Diwali 2023: इस बार दिवाली का त्यौहार 12 नवम्बर को मनाया जाएगा. भारत में दिवाली के त्योहार को भिन्न-भिन्न राज्यों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है. हर साल दिवाली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है.दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी, सरस्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस दिन लक्ष्मी पूजा करते हैं, उन्हें पूरे साल समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिवाली क्यों मनाई जाती है. आइए जानते हैं इसके पीछे की 7 पौराणिक कथाएं.

Diwali की 7 पौराणिक कहानियां
- रामायण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम जब लंका के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी. भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई थी.
- इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से असुर राजा नरकासुर का वध किया था. नरकासुर को स्त्री के हाथों वध होने का श्राप मिला था. उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी. नरकासुर के आतंक और अत्याचार से मुक्ति मिलने की खुशी में लोगों ने दीपोत्सव मनाया था.
- दिवाली को लेकर एक कथा पांडवों के घर लौटने को लेकर भी है. वनवास के बाद पांडव घर लौटे और इसी खुशी में पूरी नगरी को जगमग किया गया और तभी से दिवाली की शुरूआत हुई.
- दिवाली से संबंधित एक कथा और जुड़ी है कि समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी जी ने सृष्टि में अवतार लिया था. यह भी दीपावली मनाने का एक मुख्य कारण है.
- मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के 6वें गुरु गोविंद सिंह सहित 52 राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया था. जब गुरु को कैद से आजाद किया जाने लगा तो वे अपने साथ कैद हुए राजाओं को भी रिहा करने की मांग किए. गुरू हरगोविंद सिंह के कहने पर राजाओं को भी कैद से रिहाई मिली थी. इसलिए इस त्योहार को सिख समुदाय के लोग भी मनाते हैं.
- अंतिम हिंदू सम्राट राजा विक्रमादित्य की कहानी भी दिवाली के साथ जुड़ी हुई है. राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के एक महान सम्राट थे. इसी कार्तिक अमावस्या को उनका राज्याभिषेक हुआ था.
- एक और कथा के अनुसार माता पार्वती ने राक्षस का वध करने के लिए जब महाकाली का रूप धारण किया था. उसके बाद उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था. तब महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए थे. तब भगवान शिव के स्पर्श से उनका क्रोध शांत हुआ था. इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई. इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है.