“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी” …..उत्तर प्रदेश विधानसभा के सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस रामायण की चौपाई का इस्तेमाल तो समाजवादी पार्टी के लिए किया था लेकिन ये उनपर ही फिट बैठता है. मुस्लिम विरोध और नफरत की राजनीति में मुख्यमंत्री एक हिंदुस्तानी जबान के ही दुश्मन बन बैठे हैं.
बजट सत्र में उर्दू प्रेम को लेकर सीएम का समाजवादी पार्टी को ताना
बजट सत्र 2025 और 2026 की कार्रवाई के दौरान विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सदन को बताया की माननीय सदस्यों की सुविधा के लिए सरकार ने अवधी, भोजपुरी , बुंदेलखंड़ी समेत कई भाषाओं के ट्रांसलेशन की व्यवस्था कर दी है ताकी सदन के सदस्य यूपी की इन भाषाओं में अपने विचार खुलकर रख सकें……इसपर समाज वादी पार्टी के ओर से विरोध जताया गया कि अंग्रेजी को रखने की जरूरत क्या है. समाजवादी पार्टी के नेता ने कहा कि हमने अंग्रेजी को बाहर करने की लड़ाई लड़ी है और हम इसका विरोध करते है. उन्होंने साफ कहा कि यूपी की प्रादेशिक भाषाओं से उन्हें दिक्कत नहीं है इसी दौरान उन्होंने अंग्रेजी का विरोध करते हुए कहा कि रखना ही है तो उर्दू भी रख लीजिए. इसपर सीएम योगी आदित्यनाथ खड़े हुए और कहा कि ये समाजवादियों का दोहरा चरित्र है कि वो अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों और विदेशों में पढ़ाते है लेकिन बाकी लोगों के बच्चों को उर्दू पड़ा कर मौलवी बनाना चाहते है. अपने इस बयान में सीएम ने उर्दू से अपनी नपसंदगी जाहिर भी की.
UP Vidhan Sabha: उर्दू है भारतीय भाषा, गंगा किनारे पली-बढ़ी उर्दू
हलांकि यहीं योगी आदित्यानाथ की अल्पज्ञान उनके लिए भारी पड़ गया जो उर्दू उन्हें मुसलमानों की भाषा नज़र आई…..दरअसल वो उर्दू तो हिंदुस्तानी भाषा है. वो भाषा जो मंगोल, मुगल, आक्रमणकारी न बोलते थे न जानते थे.
उर्दू के साथ सबसे ज्यादा जुल्म तो ये हुआ कि इसे मुसलमानों की जबान समझा गया जबकि असल में न अफगानिस्तान, न सऊदी अरब, न ईरान, न तुर्कनिया, न इराक यहां तक कि इंडोनेशिया तक इसको अपनी जबान नहीं मानता….
मुसलमान धर्म की किताबें अरबी और फारसी में लिखी गई है. उर्दू का उनसे दूर-दूर तक कोई लेना नहीं. उर्दू को गंगा जामुनी जबान है….जो यहां पैदा हुआ यहां बड़ी और यहां की संस्कृति और इतिहास का हिस्सा बन गई. वो उर्दू जो लखनऊ की नफासत और नजाकत का प्रतीक है…जो मीर, जोख और गालिब की ज़बान बनी…..जिसने अवध को एक पहचान दिलाई. आज उस उर्दू को यूपी की राजनीति में नफरत की नज़र से देखा जा रहा है. यानी धर्म की राजनीति में एक ज़बान अपना अस्तित्व खोने को है.
मुसलमानों से विरोध में शहीदों तक का हो रहा अपमान
वैसे सिर्फ उर्दू ही नहीं मौजूदा योगी सरकार को मुसलमानों से ही बैर है फिर चाहें वो देश के लिए जान देने वाले शहीद ही क्यों न हो. गाजीपुर में वीर अब्दुल हमीद के नाम पर रखे गए स्कूल का नाम बदलकर पी एम श्री कर दिया गया था. लेकिन हंगामा हुआ तो फिर फैसला बदला गया. आपको जानना चाहिए कि अब्दुल हमीद कौन थे. वे भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार थे. उन्होंने भारत चीन युद्ध में भाग लिया और 1965 को असल उत्तर की लड़ाई में उन्होंने आठ पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया था. उन्हें ‘टैंक डिस्ट्रॉयर’ के नाम से भी जाना जाता था. उन्हें परमवीर चक्र के अलावा समर सेवा पदक, रक्षा पदक, और सेन्य सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया था. आज भी यूपी सरकार 10 सितंबर को उनके शहादत दिवस पर अलग-अलग कार्यक्रमों करती है.
वैसे प्रदेश में कितनी भी कोशिश कर ली जाए जब लखनऊ, अवध की बात होगी तो उर्दू की नफासत भी याद की जाएगी और उर्दू शायरों की शायरी भी. जो लखनऊ की सरज़मी को रँग-रूप का चमन, हुस्न-ओ-इश्क़ का वतन और अवध की शान और यूपी जान के तौर पर हमेशा कायम रखेगा.
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