देश का राष्ट्रपति बदलते ही कई राज्यों की राजनीति में उसका असर साफ़ देखने को मिल रहा है. बात उत्तर प्रदेश की करें तो जिस गठबंधन के आधार पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने BJP और CM योगी को चैलेंज दिया था. वही गठबंधन अब औंधे मुंह गिरता नज़र आ रहा है. जी हाँ यूपी की जनता को गठबंधन की ताकत दिखाने वाले नेता अब खुद अलग-थलग राह चुन रहे हैं. यूपी की राजनीति में जारी उठापटक के बीच रिश्तों के साथ-साथ राजनीतिक साझेदारी भी बिगड़ती नज़र आ रही है. तीन महीने पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बड़े प्रयासों के बाद सभी विपक्षियों को BJP के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए राज़ी किया था. चुनाव ख़त्म होते ही आज ना वो दुशमन दोस्त रहा और न अपने अपने ?
दरअसल कुछ दिनों पहले महान दल के नेता केशव देव मौर्य ने अखिलेश से अपना नाता तोड़ लिया था, तो अब अखिलेश ने शिवपाल-राजभर को भी खुद से अलग होने का आदेश दे दिया है. इसके बाद से ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया राजभर अब बीएसपी प्रमुख मायावती के पाले में जाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन मायावती फिलहाल गठबंधन के लिए कोई रुचि नहीं दिखा रही हैं. अगर देखा जाए तो 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती का हाल भी कुछ ठीक नहीं था. हार के डर से चुनावी मैदान में बसपा ने बैकफुट पर रह कर ही चुनाव लड़ा. ऐसे बुरे वक्त में सोचने वाली बात ये भी है कि राजभर का इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है कि कोई भी उन पर अब भरोसा करने से पहले हज़ार बार सोचेगा.

पहले BJP फिर सपा , तो कभी अखिलेश के प्रिय चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के मुखिया शिवपाल यादव. तो ऐसे दलबदलू नेता पर भरोसा करना थोड़ा कठिन हो सकता है.

सिर्फ इतना ही नहीं फिलहाल राजभर को पार्टी में लेकर जो गलती अखिलेश यादव ने की उसे कोई शायद ही दोहराना चाहेगा. बता दें कि राजभर को पूर्वांचल का बड़ा नेता माना जाता है. पूर्वांचल के एक दर्जन जिलों में राजभर समुदाय के लोग रहते हैं. उनमे उनकी अच्छी पैठ थी और इसी वजह से अखिलेश ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था लेकिन उसका असर चुनाव के नतीजों में दूर दूर तक नहीं दिखा.

फिलहाल ये सियासी संकट सिर्फ राजभर पर ही नहीं बल्कि अखिलेश यादव के चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के प्रमुख शिवपाल यादव पर भी है . जिन्हें समाजवादी पार्टी ने पत्र जारी कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है. वैसे चुनाव के दौरान और उसके बाद कई ऐसे मौके आये जब शिवपाल यादव का BJP के साथ जुड़ने की खबरें उड़ने लगी थी. ये कयास तब और तेज हुए जब मुलायम यादव की बहु अपर्णा यादव ने BJP का दामन थामा और चुनाव लड़ा. उसके बाद शिवपाल यादव ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ट्विटर पर फॉलो करना भी शुरू किया. इन्ही नज़दीकियों को देख सपा की टेंशन बढ़ने लगी थी. फिर कई मौकों पर अखिलेश और चाचा शिवपाल की तकरार साफ़ नज़र आई. तो ऐसे में हो सकता है कि आने वाले कुछ वक्त में शिवपाल यादव बीजेपी का दामन थाम लें.

वहीं राजभर को बीजेपी वापस लाना चाह रही है. नरेन्द्र मोदी सरकार में राजस्व तथा उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने ओमप्रकाश राजभर को भी एनडीए में शामिल होने का न्यौता दिया है. खैर ये राजनीती है यहाँ कब क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता.