हमेशा कहा जाता है कि 80 लोकसभा सीट वाला यूपी जिसके साथ होता है, सत्ता की चाबी उसे के पास होती है लेकिन 2024 में ये बात बदलेगी. इस बार यूपी नहीं बिहार के पास होगी सत्ता की चाबी, योगी नहीं नीतीश पहनेंगे किंग मेकर का ताज, और हो सकता है बिहार का ये चाणक्य बन जाए देश का पहला बिहारी प्रधानमंत्री. आप सोच रहे होंगे कि हम दिन में सपना देख रहे हैं क्या, लेकिन ऐसा नहीं है.
रामचरित मानस विवाद से शुरु किया था जाल बुनना
याद कीजिए बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का बयान जिसमें उन्होंने रामचरित मानस को दलित और महिला विरोधी बताया था. तब शायद लोगों ने सोचा होगा कि शिक्षा मंत्री हिंदू विरोधी मुद्दा उठा कर फिजूल में अपनी पार्टी का नुकसान कर रहे हैं और एक तरह से बीजेपी को फायदा पहुंचा रहे हैं लेकिन अगर ध्यान से देखें तो बिहार में तब से ही एक कहानी बुनी जानी शुरू हो गई थी. कहानी थी धार्मिक ध्रुवीकरण के खिलाफ जाति समीकरण की. शायद बीजेपी इस कहानी को ठीक से समझ नहीं पाई इसलिए खुद उसने इस मुद्दे को विधानसभा में उठा कर वहां तक पहुंचा दिया जहां लोगों को इस विवाद की भनक तक नहीं थी. जो नहीं जानते थे वो भी जान गए कि चंद्रशेखर ने रामचरित मानस की चौपाइयों का विरोध क्यों किया. गरीब, पिछड़े, दलित और महिलाओं के दिमाग में ये बात घर कर गई.
यूपी को भी दिखाई राह
बिहार में ये मुद्दा शांत हुआ तो यूपी ने इस मुद्दे को लपक लिया. वहां स्वामी प्रसाद मौर्या ने बड़े जोर शोर से इसे उठाया. नतीजा ये हुआ कि पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस जलाने तक की नौबत आ गई. बात-बात में एनएसए के साथ बुलडोज़र लेकर निकल जाने वाले योगी बाबा स्वामी प्रसाद मौर्या के घर बुलडोज़र चलाना तो दूर उन्हें गिरफ्तार भी नहीं करवा पाए. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस मुद्दे में ऐसे फंसे कि विधानसभा में सफाई देने की जरूरत पड़ गई. यानी दलित बनाम ब्राह्मण मुद्दा तैयार हो गया.
जाति जनगणना से बदलेगी सत्ता की तस्वीर
अब चलते हैं दूसरे मुद्दे पर. जैसा कि हम सब जानते हैं बिहार में CASTE CENSUS जारी है. यानी जातियों की गिनती चल रही है. नीतीश के लिए CASTE CENSUS बड़ा मुद्दा है. जानकार मानते हैं कि इससे नीतीश ने अपनी 2025 की जीत पक्की कर ली है लेकिन ये मुद्दा अब सिर्फ बिहार का नहीं है. यूपी में अखिलेश यादव भी इस मुद्दे को उठा चुके हैं. उन्होंने भी CASTE CENSUS यानी जातियों की गिनती की मांग की है. यानी रामचरित मानस हो या जाति जनगणना. दोनों ही बिहार के मुद्दे हैं जिन्हें समाजवादी पार्टी ने यूपी में उठाया है.
