Thursday, October 10, 2024

Tibet Glacier: तिब्बत के ग्लेशियर से निकली 1500 हज़ार साल पुरानी रहस्यमयी वायरस,धरती पर मंडरा रहा खतरा

ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है. पृथ्वी के तापमान के बढ़ने से जहां क्लाइमेट चेंज हो रहा है तो वहीं दुनिया के कोने कोने में तेज़ी से ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं. ग्लेशियर के पिघलने से अभी तक सिर्फ बाढ़ और सुनामी जैसे खतरों की बात कही जा रही थी. लेकिन अब जो खबर सामने आई है उसे जानकर हर कोई सकते में है.

Tibet Glacier
Tibet Glacier

खबर तिब्बत से है, जहां कई ऐसे ग्लेशियर हैं, जो तेजी से पिघल रहे हैं. लेकिन पिघलते ग्लेसियर से कुछ ऐसा निकला है जो एक झटके में पूरी दुनिया को ख़त्म कर सकता है. तिब्बती ग्लेशियर में 15 हजार साल पहले दफन हुए कुछ बेहद खतरनाक और प्राचीन वायरस मिले हैं . अब खबर आ रही है ये वायरस भारत, चीन और म्यांमार जैसे देशों के लिए खतरा हो सकता है. सबसे डरावनी बात ये है कि इसके बारे में बताया जा रहा है कि इस प्राचीन वायरस पर किसी चीज का असर नहीं होता है. पूरी दुनिया में पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहे हैं. जिनसे प्राचीन जीव, वायरस, बैक्टीरिया जैसी चीजें निकल रही हैं.

Tibet Glacier:  42 हजार साल पुराना राउडवॉर्म हैं

ये किसी हॉरर फिल्म का सीन नहीं सच्चाई है. ग्लेशियरों और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वूली राइनो से लेकर 40 हजार साल पुराने विशालकाय भेड़िये और 7.50 लाख साल पुराने बैक्टीरिया के निकलने का पता चला है. इनमें से कई ज़िंदा है. सदियों पुराने मॉस में वैज्ञानिकों ने लैब में वापस जीवन डाल दिया. ये बेहद छोटे 42 हजार साल पुराना राउडवॉर्म हैं.

Tibetan Glaciers
Tibetan Glaciers

आइस कैप के पास से 15 हजार साल पुराना वायरस मिला 

हाल ही में वैज्ञानिकों ने तिब्बत के पठारों पर मौजूद गुलिया आइस कैप के पास से 15 हजार साल पुराना वायरस खोजा है. वो भी एक प्रजाति के नहीं बल्कि कई प्रजातियों के दर्जनों की संख्या में. ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट झी-पिंग झॉन्ग ने कहा कि ये इंसानों के लिए किसी भी समय खतरा पैदा कर सकते हैं. ये वायरस समुद्री सतह से 22 हजार फीट की ऊंचाई पर चीन में तिब्बत के पिघलते ग्लेशियर के नीचे से मिले हैं.

Tibet Glacier: वैज्ञानिकों ने 33 वायरस खोजे

वैज्ञानिकों ने ऐसे 33 वायरस खोजे हैं  जिसमें से 28 के बारे में पूरी दुनिया को कुछ नहीं पता है. ये इससे पहले कभी देखे नहीं गए हैं. यानी अगर इनसे कोई  संक्रमण होता है तो फिलहाल इसका कोई इलाज नहीं हो सकता. ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के दूसरे साइंटिस्ट मैथ्यू सुलिवन ने कहा कि इन वायरसों ने चरम स्थितियों में अपनी जिंदगी बिताई है. ये अब किसी भी तरह के तापमान या मौसम को झेल सकते हैं.

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ग्लेशियरों में बैक्टीरिया की 1000 नई प्रजातियां मिली हैं

पिछले साल तिब्बत के ग्लेशियरों में बैक्टीरिया की 1000 नई प्रजातियां मिली हैं. इनमें से सैकड़ों के बारे में वैज्ञानिकों को कुछ भी नहीं पता. जलवायु परिवर्तन की वजह से ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. ये पिघले तो इनका पानी बैक्टीरिया के साथ चीन और भारत की नदियों में मिलेगा. जिसे पीकर लोग नई बीमारियों से संक्रमित हो सकते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठारों पर मौजूद 21 ग्लेशियरों के सैंपल जमा किए थे. ये सैंपल 2016 से 2020 के बीच जुटाए गए थे. इनमें 968 प्रजातियों के बैक्टीरिया मिले. जिसमें ने 82% बैक्टीरिया एकदम नए हैं. जिनके बारे में दुनियाभर के वैज्ञानिकों को कोई जानकारी नहीं है.

बर्फीली चादरें धरती के 10% सतह को कवर करते हैं

बर्फीली चादरें धरती के 10% सतह को कवर करते हैं. पृथ्वी पर सबसे ज्यादा साफ पानी का स्रोत इन्ही के पास है. दिक्कत ये हैं कि हजारों साल से जमा इन ग्लेशियरों के नीचे क्या है. कैसा वातावरण है? कैसे जीव या सूक्ष्मजीव रहते हैं. ये किसी को पता नहीं होता. तिब्बत को ‘वाटर टॉवर ऑफ एशिया’ भी कहते हैं. यहां से एशिया की कुछ बेहद बड़ी और ताकतवर नदियां निकलती हैं. अब अगर यहाँ से इन नदियों में मिलकर कोई बीमारी आती है तो वो विनाशकारी हो सकती है. इसलिए वक्त है ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ कोई सख्त कदम उठायें वरना आने वाला जीवन आसान नहीं होगा

 

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