनी घातक हो सकती है. वो कई मासूम जिंदगियों के लिए खतरनाक हो सकती है. जैसा तमिलनाडु मामले में दिखा. हज़ारों मज़दूर घबराहट का शिकार हो गए. सोचिए अगर तमिलनाडु पुलिस ने सजगता नहीं दिखाई होती तो ये भगदड़ कितनों के लिए मुसीबत का सबब बन जाती.
जल्द से जल्द तमिलनाडु छोड़ने की होड़ में कई लोग अपनी मेहनत की कमाई मुनाफाखोर ट्रांस्पोटरों को देने के लिए मज़बूर हो जाते. नौकरी जाती सो अलग, बच्चों का स्कूल भी छूट जाता. यानी एक परिवार जो मेहनत से कमाकर जिंदगी को आसान बनाने की कोशिश कर रहा था उसकी जिंदगी बेवजह किसी की शरारत का शिकार हो जाती.
मनीष कश्यप को फेक न्यूज़ से क्या हुआ नुकसान
दूसरा नुकसान मनीष जैसे लोगों का होता है जो राजनीति का मोहरा बन जाते हैं और आखिर में अपनी लड़ाई अकेले लड़ने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. मनीष जो कल तक भगवा कैंप का चहेता था जब गिरफ्तार हुआ तो कौन उसके साथ खड़ा है. आज वो जेल में है अपनी कानूनी लड़ाई अकेला झेल रहा है.
उसके परिवार का खर्च उठाने अब कौन आगे आया है. क्या सोशल मीडिया पर उसे बिहार का गौरव बताने वाले, उसके नाम से बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को चुनौती देने वाले आज उसके साथ हैं. गिरफ्तारी के बाद मनीष के आंसुओं का खूब जिक्र हुआ लेकिन क्या इस कानूनी लड़ाई में उसके ये आंसू और गिरफ्तारी से पहले दी गई सत्ता को चुनौती काम आएगी.
ये सवाल अगर हमने आज से 15 दिन पहले पूछा होता, जब मनीष को बिहार की शान कहा जा रहा था तब, आप कहते मनीष इतना पावरफुल हो गया है इतना प्रसिद्ध हो गया है. लेकिन जनाब ये प्रसिद्धि और पावर आज क्या उसके काम आ रही है. अब जिंदगी भर उसकी पत्रकारिता पर फेक न्यूज़ फैलाने का इल्ज़ाम रहेगा.
उसे लोग न्यूज़ के लिए नहीं फेक न्यूज के लिए याद करेंगे. हो सकता है कि ऐसी बदनामी उसे नेता बना दे लेकिन बतौर पत्रकार अब वो हमेशा शक के घेरे में होगा. अगर मनीष का मकसद फेक न्यूज़ फैला कर नेता बनना था तो वो नेता ज़रूर बन जाएगा लेकिन वहां भी उसका नाम दंगाई नेताओं में ही लिया जाएगा.
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