सजग, सौम्य और हाज़िर जवाब बिहार के सीएम नीतीश कुमार आजकल अकसर कुछ उलझे-उलझे और परेशान नज़र आते हैं. सवाल पत्रकारों के हों या फरियादियों के नीतीश अकसर अधिकारियों की ओर जवाब के लिए मुड़ जाते हैं. नीतीश कुमार की मुस्कान और उनका मज़ाकिया अंदाज़ भी आजकल कम ही नज़र आता है. ऐसे में बीजेपी तो अब ये भी कहने लगी है कि नीतीश कुमार अपनी उम्र के चलते चीज़ें भूलने लगे हैं और 2024-25 के बाद उनका राजनीतिक सफर खत्म होने वाला है.
बीजेपी नेताओं ने कहा नीतीश को भूलने की बिमारी
एक नहीं इस साल ऐसे कई मौके आए जब नीतीश कुमार की याद्दाश्त को लेकर विपक्ष खासकर बीजेपी ने उनपर हमला बोला. सबसे पहला मौका तो जनवरी में ही था जब बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री जिबेश मिश्रा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह बढ़ती उम्र के कारण याददाश्त खोने की बीमारी से पीड़ित हैं. मिश्रा ने कहा, “2013 में नीतीश कुमार ने एक बयान दिया था ‘मिट्टी में मिल जाएंगे पर बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे’ और वह 2017 में फिर से बीजेपी के साथ चले गए.” जिबेश मिश्रा ने कहा कि “नीतीश कुमार याददाश्त खोने की बीमारी से पीड़ित हैं. वह अपने स्वयं के बयान को याद करने में विफल हो रहे हैं.”
जबान फिसलने को भी बताया था याददाश्त की दिक्कत
इसके बाद मार्च 2023 में विधानसभा में स्पोर्ट्स कोटा भर्ती को लेकर बीजेपी की तरफ से पूछे गए एक सवाल के जवाब में नीतीश कुमार ने कहा कि स्पोर्ट्स कोटा भर्ती का सिस्टम उन्होंने ही शुरु किया था जब वो केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह मंत्री थे. हलांकि सच्चाई ये है कि वाजपेयी सरकार में नीतीश कुमार रेल मंत्री थे, गृह मंत्री नहीं. वैसे उनकी इस भूल को तो आसानी से ज़बान फिसलना कहा जा सकता है.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने सीएम को कहा था गजनी
इसी तरह पिछले महीने यानी अप्रैल में बीजेपी के नव निर्वाचित बिहार के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने भी नीतीश कुमार की याददाशत को लेकर कटाक्ष किया था. सम्राट चौधरी ने कहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मेमोरी लॉस के शिकार हैं. सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार को 18 साल हो गए मुख्यमंत्री बने हुए. उनको यह बात याद भी है कि नहीं मुझे पता नहीं क्योंकि आजकल उनका मेमोरी लॉस हो रहा. जैसे गजनी फिल्म में आमिर खान का मेमोरी लॉस हो जाता था वैसे ही नीतीश बाबू का भी मेमोरी आजकल थोड़ा लॉस हो जा रहा है उनको मेडिकल जांच की जरूरत है.
फरियादियों को भूल जाना भी क्या है इत्तेफाक
वैसे इन सब बयानों को तो आप राजनीतिक बयानबाज़ी कहकर सिरे से खारिज कर दे सकते हैं लेकिन पिछले दिनों जनता दरबार में लोगों का मुख्यमंत्री को ये याद दिलाना कि हम पहले भी आपसे मिलने आ चुके हैं और नीतीश कुमार का किसी को नहीं पहचान पाना. यहां तक कि उनको खुद अपने दिए गए आदेश भी याद ना आना क्या सिर्फ इत्तेफाक है.
पत्रकारों के सवालों पर भी अधिकारियों को देखने लगते है नीतीश कुमार
इतना ही नहीं अगर गौर से देखा जाए तो आजकल पत्रकारों के सवालों के जवाब देने में भी नीतीश कुमार अधिकारियों का मुंह ताकने लगते हैं. कई बार तो तेजस्वी यादव भी मुख्यमंत्री को कुछ बातें पीछे से फुसफुसा कर बताते नज़र आते हैं. इतना ही नहीं आजकल नीतीश अकेले कहीं भी जाने से परहेज भी करते हैं. जैसे विपक्षी एकता के लिए जो वो दूसरे राज्यों का दौरा करते हैं उसमें तेजस्वी यादव या ललन सिंह हमेशा उनके साथ होते हैं.
सेहत को लेकर कटाक्ष करना बहुत अशोभनीय
तो क्या सच में बीजेपी के आरोपों में कुछ सच्चाई है. क्या सच में नीतीश कुमार की याददाश्त पर उम्र का असर होने लगा है. वैसे तो नीतीश कुमार फिट नज़र आते हैं. हाल फिलहाल में उनके अस्पताल जाने और डॉक्टरों से मुलाकात की भी कोई ख़बर देखने और सुनने को नहीं मिली. राजनीति में उनसे उम्र दराज़ नेता अब भी अपनी शानदार पारी खेल रहे हैं. सबसे बड़ा उदाहरण तो खुद प्रधानमंत्री मोदी हैं जो 17 सितंबर को 73 साल के हो जाएंगे. लेकिन उनकी कैबिनेट के युवा चेहरे भी उन्हें खुद से ज्यादा चुस्त और तंदुरुस्त बताते हैं. नीतीश तो प्रधानमंत्री से एक साल छोटे ही हैं. ऐसे में उनकी उम्र को लेकर जिस तरह की बयानबाजी की जा रही है या उनकी सेहत को जैसे निशाना बनाया जा रहा है वो शोभनीय तो नहीं है. खासकर तब जब खुद बीजेपी के कई नेता कई मौकों पर जबान फिसलने और ग़लत तथ्यों को बोलते नज़र आते हैं.
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