नीतीश ने बिछाई 2024 की बिसात
अब चलिए नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने को देख लेते हैं. तो थोड़ा पीछे 2022 के सितंबर में लौट चलते हैं जब नीतीश कुमार 10 दिन की दिल्ली यात्रा पर निकले थे. यहां उन्होंने सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी, फिर जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी से मिले. इसके बाद नीतीश ने सीपीएम महासचिव सीताराम यचुरी, सीपीआई के महासचिव डी राजा से मुलाकात की. एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जाकर मुलाकात की. फिर वो इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के ओम प्रकाश चौटाला से मिले. साथ ही उन्होंने आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और अपने पुराने मित्र शरद यादव से मुलाकात की. नीतीश सीपीआई माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से भी मिले थे और उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ममता बनर्जी से बात हुई है और ये भी बताया कि सोनिया गांधी से मिलने के लिए वो बाद में आएंगे.
बीजेपी फंस गई नीतीश की बिसात में
इन मुलाकातों के बाद नीतीश जब बिहार लौटे तो बीजेपी ने उनका काफी मज़ाक बनाया था. लेकिन शायद ही तब लोग जानते थे कि बिहार का ये चाणक्य सत्ता के गलियारों में अपनी बिसात बिछा आया है. याद कीजिए 26 फरवरी की पूर्णियां रैली को जिसमें नीतीश कुमार ने कहा था कि सब तैयारी पूरी है बस कांग्रेस के जवाब का इंतजार है. इसके बाद हालात अचानक बदल गए. राहुल गांधी ने संसद में अडानी का मुद्दा उठाया. पूछा प्रधानमंत्री मोदी और अडानी का रिश्ता क्या कहलाता है. इसके बाद राहुल गांधी विदेश चले गए. विदेश में उनके भाषणों को लेकर बीजेपी ने राहुल को घेर लिया और किसी तरह संसद में उनको रोकने में किसी तरह कामयाबी भी पा ली. फिर आया मोदी सरनेम पर राहुल की सदस्यता जाने का वक्त. खूब हंगामा हुआ. बीजेपी ने यहां भी ओबीसी कार्ड खेल कर राहुल को घेरने की कोशिश की लेकिन शायद बीजेपी जानती नहीं थी कि इसी समय का इंतजार तो नीतीश कुमार कर रहे थे.
नीतीश ने दिखाई राहुल और अखिलेश को राह
अब आप क्रोनोलॉजी समझिए . 12 अप्रैल को नीतीश दिल्ली में राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे से मिले. 14 अप्रैल को खड़गे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जाति जनगणना कराने की मांग की. 15 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को चुनौती दी कि अगर वो खुद को ओबीसी का हितैषी मानते हैं तो 2011 के जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करें. साथ ही राहुल गांधी ने एससी, एसटी को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने और आरक्षण पर 50% की अधिकतम सीमा को खत्म करने की मांग भी कर डाली. राहुल ने एक नारा भी दे दिया ‘जितनी आबादी, उतना हक’.
जाति जनगणना पर घिर गए पीएम मोदी
यानी कुछ समझे आप. मुद्दा तो बिहार तय कर चुका था लेकिन कांग्रेस की हामी का इंतज़ार था. नीतीश की चालाकी देखिए . दरअसल जिस मुद्दे से नीतीश ने 2025 में अपनी कुर्सी पक्की कर ली है वही मुद्दा नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी को समझा आए थे और अब जब अखिलेश यादव और राहुल गांधी उस मुद्दे को समझ गए हैं तो नीतीश कुमार की बिछाई बिसात भी साफ नज़र आने लगी है.
गुजरात के चाणक्य पर भारी पड़ेगा बिहार का चाणक्य?
दरअसल इस बार गुजरात के चाणक्य का मुकाबला बिहार के असली चाणक्य से होगा. यानी मुद्दे से लेकर नेता तक अब बिहार का होगा. और अगर सब ठीक रहा तो हो सकता है नीतीश यूपीए के संयोजक नहीं देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी के हक़दार भी साबित हो जाएं…और अगर ऐसा हुआ तो 2024 में बिहार से बीजेपी को लोकसभा में 40 में से एक भी सीट पाने के लाले पड़ जाएंगे.
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