सर्वोच्च न्यायालय गुरुवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण S.I.R को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सासंद महुआ मोइत्रा, गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने याचिकाएं दायर की हैं.
कोर्ट से की गई ईसी को नोटिस देने की मांग
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, “गुरुवार को याचिका पेश की जाए. याचिका की अग्रिम प्रति प्रतिवादी [ईसीआई] को दी जाए.” वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि यह वर्तमान का मामला है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए और ईसीआई को नोटिस जारी किया जाना चाहिए. वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने सुझाव का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि प्रतिवादी को गुरुवार को बुलाने के बजाय, नोटिस जारी किया जाना चाहिए ताकि उस दिन बिना और समय बर्बाद किए संशोधन पर रोक लगाई जा सके. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि “इस तरह की बहुत ही संक्षिप्त समय-सीमा निर्धारित की गई है, जिसमें मतगणना पहचान पत्र के लिए फार्म जमा करने के लिए केवल एक महीने का समय दिया गया है, जिसकी समय-सीमा इस महीने के अंत में समाप्त हो जाएगी.”
चुनाव अधिसूचित नहीं किए गए हैं, हम देखेंगे-पीठ
वहीं पीछ ने इस मामले पर सुनवाई करने की मनजूरी देते हुए कहा कि, इस टाइम लाइन में एमएस गिल के फैसले जैसी पवित्रता नहीं है. आपको बता दें, एमएस गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) और लक्ष्मी चरण सेन बनाम एकेएम हसन उज्जमान (1985) जैसे मामलों में, अदालत ने इस बात पर जोर दिया था कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए चुनाव शुरू होने के बाद उन्हें निर्बाध रूप से चलने दिया जाना चाहिए.
इसलिए पीठ ने कहा कि चुनाव अधिसूचित नहीं किए गए हैं. “आप अटॉर्नी जनरल के कार्यालय को भी इसकी एक प्रति दे सकते हैं. हम देखेंगे.”
S.I.R के खिलाफ याचिकाओं में क्या कहा गया है
बिहार में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण S.I.R को चुनौती देनी वाली याचिकाओं में ईसीआई द्वारा इस अभ्यास को करने के तरीके और समय के बारे में चिंता व्यक्त की गई. चुनाव आयोग ने इसमें मतदाताओं को 11 दस्तावेजों के आधार पर अपनी नागरिकता का प्रमाण देने के लिए 30 दिन का समय दिया है. जिसमें आधार, ईसीआई फोटो पहचान पत्र या राशन कार्ड जैसे आसानी से उपलब्ध दस्तावेज को शामिल नहीं किया गया हैं.
वहीं आरजेडी सासंद मनोज झा की याचिका में संशोधन को “संस्थागत रूप से मताधिकार से वंचित करने” का एक साधन बताया गया है. जो राज्य में मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी समुदायों को असंगत रूप से लक्षित करेगा.
आपको बता दें बिहार में इस साल नवंबर से पहले चुनाव होने हैं, जब विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.