वॉशिंगटन। आज से तकरीबन 63 साल पहले ऐसा मौका आया था, जब दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी हो गई थी। उस वक्त पूर्व सोवियत संघ के एक दूरदर्शी नेवी ऑफिसर ने संभावित थर्ड वर्ल्ड वॉर को अपनी समझदारी से किसी तरह टाल दिया था। उस सोवियत ऑफिसर का नाम वासिली अर्खिपोव था। यह घटना साल 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट से जुड़ी है।
दरअसल, साल 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान एक सोवियत नौसेना अधिकारी वासिली अर्खिपोव (1926–1998) ने ऐसा फैसला लिया, जिसने दुनिया को संभावित तीसरे विश्व युद्ध से बचा लिया था। अमेरिका के सुरक्षा बल उस समय सोवियत पनडुब्बी बी-59 को सतह पर लाने के लिए लगातार अटैक कर रहे थे। सोवियत पनडुब्बी अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में थी और कई दिनों से मॉस्को से संपर्क टूट चुका था। इस कारण पनडुब्बी के क्रू मेंबर्स (चालक दल) को यह संदेह हो गया था कि शायद विश्व युद्ध पहले ही शुरू हो चुका है।
तनाव लगातार बढ़ रहा था। पनडुब्बी की बैटरियां लगभग खत्म हो चुकी थीं, एयर कंडीशनिंग बंद थी और अंदर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया था। जहाज में ऑक्सीजन की भारी कमी थी। कई नाविक कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से हुई घुटन के चलते बेहोश हो गए थे। इस माहौल में पनडुब्बी के कप्तान ने परमाणु टॉरपीडो दागने का निर्णय ले लिया। सामान्य परिस्थितियों में हमले की अनुमति केवल कप्तान और राजनीतिक अधिकारी की मंजूरी से मिल जाती थी, लेकिन संयोग से उस यात्रा पर फ्लोटिला कमांडर वासिली अर्खिपोव भी मौजूद थे। उनके उच्च पद के कारण इस बार तीन अधिकारियों की सहमति जरूरी थी।
निर्णायक क्षण पर अर्खिपोव ने हमले का विरोध किया। कप्तान और राजनीतिक अधिकारी के साथ लंबी बहस के बाद उन्होंने उन्हें मनाया कि पनडुब्बी को सतह पर लाया जाए और मॉस्को से संपर्क स्थापित किया जाए। इस दृढ़ रुख ने परमाणु हमले को रोका और पूरी दुनिया को एक विनाशकारी परमाणु युद्ध से बचा लिया। इतिहासकार और विशेषज्ञ आज भी इस घटना को उस क्षण के रूप में याद करते हैं, जब एक अकेले अधिकारी का विवेक और साहस मानव सभ्यता को महाविनाश से बचा गया। यदि यह अटैक हुआ होता तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा गहरा जाता।
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