Monday, July 7, 2025

ढाका में सैनिकों की तैनाती में तेजी से वृद्धि, क्या सरकार का तख्तापलट करने की तैयारी?

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बांग्‍लादेश में सेना ने शुक्रवार को 9वीं डिवीजन के सैनिकों को बड़ी संख्या में बख्तरबंद वाहनों में ढाका में इकट्ठा होने का आदेश जारी किया है. हर ब्रिगेड से 100 सैनिक तैनात हैं. बांग्लादेश सेना और छात्रों के बीच तनाव के बीच यह कदम उठाया गया है. ऐसे में इस बात के कयास काफी ज्‍यादा है कि आर्मी चीफ सभी गलतियों का ठीकरा मोहम्‍मद यूनुस पर फोड़ते हुए देश में अपनी स्थिति फिर से मजबूत कर सकते हैं.

शेख हसीना सरकार का तख्‍तापलट होने के बाद बांग्‍लादेश में नई सरकार बनने तक मोहम्‍मद यूनुस को अंतरिम सरकार का चीफ बनाया गया. माना जाने लगा कि यूनुस बांग्‍लादेश की डूबती नैया को पार लगाएंगे. लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान ना सिर्फ भारत से रिश्‍ते खराब हुए बल्कि अमेरिका के साथ भी स्थितियां ज्‍यादा दिन अच्‍छी नहीं रह पाई. बांग्लादेश की सुरक्षा व्यवस्था के सूत्रों ने बताया कि सेना को देश पर अपनी पकड़ मजबूत करने में कुछ और दिन लगेंगे. जिसके चलते एहतियातन कदम उठाए गए हैं.

क्‍यों घबराई है बांग्‍लादेशी सेना?
बांग्लादेश सेना की 10 डिवीजन हैं. 9वीं इन्फैंट्री डिवीजन सावर में स्थित है, जबकि घाटाइल में फॉर्मेशन 19वीं इन्फैंट्री डिवीजन तैनात है. बांग्‍लादेश की सेना के डर की वजह कई हैं. ग्रामीण विकास और सहकारिता मंत्रालय के सलाहकार आसिफ महमूद शाजिब भुइयां का हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि सेना प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान की इच्‍छा नहीं थी, कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम प्राधिकरण का चीफ बनाया जाए. लेकिन उन्‍होंने सहमति दी. इससे पहले एक छात्र नेता हसनात अब्दुल्ला ने 11 मार्च को जनरल ज़मान के साथ एक गुप्त बैठक के बाद सार्वजनिक रूप से सेना के खिलाफ आंदोलन शुरू करने की धमकी दी थी. ऐसे में आर्मी चीफ सरकार से नाराज हैं.

छात्र आंदोलन की आशंका से सेना में खौंफ
बांग्‍लादेश की सेना को भुइयां के खुलासे और अब्दुल्ला की फेसबुक पोस्ट के बाद नया छात्र आंदोलन खड़ा होने का डर सता रहा है. यह अभी स्पष्ट नहीं है कि सेना कठोर कदम उठाएगी या नहीं. यूनुस 26 मार्च को तीन दिवसीय चीन यात्रा पर जाने वाले हैं. माना जा रहा है कि कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर यूनुस अपनी चीन यात्रा रद्द कर सकते हैं. बांग्लादेश में अधिकांश लोग 11 मार्च की बैठक के विवरण से हैरान थे, जो सेना प्रमुख को खराब रोशनी में दिखाने और एक असफल आंदोलन को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में सार्वजनिक किए गए थे.

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