Friday, February 7, 2025

Bihar Reservation Policy: सुप्रीम कोर्ट का 65% आरक्षण रद्द करने वाले HC के फैसला पर रोक लगाने से इनकार, सितंबर में होगी फिर सुनवाई

Bihar Reservation Policy: सोमवार को नीतीश सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण 65% बढ़ाने के फैसले को रद्द करने वाले पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हलांकि कोर्ट इस फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की याचिका पर सुनवाई करने तैयार हो गई है. इश मामले में अगली सुनवाई सितंबर में होगी.
20 जून 2024 को पटना हाईकोर्ट ने संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाते हुए बिहार सरकार के एसटी/एससी/ओबीसी/ईबीसी के लिए 65% तक कोटा बढ़ाने के फैसले को रद्द कर दिया था. बिहार सरकार ने आरक्षण बढ़ाने फैसला उसके 2023 के जाति सर्वेक्षण के परिणाम को आधार बनाकर किया था.

महागठबंधन की सरकार ने बढ़ाई थी Bihar Reservation की दर

बिहार सरकार ने नवंबर 2023 में दो आरक्षण विधेयकों – बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (एससी, एसटी, ईबीसी और ओबीसी के लिए) संशोधन विधेयक और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण संशोधन विधेयक, 2023 – के लिए गजट अधिसूचना जारी की थी, जिससे मौजूदा 50% से 65% तक कोटा बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया था. इसके साथ ही आर्थिक और कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10% जोड़ने के बाद राज्य में कुल आरक्षण 75% तक पहुंच गया था.

जाति जनगणना के आकड़ों के आधार पर बढ़ाया गया था आरक्षण

राज्य में जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर, सरकार ने अनुसूचित जाति (एससी) के लिए कोटा बढ़ाकर 20%, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 2%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए 25% और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 18% कर दिया था.
गजट अधिसूचना में कहा गया था कि, “जाति आधारित सर्वेक्षण 2022-23 के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों के विश्लेषण पर, यह स्पष्ट है कि पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बड़े हिस्से को बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि वे अवसर और स्थिति में समानता के संविधान में पोषित उद्देश्य को पूरा कर सकें.”

कोटा वृद्धि को याचिकाकर्ताओं ने बताया था भेदभावपूर्ण

जबकि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राज्य सरकार द्वारा आरक्षण में बढ़ोतरी उसकी विधायी शक्तियों से परे है. याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा, “संशोधन इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में पारित सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन करते हैं, जिसके तहत अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की गई थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कोटा वृद्धि की नीति भेदभावपूर्ण है और अनुच्छेद 14,15 और 16 द्वारा नागरिकों को दी गई समानता के मौलिक अधिकारों की गारंटी का उल्लंघन करती है.”

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