भारतीय सेना मेजर और कैप्टन की कमी से जूझ रही है. देश के नामी अखबारों में छपी ये खबर परेशान करने वाली है. बताया जा रहा है कि हालत ये हो गई है कि मेजर और कैप्टन की कमी को पूरा करने के लिए वो अपने ऑफिसर्स की मुख्यालय पोस्टिंग को कम करने पर विचार कर रही है. ऐसा नहीं है कि नौजवान सेना में भर्ती नहीं होना चाहते. लाखों युवाओं ने नई अग्निपथ योजना में दिलचस्पी दिखाई लेकिन ऐसी दिलचस्पी ऑफिसर लेवल पर नज़र नहीं आती.
सेना में हो गई है Major और Captain की कमी
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर ने देश के कान खड़े कर दिए हैं. खबर में कहा गया है कि मेजर और कैप्टन स्तर पर अधिकारियों की भारी कमी का सामना कर रही सेना ने यूनिट्स में उनकी कमी को दूर करने के लिए विभिन्न मुख्यालयों में स्टाफ अधिकारियों की पोस्टिंग को कम करने की योजना बनाई है और ऐसे पदों पर फिर से नियुक्त अधिकारियों की नियुक्ति पर विचार कर रही है. खबर के मुताबिक सेना ने हाल ही में मुख्यालयों से स्टाफ कम करने की योजना कैसे रहेगी इसके लिए विभिन्न कमांडों से जानकारी भी मांगी है.
Major और Captain की कमी से निपटने क्या है सेना का प्लान
वर्तमान में मेजर रैंक के मध्य स्तर के अधिकारियों को लगभग छह साल की सेवा पूरी होने पर विभिन्न कोर, कमांड और डिवीजन मुख्यालयों में स्टाफ नियुक्तियों में पहला अनुभव दिया जाता है. स्टाफ पोस्टिंग का मकसद बाद में उन्हें कमांड नियुक्तियों के लिए तैयार करना होता है. फिलहाल सेना में आर्मी मेडिकल कोर और आर्मी डेंटल कोर समेत 8,129 अधिकारियों की कमी है. नौसेना में 1653 और वायु सेना में 721 अधिकारियों की कमी है. अधिकारियों की इस कमी को ध्यान में रखते हुए सेना ने कुछ स्टाफ अधिकारियों की नियुक्तियों में 461 गैर-सूचीबद्ध अधिकारियों को तैनात किया था.
सेना के वर्तमान प्रस्ताव में मुख्यालय में इन कर्मचारियों की कुछ पोस्टिंग में अस्थायी रूप से कटौती करना भी शामिल है, जब तक कि फोर्स में अधिकारियों की कमी दूर नहीं हो जाती. इस दिशा में यह प्रस्ताव किया जा रहा है कि कनिष्ठ और मध्यम स्तर के अधिकारी जो वर्तमान में विभिन्न मुख्यालयों में स्टाफ पोस्टिंग पर हैं, उन्हें 24 महीने का निर्धारित कार्यकाल पूरा करने के बाद बिना किसी राहत के बाहर तैनात किया जाएगा. अधिकारियों के मुताबिक सेना ऐसी नियुक्तियों के लिए दोबारा नियुक्त अधिकारियों की तैनाती पर विचार कर रही है. पुनर्नियुक्त अधिकारी वे होते हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद दो से चार साल तक सेना में सेवा करते हैं और ब्रिगेडियर और कर्नल पद पर होते हैं.
क्या High Risk और कठिन सेवा शर्त है वजह ?
अब सवाल ये उठता है कि आखिर नौजवान सेना में ऑफिसर लेवल पर काम करने के इच्छुक क्यों नहीं हैं. तो इसका कारण माना जाता है सेना में हाई रिस्क के साथ कठिन सेवा शर्तें, कॉर्पोरेट के मुकाबले कम वेतन. वैसे छठे, सातवें और आठवें वेतन आयोग के बाद सेना की सैलेरी में भी काफी इजाफा हुआ है. हलांकि ये भी सच है कि ये अब भी प्राइवेट सेक्टर से कम है.
इसके अलावा प्रमोशन को लेकर पेचीदा नियम और बार-बार होने वाली ट्रांसफर पोस्टिंग भी युवाओं की दिलचस्पी सेना की नौकरी में कम कर देती है. बार-बार पोस्टिंग से परिवार से अलग रहना, पारिवारिक जीवन और बच्चों की शिक्षा का डिस्टर्ब होना, कुछ ऐसे कारण हैं जिनके चलते इंडियन आर्मी को ऑफिसर लेवल पर युवाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
क्या बेरोज़गारी के चलते अग्निपथ योजना में मिल रहे हैं नौजवान?
यानी कुल मिलाकर कहें तो सिपाही के लेवल पर तो बेरोज़गारी और गरीबी के चलते सेना को भर्ती के लिए नौजवानों की कमी नहीं होती लेकिन जहां बात टैलेंट की है, नेतृत्व की है वहां उसे योग्य नौजवानों की तलाश करना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि फिर अब युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सेना को क्या करना चाहिए क्या उसे कॉर्पोरेट की तरह पॉलिसी बनानी चाहिए? या फिर सेना में सैलेरी,पेंशन और दूसरी सुविधाओं में इजाफा करना चाहिए? जिससे युवक इसकी ओर आकर्षित हों.
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