Vinesh Phogat retires: माँ कुश्ती मेरे से जीत गई मैं हार गई माफ़ करना आपका सपना मेरी हिम्मत सब टूट चुके इससे ज़्यादा ताक़त नहीं रही अब. अलविदा कुश्ती 2001-2024. आप सबकी हमेशा ऋणी रहूँगी माफी
ये शब्द उस खिलाड़ी के है जिसने अपने करियर के शीर्ष पर खेल को अलविदा कह दिया. 7 अगस्त का दिन भारत के खेल इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा. सुबह तक जो देश ओलंपिक 2024 में स्वर्ण पदक आने पर जश्न की तैयारी कर रहा था. रात होते-होते वो गम और गुस्से के भंवर में डूब गया. एक खिलाड़ी जिसने एक दिन में दुनिया के तीन बेहतरीन खिलाड़ियों को धूल चटा अपने लिए ऑलंपिक के फाइनल में जगह बना ली थी. वो खाली हाथ….आंखों में आंसू लिए ये कहकर कुश्ती को अलविदा कह गई कि, माँ कुश्ती मेरे से जीत गई मैं हार गई.
विनेश ने कुश्ती को कहा अलविदा
29 वर्षीय विनेश फोगाट ओलंपिक खेलों के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई थीं और उन्होंने महिलाओं की 50 किग्रा स्पर्धा में कम से कम रजत पदक पक्का कर लिया था. हालांकि, मुकाबले की सुबह अनिवार्य वजन मापने के दौरान उनका वजन अधिक पाया गया और उनके कोच, सहयोगी स्टाफ और भारतीय ओलंपिक संघ के बेहतरीन प्रयासों के बावजूद उन्हें स्पर्धा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. इस तरह 100 ग्राम वजन ज्यादा होने के चलते उनके ऐतिहासिक स्वर्ण पदक मुकाबले से कुछ घंटे पहले ही उनका पदक छीन लिया गया.
क्यों भारतीय ऑलंपिक संघ की कोशिश नज़र नहीं आई
विनेश के दुख और तकलीफ का अंदाज़ा लगाना तो मुश्किल ही है लेकिन कुछ सवाल ज़रुर है जो इस समय पूछे जाने चाहिए खासकर तब जब भारत के ऑलंपिक मेडल जीतने वाले भारत के इकलौते मुक्केबाज विजेंदर सिंह का मानना है कि विनेश साजिश का शिकार हुई है.
सबसे पहला सवाल तो ये कि अगर साजिश अंतरराष्ट्रीय सत्तर पर हुई तो भारतीय टीम मैनेजमेंट और अधिकारी क्या कर रहे थे. क्यों सुबह ही भारतीय ऑलंपिक संघ की और से बयान जारी कर कह दिया गया कि विनेश अयोग्य घोषित हो गई है. क्यों नहीं भाग दौड़ की गई…..अपील की गई…..अपना दबदबा दिखाया गया.
क्यों AOI ने बिना अपील-बिना दलील कर दिया एलान
वैसे भी आजकल तो ये कहा जाता है कि देश की धाक विदेशों में ऐसी है कि भारत के आगे बड़े बड़े झुकते हैं. फिर कैसे एक रजत पदक विजेता से उसका स्वर्ण जीतने का मौका और रजत पदक दोनों छीन लिए गए. जबकि इसी ऑलंपिक में कीनिया की खिलाड़ी को सस्पेंड होने के बाद भी सिल्वर मेडल दिया गया. लोग सवाल पूछ रहे है कि, आज हम विश्वगुरु बन रहे है, पूरी दुनिया में हमारा डंका बजता है, तो हम विनेश को सिल्वर मेडल क्यों नहीं दिला पाए.
विनेश साजिश का शिकार हुई-मुक्केबाज विजेंदर सिंह
क्यों प्रधानमंत्री के दखल के बाद भी विनेश को खुद पेरिस में सीएएस के सामने अपनी अपील रखने पड़ी. क्यों जब देश के खेल मंत्री संसद को ये बताने खड़े हुए कि वो देश की बेटी की कैसे मदद कर रहे हैं तो उन्होंने ये कहा कि सरकार ने विनेश पर 17 लाख रुपये खर्च किए. क्या सच में देश अभी खेलों में स्वर्ण पदक पाने के काबिल नहीं हुआ है. क्या खेल पर राजनीति का साया इस कद्र गहरा गया है कि अपनी ही खिलाड़ियों की हार-जीत से हमें सिर्फ इसलिए फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो किसी एक मुद्दे को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल थी.
हरियाणा सरकार ने विनेश को वो ही सम्मान और ईनाम देने का फैसला किया है जो रजत पदक विजेता को मिलता लेकिन सवाल फिर भी ये ही है……आखिर भारत अपना दबदबा क्यों नहीं दिखा पाया. क्यों हमारी बेटी को पेरस में खेलों को अलविदा कहना पड़ा.