आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के घर ईडी का छापा, फिर उनकी गिरफ्तारी और फिर उनके 5 दिन के लिए ईडी की रिमांड पर भेजे जाने का जो तमाशा चला उसमें एक महत्वपूर्ण खबर दब गई. खबर दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग की है. ख़बर सुप्रीम कोर्ट की थी जहां इस मामले में जजों के सीधे सवालों के जवाब देना सीबीआई और ईडी को मुश्किल हो रहा था. कोर्ट ने सिर्फ सवाल नहीं पूछे बल्कि सीबीआई और ईडी को चेताया भी कि जिरह के दौरान अगर सबूत नहीं दिए तो सिर्फ़ दो सवालों के बाद ये केस गिर जाएगा.
अभी किंगपिन बाहर है, उसका भी नंबर आएगा
सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था कि “ अभी किंगपिन बाहर है, उसका भी नंबर आएगा“. जिसका मतलब ये था कि अगला शिकार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल होंगे. वैसे दूसरे कुछ बीजेपी नेता हाल में दुल्हा बने राघव चड्ढ़ा की गिरफ्तारी की भी बात कर रहे थे. खैर ये तो राजनीति है इसमें सच कम दावे ज्यादा होते हैं लेकिन कोर्ट में ये मामला ठहर पाएगा कि नहीं ये तो सबूतों पर निर्भर करेगा. शायद यही वजह है कि सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया मामले में ईडी-सीबीआई की मांग पर झट से रिमांड दे देनी वाली निचली अदालत ने भी संजय सिंह के मामले में सावधानी बरतते हुए पहले रिमांड देने से मना किया लेकिन जब ईडी इलेक्ट्रॉनिक सबूतों से संजय सिंह का सामना कराने की बात पर अड़ी रही और कहा 10 दिन नहीं तो 7 दिन की रिमांड दे दिया जाए तो कोर्ट ने 5 दिन की रिमांड दे कर मामला निपटाया. लेकिन 5 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया केस में ईडी सीबीआई से जो सवाल पूछे उसे देखते हुए संजय सिंह का केस भी अधर में लटकता सा दिख रहा है.
कोर्ट ने ED-CBI से क्या पूछा
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पांच अक्तूबर को सुनवाई के दौरान सु्प्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय से ये सवाल किया कि सिसोदिया के ख़िलाफ़ सरकारी गवाह बने सह-अभियुक्त के बयान के अलावा क्या कोई और सबूत है? जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एसवी भट्टी की पीठ ने ईडी और सीबीआई की ओर से दलीलें दे रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से सवाल किया, “सबूत कहां हैं? दिनेश अरोड़ा तो ख़ुद भी रिश्वत लेने वालों में से एक थे…दिनेश अरोड़ा के बयान के अलावा क्या कोई और सबूत है?”
सरकारी गवाह नहीं सबूत पेश करो-कोर्ट
बेंच ने ईडी से कहा कि “आपके केस के अनुसार, मनीष सिसोदिया के पास कोई पैसा नहीं आया. तो शराब कंपनियों का पैसा कैसे आया. आपने दो आँकड़े बताए, 100 करोड़ और 30 करोड़ रुपये. ये इन्हें किसने दिया? ऐसे बहुत से लोग हो सकते हैं, जिन्होंने पैसा दिया हो और ये ज़रूरी नहीं कि वो शराब कारोबार से जुड़े हों.” न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि “आपको ये साबित करना होगा कि पैसा कहाँ से किसके पास तक पहुँचा. आपको चेन साबित करनी होगी. ये पूरी तरह से साबित नहीं हो रहा कि पैसा शराब वाली लॉबी से व्यक्ति तक पहुँचा. हम दोनों आपसे सहमत हैं कि ये साबित करना मुश्किल है क्योंकि सबकुछ अंडर-कवर था…लेकिन फिर यहीं से तो आपकी क्षमता दिखेगी.”
क्या ऐसे ही बनाई और बदली जाती है नीतियां
यानी सिर्फ पैसे का नहीं मिलना इस मामले में एक कमज़ोर कड़ी नहीं है. सीबीआई के केस में सबूतों का भारी अभाव है. उसका केस सिर्फ और सिर्फ आरोपियों के सरकारी गवाह बनने के बाद दिए बयानों पर टिका है. जिसे कोर्ट ठोस सबूत नहीं मानता शायद इसी लिए एक दिन पहले यानी 4 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और ईडी से पूछा था कि अगर इस मामले में लाभार्थी पार्टी है तो आरोपी आम आदमी पार्टी को क्यों नहीं बनाया गया. इतना ही नहीं जब ईडी और सीबीआई के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि आप सरकार ने शराब नीति में बदलाव एक विशेष गुट को फायदा पहुंचाने के लिए की जिसके बदले में उन्होंने बाद में पार्टी फंड लिया तो कोर्ट ने कहा क्या सच में सभी सरकारें ऐसे ही नीतियां बनाती हैं. कम शब्दों में कहें तो कोर्ट इस मामले में ईडी सीबीआई की जांच और तर्कों पर तंज कस रहा है और दोनों जांच ऐजेंसियां बिना सबूतों के कोर्ट को कहानियां सुना रही हैं.
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