बिहार के मुज्जफरपुर जिले की कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे बीते 8 दिसंबर को घोषित किए गए. कुढ़नी विधानसभा चुनाव की मतगणना के बाद घोषित हुए नतीजों में भाजपा के उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता ने जेडीयू-आरजेडी महागठबंधन के उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को कुल 3600 मतों के अंतर से चुनाव में शिकस्त दी.
दरअसल इस सीट पर लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी का कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया था. लेकिन इस बार बीजेपी के नेताओं ने कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव को जीतने के लिए काफी मेहनत की थी. जिसका नतीज ये रहा कि इस बार कुढ़नी में कमल खिला और भाजपा उम्मीदवार को शानदार जीत हासिल हुई .
भूमिहार समाज ने नीतीश का छोड़ा साथ
मुज्जफरपुर जिले की कुढ़नी विधानसभा सीट पर मुख्य रूप से भूमिहार जाति के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. हालांकि इससे पहले भूमिहार जाति के लोग इस पर बीजेपी के खिलाफ ही वोट करते आ रहे थे. लेकिन इस बार के चुनाव में भूमिहार समाज के ज्यादातर मतदाताओं ने नीतीश कुमार के पार्टी जनता दल यूनाईटेड और तेजस्वी यादव की आरजेडी के संयुक्त उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को अपना वोट नहीं दिया. जिसके परिणाम सवारूप कुढ़नी सीट पर नीतीश-तेजस्वी के महागठबंधन को बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
बिहार में कम हो रहा नीतीश कुमार का जनाधार
इस हार जीत के खेल ने एक बात और स्पष्ट रूप से सामने रख दी . बीजेपी के एनडीए से नाता तोड़ने के बाद आरजेडी के साथ मिलकर बिहार की सत्ता को चला रहें नीतीश कुमार को हाल ही में मुज्जफरपुर जिले के कुढ़नी विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में कुढ़नी विधानसभा के नतीजों के बाद ऐसा लग रहा है कि भाजपा-एनडीएम गठबंधन से नाता तोड़ने के बाद नीतिश कुमार का बिहार में जनाधार तेजी से कम होता दिख रहा है. इसके अलावा आने वाले दिनों में यदि ऐसी स्थिति रही तो नीतीश कुमार की पार्टी का बिहार में और जनाधार कम होगा.
हार के बाद नीतीश ने चला विरासत सौंपने का कार्ड
मुज्जफरपुर जिले के कुढ़नी विधानसभा सीट पर चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार के माथे पर भी बल आ गया है. दरअसल नीतीश कुमार को शायद यह यकीन नहीं हो पा रहा है कि कुढ़नी में उनकी पार्टी के प्रत्याशी की हार कैसे हो गई. अब कुढ़नी में हार के बाद नीतीश को भविष्य में बिहार की अन्य विधानसभा सीटों पर भी बीजेपी के हाथों हार का डर सता रहा है. नतीजतन नीतीश कुमार ने आनन फानन में यह घोषणा कर दी की आगामी 2025 में बिहार विधान सभा को महागठबंधन को तेजस्वी यादव लीड करेंगें. दरअसल नीतीश कुमार बिहार में अपनी घटती लोकप्रियता को लेकर चिंतित है और वह दबे पांव केंद्र की राजनीति का रूख करना चाहते है.
तेजस्वी के दम पर केंद्र की राजनीति करना चाहते है नीतीश
नीतीश कुमार अब आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र की राजनीति में अपने को स्थापित करना चाहते है. नीतीश कुमार भले ही यह कहते रहें कि वह पीएम नहीं बनना चाहते हैं. लेकिन यदि देखा जाए तो पिछले दिनों वह पूरे देश भर में घूमकर सभी विपक्षी दलों के नेताओं से एकजुट होने का आहवान भी किया था. नीतीश कुमार की पीएम नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पूरे विपक्ष को एकजुट करने के पीछे क्या रणनीति हो सकती है यह बिल्कुल साफ है. नीतीश कुमार जानते है कि आगामी 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव शायद उनके लिए जीतना आसान नहीं होगा क्योंकि वहां पर बीजेपी विपक्ष में है. ऐसे में नीतीश कुमार अब अपनी राजनीति केंद्र की तरफ ले जाना चाहते है. दरअसल नीतीश कुमारी तेजस्वी यादव को अपने साथ जोडकर रखना चाहते है ताकि वह जेडीयू-आरेजेडी के गठबंधन के दम पर आगामी लोकसभा चुनाव में अपने को विपक्ष के चेहरे के तौर पर पूरे दमखम के साथ पेश कर पाए. हालांकि नीतीश कुमार को सभी विपक्षी दल अपना नेता स्वीकार करते है या नहीं यह तो आने समय ही तय करेगा. लेकिन एक बात जो अभी से लगभग तय दिख रही है वह यह है कि कुढ़नी विधानसभा सीट पर बीजेपी की जीत ने बिहार में नीतीश कुमार की राजनीतिक जमीन को दरकने पर मजबूर कर दिया है.
तेजस्वी यादव होंगे नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी
बिहार में लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज चलें आ रहें नीतीश कुमार ने अभी हाल ही कहा है कि 2025 के आगामी विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को तेजस्वी लीड करेंगे। ऐसे में अब यह कहना गलत नहीं होगा कि अनौपचारिक तौर पर नीतीश कुमार ने साल 2025 में अपनी विरासत तेजस्वी यादव को सौपने का मन बना लिया है। दरअसल नीतीश कुमार की पार्टी यदि तेजस्वी को आगामी विधानसभा चुनाव में तेजस्वी को अपने नेता के तौर पर समर्थन देगी तो यह तेजस्वी के लिए बहुत बड़ा राजनीतिक लाभ होगा । दरअसल नीतीश के बाद तेजस्वी अब बिहार के सबसे बड़े नेता के तौर पर अपनी जगह बनाने में काफी हद तक सफल हो जाएंगें। जबकि अभी बिहार में भाजपा और कांग्रेस के पास तेजस्वी के मुकाबले को भी बड़ा चेहरा नहीं है जो तेजस्वी से लोकप्रियता में ज्यादा हो।
नीतीश के लिए केंद्र की राजनीति अब आसान नहीं
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही पूर्व में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय का जिम्मा संभाल चुके है. लेकिन मौजूदा हालत में उनके लिए केंद्र में फिट होना आसान नहीं है. दरअसल एनडीए से नाता तोड़ने के बाद यदि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में वापस होते है तो उनके सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही खड़े दिखाई देंगे. इसके अलावा नीतीश पिछले काफी लंबे समय से बिहार प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहें है इसलिए अन्य विपक्षी दल उन्हें अपने नेता के तौर पर स्वीकार कर ही ले इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है. शायद इसलिए नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी खिसकती जमीन को भांपकर अभी से तेजस्वी यादव को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. दरअसल नीतीश कुमार के द्वारा तेजस्वी यादव को 2025 के तौर पर अपना नेता मानने की पीछे नीतीश का एक स्वार्थ यह भी है कि तेजस्वी की पार्टी उनको साल 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने नेता के तौर समर्थन दें.
लेखक – CA.MANISH KUMAR GUPTA
लेखक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट एवं स्वतंत्र पत्रकार