देश की राजनीति में भाषा का स्तर दिन पर दिन गिरता ही जा रहा है. अपशब्द कह देना और व्यक्तिगत हमले करना तो अब आम बात होती जा रही है. लेकिन अगर बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की करें तो शायद वो देश के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो गाली खाकर भी सत्ता की मलाई पचा लेते हैं. अगर तसल्ली से सोचें तो नीतीश कुमार अभद्रता का जहर पीकर भगवान शिव की तरह नीलकंठ ही बनते जा रहे हैं. मतलब नये युग का नीलकंठ.
पिता-पुत्र के बीच में फंसे नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री सच में बहुत खास है. वो देश के अकेले ऐसे नेता है जो बार-बार पाला बदलते हैं लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ते. ये कोई आसान काम नहीं है. वैसे आजकल नीतीश कुमार को एक ही पार्टी के दो नेताओं ने नाक में दम कर रखा है. ये दोनों नेता रिश्ते में पिता-पुत्र हैं. बेटा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिखंडी कहता है तो पिता जी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मटिरियल बता देते हैं. जी हां हम बता कर रहे हैं आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और उनके बेटे सुधाकर सिंह की. फिल्मी भाषा में कहें तो सुधाकर सिंह और जगदानंद सिंह की जोड़ी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिक्विड ऑक्सीजन में डाल दिया है. लिक्विड जीने नहीं दे रहा है और ऑक्सीजन उन्हें मरने नहीं दे रहा है.
जी हां आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. वो कभी उन्हें शिखंड़ी तो कभी नाइट गार्ड और तानाशाह तो कभी भिखारी बता रहे हैं. नीतीश सरकार के पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने राजनीतिक मर्यादाओं को तो जैसे ताक पर रख दिया है. वो मुख्यमंत्री के खिलाफ लगातार अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ उनके पिता जगदानंद सिंह नीतीश कुमार के पीएम बनने की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
अगले प्रधानमंत्री है नीतीश कुमार?
दरअसल 5 जनवरी से बिहार में समाधान यात्रा कर रहे मुख्यमंत्री से जब पूछा गया कि क्या वो इसके बाद देश यात्रा पर निकलेंगे तो उन्होंने साफ तो नहीं कहा पर बजट सत्र के बाद देश की यात्रा पर निकलने के संकेत दिये. नीतीश कुमार के इसी बयान पर आरजेडी के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “नीतीश कुमार को लालू यादव का आशीर्वाद मिला है इसलिए वह प्रधानमंत्री बनेंगे. इसके लिए उन्हें देश की यात्रा पर निकलना होगा.”
जगदानंद सिंह ने कहा कि लालू यादव के समर्थन और सहयोग से 1996 में एचडी देवेगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने थे. उसी तरह अब नीतीश कुमार भी पीएम बनेंगे. जगदानंद सिंह यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि लालू एक कर्मठ नेता हैं. उन्होंने नीतीश कुमार को टीका लगा दिया है. इसके बाद नीतीश कुमार जल्द ही देश की यात्रा पर निकल जाएंगे.
यानी बेटे सुधाकर सिंह लगातार नीतीश कुमार को भिखारी, शिखंड़ी, नाइट गार्ड, तानाशाह जैसे शब्दों से नवाज रहे हैं तो पिता सभ्य भाषा में सीएम को अब बिहार की राजनीति से विदाई लेने को कह रहे हैं. मतलब ये कि पिता-पुत्र की भाषा भले अलग हो लेकिन मंशा दोनों की एक ही है कि किसी तरह नीतीश जी बिहार की राजनीति को अलविदा कह दें. इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि पिता-पुत्र दोनों पर आरजेडी संस्थापक लालू यादव का आशीर्वाद है. इसलिए शायद तेजस्वी यादव अपने नेता सुधाकर सिंह की बदतमीजी बंद करवाने के बजाए उनपर सिर्फ निगरानी रखने की बात कर रहे हैं.
भरोसे लायक नहीं नीतीश कुमार?
वैसे अगर नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर पर नज़र डालें तो उनको भरोसे के लायक कहना आसान नहीं होगा. नीतीश पाला बदलने में एक्सपर्ट रहे हैं. इसलिए हाल फिलहाल में तेजस्वी यादव ने उन्हें पलटू चाचा के खिताब से भी नवाज़ा था. हलांकि ये बात और है कि तेजस्वी कभी भी पलटू के साथ चाचा लगाना नहीं भूले थे इसलिए शायद अब उन्हीं चाचा के बूते वो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का सपना देख रहे हैं.
कैसा रहा नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर?
तो चलिए पहले तेजस्वी के पलटू चाचा के राजनीतिक सफर पर एक नज़र डाल लेते हैं. नीतीश कुमार के राजनैतिक जीवन की शुरुआत राममनोहर लोहिया, एसएन सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के साथ शुरू हुई. 1985 में वह जनता दल से जुड़े और इसी साल पार्टी के टिकट पर हरनौत से विधायक चुने गए. लेकिन 5 साल जनता दल में गुजारने के बाद 1989 में नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में अपने कॉलेज के सहपाठी लालू प्रसाद यादव का नेता विपक्ष के तौर पर समर्थन किया और उसके बाद दोनों जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ गए.
कहा जाता है कि जब 1990 में लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब नीतीश कुमार की उसमें अहम भूमिका थी लेकिन लालू-नीतीश की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली. 1994 में जनता दल से बगावत कर नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया.
