सड़क पर चलते मज़दूर. हाथों में बच्चा. नंगे पैर. सर पर गठरी. खाली पेट और चेहरे पर परेशानी. ये तस्वीरें अभी 2 साल पहले की ही हैं. कोरोना के दौरान शहरों से बेदखल कर दिया गया वो मज़दूर. वो प्रवासी मज़दूर. जो शहरों में मध्यम वर्ग और अमीरों की सुख सुविधा के लिए धूप, पानी सर्दी सहकर खड़ा रहता है. वो मज़दूर जब आपदा आती है, जब संसाधनों के बंटवारे की बात आती है तब ये मज़दूर शहरों को अखरने लगता है. तब ये मज़दूर अपराधी, बोझ और निकम्मा नज़र आने लगता है. तब ये मज़दूर बिहारी कहलाने लगता है.
बेहतर जीवन की तलाश में घर छोड़ प्रवासी मज़दूर बन जाते है बिहार के लोग
अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ, बेहतर जिंदगी और ज्यादा कमाई, और कभी कभी तो सिर्फ रोजगार की चाह गांवों और गरीब प्रदेशों के लोगों को बड़े शहरों और दूसरे राज्यों की ओर पलायन करने को मजबूर कर देती हैं. अगर आकड़ों की बात करें तो बिहार भारत में प्रवासी श्रमिकों का दूसरा सबसे बड़ा जरिया है. यूपी के बाद बिहार देश के कुल प्रवासी मज़दूरों में से 15% मज़दूर सप्लाई करता है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक यहां का मज़दूर दो जून रोटी की तलाश में निकल पड़ता है.
इन राज्यों में इस मज़दूर को भाषा, खानपान, संस्कृति सभी के साथ एडजस्ट करना पड़ता है. कम पैसे में लंबे समय तक काम करना इसकी खासियत है इसलिए स्थानीय मज़दूरों की नाराजगी का भी ये शिकार होता है. जहां जाता है वहां के हालात का शिकार भी होता है. जैसे कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट में अलगाववाद का तो महाराष्ट्र में स्थानीय लोगों की राजनीति का. लेकिन सर झुका के ये मज़दूर अपने काम में लगा रहता है. क्योंकि ये जानता है इसके अपने राज्य में इसके लिए न रोज़गार है न सम्मान.
गोवा के सीएम ने यूपी-बिहार के मज़दूरों को बताया था अपराधी
इसी सोमवार 1 मई को गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने पंजी में मज़दूर दिवस के एक कार्यक्रम में दावा किया कि गोवा में जितने भी अपराध होते हैं, उनमें 90 प्रतिशत अपराध के लिए बिहार यूपी के प्रवासी मजदूर जिम्मेदार हैं. ये लोग अपराध करके अपने प्रदेश भाग जाते हैं. प्रमोद सावंत ने प्रवासी मजदूरों को काम देने वाले ठेकेदारों से कहा कि उन्हें काम देने से पहले उनका लेबर कार्ड बनायें और उनके काम पर नजर रखें, ताकि उनका रिकार्ड रखा जा सके. सीएम सावंत ने कहा कि बिहार यूपी के प्रवासी मजदूर अपराध को अंजाम देकर अपने राज्यों में भाग जाते हैं और फिर उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है.
बीजेपी पर भड़क गया था सोशल मीडिया
गोवा सीएम के इस बयान पर सोशल मीडिया पर लोग भड़क गए. लोगों ने सीएम के इस बयान को बेहद शर्मनाक करार दिया है. बिहार में भी इसको लेकर राजनीति शुरु हुई. कांग्रेस, जेडीयू आरजेडी सभी के नेताओं ने इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरना शुरु कर दिया.
बिहार के नेताओं ने भी कि थी सावंत की आलोचना
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता नीरज कुमार ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला. जेडीयू प्रवक्ता ने बीजेपी से सवाल किया है कि एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ”एक देश, एक कानून” की बात करती है और उसी पार्टी से गोवा के मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों को अपराधी कहते हैं ? उन्हें देश के गृहमंत्री अमित शाह के विभाग से संबंधित ‘नेशनल क्राइम ब्यूरो’ के आंकड़े देखने चाहिए. नीरज कुमार ने गुजरात का जिक्र करते हुए कहा कि गुजरात में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ सबसे ज्यादा फर्जी मुकदमे होते हैं और बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग प्रताड़ित किए जाते हैं.
इस मामले में JDU नेता मनीष सिंह ने पटना सिटी मजिस्ट्रेट के सामने गोवा के मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया. मुकदमा दर्ज करवाते हुए जेडीयू नेता ने कहा कि भारत के संविधान में हर भारतीय को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. देश के किसी भी हिस्से में जाकर रहने का अधिकार है लेकिन भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपने प्रदेश में दूसरे राज्य के लोगों को रोज अपमानित और प्रताड़ित करते रहते हैं. उन्हें लोकतंत्र और संविधान पर भरोसा नहीं है.
बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट कर कहा- केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल जी के बाद अब गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने शर्मनाक बयान देकर बिहार और बिहारियों का घोर अपमान किया है. भाजपा और भाजपाई नेताओं को बिहार और बिहारियों से नफरत क्यों है?
बिहार सरकार क्यों अपमान पर रहती है खामोश
यानी बीजेपी जिसकी पार्टी के सीएम ने गोवा में अपमान किया उसे छोड़ सभी ने प्रमोद सावंत के बयान की आलोचना कर ली लेकिन अब सवाल ये उठता है कि सिर्फ आलोचना से क्या होगा. जब कोई बिहार या बिहारी मज़दूर का अपमान करता है तो उसपर राजनीति क्यों होने लगती है. क्यों नहीं सरकार इस मामले में अपनी नाराजगी उस राज्य और केंद्र की सरकार में दर्ज कराती है. सालों से बिमारू प्रदेश का तमगा लटकाए बिहार कब तक अपमानित होता रहेगा. क्यों नहीं बिहार में रोज़गार के मौके पैदा किए जा सकते. चीन का उदाहरण लें तो चीन के पास सस्ता मज़दूर था. बिहार के पास भी है. चीन ने अपने मज़दूर को अपनी ताकत बनाया और दुनिया भर के उद्योगों को चीन आने को मजबूर कर दिया. फिर बिहार ऐसा क्यों नहीं कर सकता है.
बिहारी अस्मिता जैसी धारणा की कमी है क्या दुर्दशा की वजह
बिहार का मज़दूर हो या नौजवान वो एक बार बाहर जाने के बाद वहां फलने-फूलने के बाद वापस क्यों नहीं आना चाहता. मराठी, मलयाली, तेलगू, पंजाबी, हरियाणवी की तरह बिहारी पहचान पर खुद बिहारी लोगों को विश्वास और सम्मान क्यों नहीं है. सवाल और भी हैं लेकिन जवाब सिर्फ तीन हैं. पहला जवाब राज्य की जातिगत राजनीति जिसके चलते बिहारी कभी एकजुट नहीं हो पाता. दूसरा जवाब बिहार के राजनेता जो विकास और रोज़गार को कभी मुद्दा नहीं बनने देते और तीसरा खुद बिहार के लोग. जो पढ़ने लिखने के बाद अपनी पहचान. अपने प्रदेश के लिए कुछ करने के बजाए जाति और धर्म में ही उलझ के रह जाते हैं. यानी हमारे हिसाब से बिहार की सबसे बड़े परेशानी बिहारी अस्मिता जैसी धारणा का नहीं होना है
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