Dihuli Massacre: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की एक विशेष अदालत ने मंगलवार को 1981 के देहुली नरसंहार में तीन लोगों को मौत की सजा सुनाई. इस नरसंहार में महिलाओं और दो बच्चों सहित 24 दलितों की हत्या कर दी गई थी.
12 मार्च को विशेष न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने तीनों आरोपियों कप्तान सिंह (60), रामपाल (60) और राम सेवक (70) को दोषी ठहराया था.
सरकारी वकील रोहित शुक्ला ने पीटीआई को बताया कि मृत्युदंड के अलावा अदालत ने दोषियों पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
क्या था बहुचर्चित Dihuli Massacre मामला
18 नवंबर, 1981 को शाम करीब 4.30 बजे खाकी वर्दी पहने 17 डकैतों के एक गिरोह ने देहुली पर हमला किया. उन्होंने एक दलित परिवार को निशाना बनाया और 24 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी, मरने वालों में छह महीने और दो साल के बच्चे भी शामिल थे.
मूल एफआईआर में आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और 396 (हत्या के साथ डकैती) के तहत 17 आरोपियों के नाम दर्ज थे.
17 में से 14 आरोपियों की हुई मौत
हलांकि 44 साल चले मुकदमें में कुल 17 आरोपियों में से 14 लोगों की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को फरार घोषित कर दिया गया. 19 नवंबर 1981 को स्थानीय निवासी लायक सिंह ने एफआईआर दर्ज कराई थी और विस्तृत जांच के बाद गिरोह के सरगना संतोष और राधे सहित डकैतों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था.
इंदरा गांधी मिली थी पीड़ियों से, अटल बिहारी वाजपेयी ने निकाली थी पद यात्रा
24 दलितों की हत्या मामले ने राजनैतिक रंग ले लिया था. घटना की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की थी, जबकि तब के विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने फिरोजाबाद के दिहुली से सदुपुर तक पद यात्रा की थी और पीड़ित परिवारों के साथ एकजुटता दिखाई थी.
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