झारखंड का सियासी संकट अब दिल्ली तक पहुंच गया है. सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता मामले में राज्यपाल रमेश बैस शुक्रवार को केंद्र को रिपोर्ट सौंप सकते हैं. रमेश बैस दिल्ली रवाना हो गए है. राज्यपाल के दिल्ली पहुंचने के साथ ही अब सभी कि नज़र दिल्ली पर लग गई है.
गुरुवार को UPA प्रतिनिधीमंडल ने राज्यपाल को सौंपा था ज्ञापन
आपको बता दें गुरुवार शाम यूपीए का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिलने राजभवन पहुंचा था. प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं के मुताबिक, राज्यपाल ने उनसे कहा कि हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता के मसले पर निर्वाचन आयोग का पत्र राजभवन को मिला है. इस पत्र के कंटेंट पर वो विधि विशेषज्ञों से परामर्श ले रहे हैं और जल्द ही स्थिति स्पष्ट हो जायेगी.
इसके साथ ही प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को एक ज्ञापन भी सौंपा था, जिसमें कहा गया है कि मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 192 (1) के तहत जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9-ए के तहत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया गया है. ऐसी खबरें राजभवन के सूत्रों के हवाले से चल रही हैं. इससे राज्य में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गयी है और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार को अस्थिर करने के लिए राजनीतिक द्वेष को प्रोत्साहन मिल रहा है. इसलिए वो राजभवन से स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह कर रहे हैं.
अब तक क्या-क्या हुआ
25 अगस्त को चुनाव आयोग के राज्यपाल को अपनी सिफारिश भेजने की ख़बर के बाद से ही राज्य में सियासी हलचल तेज हो गई. 26 और फिर 27 अगस्त सीएम हेमंत सोरेन ने लगातार दो दिन यूपीए विधायकों की बैठक बुलाई. बैठक के ज़रिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने और सहियोगी दलों के विधायकों को एकजुट रखने और सरकार बचाने की कोशिश में लगे रहे. हॉर्सट्रेडिंग से बचने के लिए सीएम ने यूपीए विधायकों को छत्तीसगढ़ भेज दिया था..
राजभवन पर टिकी है निगाहें
25 अगस्त राज्यपाल रमेश बैस के दिल्ली से रांची पहुंचने के बाद से सारी नजरे राजभवन टिक गई थी. कहा जा रहा था कि राज्यपाल किसी भी वक्त फैसला सुना सकते है. लेकिन फैसला के इंतज़ार को अब एक हफ्ता गुज़र गया है. सवाल ये है कि आखिर फैसला सुनाने में देर क्यों हो रही है? तो सूत्र ये बता रहे है कि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने से डिबार करने या नहीं करने का फैसला राज्यपाल पर छोड़ दिया है. खबर ये है कि राजभवन अब ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को खंगाल रहा है ताकि ये निश्चित किया जा सकें की अगर वो मुख्यमंत्री को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार देता है तो हेमंत सोरेन आसानी से अदालत में उनके फैसले के खिलाफ राहत हासिल नहीं कर पाए.
क्या है पूरा मामला जिसमें जा सकती है हेमंत सोरेन की सदस्यता
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर रांची के अनगड़ा में पत्थर खनन लीज की एक खदान अपने नाम करने का आरोप है. इस मामले में बीजेपी नेताओं ने सोरेन पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग राज्यपाल से की थी. बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत अन्य बीजेपी नेताओं की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भारत के संविधान के अनुच्देद 191 (ई) के साथ-साथ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 (ए) के तहत पत्थर खनन का पट्टा प्राप्त करने के लिए
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