Kanwar Yatra Nameplate Controversy:शुक्रवार को पहले उत्तर प्रदेश सरकार और फिर उत्तराखंड सरकार के कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी होटलों, ढाबों और ठेलों सहित भोजनालयों को अपने मालिकों या इन दुकानों पर काम करने वालों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश को लेकर बीजेपी के सहयोगी दल ही नाराज हो गए है.
क्या हिंदुत्व के एजेंडे के जरिए योगी ने दिया बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को जवाब
विपक्ष तो पहले ही योगी सरकार के इस फैसले की तुलना हिटलर से कर चुका है अब सहयोगी भी इसे सबका साथ सबका विकास के नारे के खिलाफ बता रहे हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि मुज्जफरनगर पुलिस के अपने आदेश को वापस लेने के बाद आए योगी सरकार के फैसले का मकसद ही बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की परेशानी बढ़ाना था.
सूत्रों के मुताबिक यूपी बीजेपी में सत्ता के खिलाफ बगावत की आंच को ठंड़ा करने और केंद्रीय नेतृत्व को ये संदेश देने की हिदूत्व के पोस्टर सीएम योगी आदित्यनाथ थे और रहेंगे इस फैसले को लिया गया.
सीएम योगी के इस फैसले से न सिर्फ प्रदेश में हिंदुत्व के एजेंडे का साथ देने वाले लोग सीएम को साथ एकजुट हुए है बल्कि केंद्रीय नेतृत्व जो मोदी 3.0 में सत्ता में बने रहने के लिए एनडीए के सहयोगियों पर निर्भर है उसकी मुश्किल भी बढ़ गई है.
यूपी और बिहार दोनों जगह के एनडीए के सहयोगियों ने यूपी उत्तराखंड सरकार के इस फैसले की निंदा की है.
Kanwar Yatra Nameplate Controversy:सबका साथ, सबका विकास, के विरुद्ध आदेश-जेडीयू
JDU ने उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ मार्गों पर खाद्य पदार्थों की दुकानों पर ‘नेमप्लेट’ लगाने के निर्देश पर विरोध करते हुए इसे सबका साथ सबका विकास के विरुद्ध बताया है. जेडीयू प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने कहा, “इससे बड़ी कांवड़ यात्रा बिहार में निकलती है वहां इस तरह का कोई आदेश नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी की जो व्याख्या भारतीय समाज, NDA के बारे में है- ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’, यह प्रतिबंध इस नियम के विरुद्ध है. बिहार में नहीं(आदेश) है, राजस्थान से कांवड़ गुजरेगी वहां नहीं है. बिहार का जो सबसे स्थापित और झारखंड का मान्यता प्राप्त धार्मिक स्थल है वहां नहीं है. इसपर पुनर्विचार हो तो अच्छा है.”
सरकार का फैसला गैर-संवैधानिक: आरएलडी
तो वहीं यूपी में बीजेपी की सहयोगी आरएलडी ने भी इसपर आपत्ति जताते हुए इस फैसले को गैर-संवैधानिक बताया है. आरएलडी के यूपी अध्यक्ष रामाशीष राय ने कहा, “इस तरह के भेदभाव और एक समुदाय के बहिष्कार से बीजेपी और राज्य का कोई भला नहीं होगा. कुछ पुलिस अधिकारी और नौकरशाह सरकार को गुमराह कर रहे हैं और मैं मुख्यमंत्री से ऐसे आदेश को वापस लेने की अपील करता हूं.”
रामाशीष राय ने एक ट्वीट में कहा, “उत्तर प्रदेश प्रशासन का दुकानदारों को अपनी दुकान पर अपना नाम और धर्म लिखने का निर्देश देना संप्रादायिकता को बढ़ावा देने वाला कदम है. प्रशासन इसे वापस ले. यह गैर-संवैधानिक निर्णय है.”
जाति-धर्म के नाम पर भेद-भाव का समर्थन नहीं-चिराग पासवान
इसके अलावा खुद को मोदी का हनुमान कहने वाले और चिराग पासवान ने भी इस फैसले का विरोध किया है. एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने इस आदेश का खुलकर विरोध करते हुए कहा कि वह जाति या धर्म के नाम पर भेद किए जाने का कभी भी समर्थन नहीं करेंगे. पीटीआई को दिए बयान में उन्होंने साफ कहा कि मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश से वह सहमत नहीं है. उन्होंने साफ कहा, “नहीं, मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं.”
चिराग ने कहा, “हमें इन दोनों वर्गों के लोगों के बीच की खाई को पाटने की जरूरत है. गरीबों के लिए काम करना हर सरकार की जिम्मेदारी है, जिसमें समाज के सभी वर्ग जैसे दलित, पिछड़े, ऊंची जातियां और मुस्लिम भी शामिल हैं. समाज में सभी लोग हैं. हमें उनके लिए काम करने की आवश्यकता है.”
उन्होंने कहा, “जब भी जाति या धर्म के नाम पर इस तरह का विभेद होता है, तो मैं न तो इसका समर्थन करता हूं और न ही इसे प्रोत्साहित करता हूं. मुझे नहीं लगता कि मेरी उम्र का कोई भी शिक्षित युवा, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से आता हो, ऐसी चीजों से प्रभावित होता है.”
यूपी बीजेपी के घमासान में पिस जाएगी मोदी सरकार?
कवाड़ यात्रा के दौरान यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले होटल और ढाबों पर मालिकों का नाम लिखने का ये फैसला भले ही मुज्जफरनगर पुलिस के एक आदेश के बाद चर्चा में आया लेकिन योगी सरकार के इसपर मोहर लगा पूरे प्रदेश में इसे लागू करने और फिर उत्तराखंड सरकार के इसे अपने यहाँ भी लागू करने के फैसले ने जहां सीएम योगी की कड़क प्रशासक और हिंदू ह्रद्य सम्राट की छवि को मजबूत किया है. लेकिन बैसाखियों के सहारे सत्ता पर काबिज मोदी 3.0 की मुश्किल बढ़ा दी साथ ही ये भी साफ कर दिया कि इस बार हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर बीजेपी अपने पिछले 2 कार्यकालों की तरह आक्रामक रुख कायम नहीं रख पाएगी.
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