उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा (UP Madarsa) बोर्ड ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के उस निर्देश को खारिज कर दिया है जिसमें उसने गैर-मुस्लिम बच्चों को प्रवेश देने वाले पंजीकृत मदरसों की जांच करने के लिए कहा था. उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड ने इस निर्देश को ना मानने की वजह के तौर पर कहा कि इससे मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच विभाजन हो सकता है.
दिसंबर में एनसीपीसीआर ने पत्र लिखकर दिया था निर्देश
आपको बता दें दिसंबर 2022 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने पत्र लिख राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे मदरसों (UP Madarsa) की जांच करने के लिए कहा है जो गैर मुस्लिम बच्चों को अपने यहां प्रवेश दे रहे है. एनसीपीसीआर ने सभी सरकारों से सरकारी वित्त पोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करने को कहा है.आयोग ने ये निर्देश कुछ ऐसी शिकायतों के मिलने के बाद लिया है जिसमें कहा गया था कि कुछ मदरसों (UP Madarsa) में गैर-मुस्लिम बच्चों को बिना उनके परिजनों की इजाजत के धार्मिक शिक्षा दी जा रही है.
पत्र में कहा गया है कि आयोग को अलग-अलग स्रोतों से पता चला है कि कई गैर-मुस्लिम समुदाय के बच्चे सरकारी वित्तपोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों (UP Madarsa) में पढ़ रहे हैं. इसके साथ ही ये भी पता चला है कि कुछ राज्य सरकारें उन्हें छात्रवृत्ति भी दे रही हैं. जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 28(3) का स्पष्ट उल्लंघन है. संविधान शैक्षणिक संस्थानों को माता-पिता की सहमति के बिना बच्चों को किसी भी धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए बाध्य करने से रोकता है.
‘ सबका साथ सबका विकास’ के खिलाफ है एनसीपीसीआर का निर्देश
बुधवार को मदरसा शिक्षा बोर्ड की बैठक में एनसीपीसीआर के इस पत्र में दिए गए निर्देशों को खारिज कर दिया गया. बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि, “हमने अपने पंजीकृत मदरसों में जांच नहीं करने का फैसला किया है. हम मुसलमानों और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच विभाजन नहीं होने देंगे, क्योंकि यह बीजेपी के सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत के खिलाफ है. मिशनरी स्कूलों में भी गैर ईसाई छात्र पढ़ रहे हैं.”
आपको बता दें एनसीपीसीआर के अध्यक्ष- प्रियंका कानूनगो, जिन्होंने पत्र भेजा था और बोर्ड अध्यक्ष जावेद दोनों बीजेपी के सदस्य हैं.