Sunday, September 8, 2024

उम्र 55 की दिल बचपन का, 90 की उम्र में बुजुर्ग महिलायें चली पढ़ाई करने …

ठाणे(THANE,MURBAD)

मुंबई से लगभग 150 किलोमीटर दूर ठाणे जिले के मुरबाद तालुका में इन दिनों  कुछ खास तरह के स्टूडेंट स्कूल जाते दिखाई देते हैं. एक हाथ में लाठी दूसरे में स्कूल का बस्ता..ये खासियत है ठाणे के एक स्कूल ‘आजीची शाल’ की. इस स्कूल के बारे में हिंदी में कहें तो इसे बुजुर्ग महिलाओं या दादी का स्कूल कह सकते है. यहां इस स्कूल में पढ़ने वाली छात्राएं भले ही वर्षों के गिनती करने पर बुजुर्गों की श्रेणी में आ जाती हैं लेकिन इनका दिल बच्चों की तरह ही है. खास कर पढ़ाई को लेकर इनका उत्साह एकदम बचपन वाली फिलिंग लेकर आता है.

यहां चलने वाले इस बुजुर्गों के स्कूल की एक कहानी भी कम रोचक नहीं है. गांव वालों ने बताया कि साल 2016 के मार्च महीने में शिव जयंती के मौके पर जिला स्कूल में हुए कार्यक्रम में गांव की एक 65 साल की बुजुर्ग महिला ने कहा कि अगर हम भी पढ़े लिखे होते तो इस कार्यक्रम का हिस्सा होते. महिला की बात सुनकर इसी गांव के योगेंद्र सर ने एक सर्वे किया जिसमें पता किया कि और कौन कौन है जो पढ़ना लिखना चाहती हैं. सर्वे के बाद 29 महिलाएं सामने आई. फिर क्या था, महिला दिवस के मौके पर एक कमरे के घर से ‘आजीची शाला’ की शुरुआत हुई.  एक साल में के भीतर ही यहां एक बढ़िया स्कूल बन गया. इस समय यहां 38 बुजुर्ग महिला पढ़ाई कर रही है ,गाँव  से स्कूल तक रास्ते में बारहखड़ी, क ,ख ,ग़ अक्षर  टाईल्स और दीवारों पर लिखे गये हैं.ताकि स्कूल आते जाते उन्हें याद रहे कि उन्हें पढ़ना है . इतना  ही नहीं रास्तो में यहां पढ़ने वाली महिलाओ के नाम से दर्जनों पेड़ लगाए गए है , इन पेड़ों की सेवा वही लोग करते हैं जिनके नाम पर ये पेड़ लगाये गये है.

आजी की शाला दोपहर के दो बजने के बाद शुरु होती है. यहां आने से पहले सभी बुजुर्ग छात्राएं स्कूल यूनिफार्म के तौर पर गुलाबी रंग की साडी पहनती हैं और हाथों में स्कूल का बस्ता और साथ में अपने नाती पोतों का हाथ पकडकर स्कूल पहुंच जाती है . स्कूल में प्रार्थना के साथ पढाई की शुरुआत होती है .इस स्कूल में 55 वर्ष से लेकर 90 वर्ष की महिलाएं पढ़ने आती है.ये वो महिलाएं हैं जो कल तक एक अक्षर नहीं समझती थी,आज वह अपना नाम बड़े आराम से लिख लेती है.इस गांव के हर घर के लोग दस पेड़ लगाए है और हर में शौचालय है .

‘आजी की शाला‘ चलाने में गांव के लोगों का बड़ा सहयोग है. शुरु में स्कूल चलाने के लिए गांव के ही दीलीप दलाल नाम के व्यक्ति ने अपना एक कमरा दिया,इसके बाद गांव के ही प्रकाश मोरे ने जमीन देकर ‘ आजीची शाला ‘ का विस्तार कराया .  आज इस ‘आजीची शाला’ में महिलाएं अपने उस सपने को हकीकत में जी रही है जिसे उन्होने कभी बंद तो कभी खुली आँखों से देखा होगा.

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