इसके बाद तो जैसे पाला बदलना नीतीश कुमार की फितरत बन गई. पिछले करीब तीन दशक के दौरान नीतीश कुमार कभी बीजेपी की तो कभी आरजेडी की गोद में बैठे नज़र आए. बीजेपी-आरजेड़ी के बीच पाला बदले के नीतीश कुमार के पास दो ही फार्मूले हैं. बीजेपी से दामन छुड़ाना हो तो कम्युनलिज्म यानी सांप्रदायिकता का आरोप लगाते हैं और आरजेडी से हाथ छुड़ाने के लिए करप्शन यानी भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ देते हैं. नीतीश कुमार इन दो C यानी कम्युनलिज्म और करप्शन का इस्तेमाल कर पिछले करीब तीन दशकों में कम से कम 4 बार अपना हृदय परिवर्तन कर चुके हैं.
नीतीश ने जब 1996 में पहली बार बीजेपी से हाथ मिलाया तो वो अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. ये वो साल था जब जनता दल अध्यक्ष शरद यादव और लालू प्रसाद यादव के बीच मनमुटाव के बाद लालू ने राष्ट्रीय जनता दल नाम से अपनी नई पार्टी बना ली थी.
लालू जनता दल से अलग क्या हुए नीतीश के भाग से छींका ही टूट गया. इसके बाद तो वो 2000 से 2010 तक BJP के समर्थन से 3 बार CM बने. नीतीश पहली बार 3 मार्च 2000 को बीजेपी की अगुवाई वाले NDA के समर्थन से पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से 7 दिन बाद ही 10 मार्च को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
इसके बाद 2003 में नीतीश कुमार की समता पार्टी ने शरद यादव की जनता दल के साथ अपना विलय कर लिया. हालांकि नीतीश ने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन जारी रखा. इसका नतीजा ये हुआ की जनता दल यूनाइटेड का गठन हुआ, जिसके मुखिया बने नीतीश कुमार.
नीतीश दूसरी बार 2005 में मुख्यमंत्री बने और उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर 5 साल सरकार चलाई. इस गठबंधन ने 2010 में भी बहुमत हासिल किया और नीतीश तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन 2013 में अचानक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता जाग गई और उन्होंने बीजेपी के नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनावों के लिए NDA चेहरा बनाने पर 2013 में गठबंधन तोड़ दिया. लेकिन बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ सरकार चलाना नीतीश के लिए आसान नहीं था. इसलिए सरकार बनाने के कुछ महीने बाद ही मई 2014 में नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया. तब करीब 6 महीनों के लिए जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने थे.लेकिन नीतीश ज्यादा दिन अपनी प्यारी कुर्सी से दूर नहीं रह पाए और फरवरी 2015 में चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. इस बार उन्होंने फिर आरजेडी और कांग्रेस से हाथ पकड़कर सरकार बनाई थी.
2015 विधानसभा चुनावों के बाद 20 नवंबर 2015 को नीतीश कुमार पांचवीं बार बिहार के CM बने. इसबार लालू के दोनों बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप यादव उनके डिप्टी सीएम बने थे. लेकिन ये सरकार सिर्फ 2 साल चली और 2017 में करप्शन के नाम पर नीतीश ने RJD से नाता तोड़ लिया और 24 घंटे के अंदर ही बीजेपी के समर्थन से फिर से छठी बार मुख्यमंत्री बन गए. नीतीश और बीजेपी का गठबंधन 2019 लोकसभा चुनावों तक ठीक चला और NDA ने अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीत लीं. लेकिन इसके बाद बीजेपी की बिहार में महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी और 2020 विधानसभा चुनाव आते-आते BJP और नीतीश के संबंधों में खटास आ गई.
बीजेपी और नीतीश कुमार में क्यों आई दूरी?
खटास मुख्यमंत्री पद को लेकर थी. जिसको लेकर दोनों पार्टियों में खूब जुबानी जंग हुई. नतीजा ये हुआ कि चिराग पासवान की पार्टी ने अलग चुनाव लड़ा लेकिन नीतीश चुनाव से पहले ही बीजेपी से अपने आप को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करा चुके थे. लिहाजा विधानसभा चुनावों में 115 सीट जीत कर आरजेडी के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद बीजेपी के समर्थन से नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. कुर्सी तो नीतीश कुमार को मिल गई लेकिन उन्हें ये एहसास भी हो गया कि बीजेपी धीरे-धीरे उनकी जड़ें काट रही है इसलिए करीब 2 साल तक बीजेपी को अधर में लटकाकर रखने के बाद 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने NDA से नाता तोड़ने का ऐलान करते हुए इस्तीफा दिया और 10 अगस्त को वह आरजेडी के समर्थन से आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए.
बीजेपी में जो जुबान सुशील मोदी और गिरीराज सिंह नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे थे वो ही जुबान अब आरजेडी के सुधाकर सिंह और उनके पिता बोल रहे हैं. मकसद दोनों तरफ साफ है कि नीतीश जी किसी भी तरह कुर्सी छोड़ दें. जब नीतीश ने महीना भर पहले तेजस्वी को 2025 में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताया तो जानकार कहने लगे इस मास्टर स्ट्रोक से नीतीश कुमार 2 साल के लिए अपनी कुर्सी बचा ले गए हैं. लेकिन लगता है कि पलटू चाचा की राजनीति को तेजस्वी यादव समझने लगे हैं इसलिए विधायकों के कंधे पर बंदूक रख कर चाचा की कुर्सी खींचने की कोशिश में लगे हैं. देखना ये है कि खुद को नीलकंठ बना लेने वाले चाचा इस बार फिर जहर पीकर सीएम के रूप में अमर हो पाएंगे. या फिर एक बार गुलाटी मारकर बीजेपी की गोद में बैठ जाएंगे.