बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद फरवरी 2026 में आम चुनाव प्रस्तावित हैं. इन चुनाव को लेकर चुनावी हलचल तेज है. वहीं, चुनाव आयोग ने कई चुनाव चिन्ह की एक लिस्ट जारी की है. इस लिस्ट में 115 चुनाव चिन्ह रिजर्व किए गए हैं. साथ ही वॉटर लिली (कमल) और शेख हसीना की पार्टी का चुनाव चिन्ह नौका (बोट) को अपनी सूची से हटा दिया है.
इसी चुनाव के बाद अब बांग्लादेश में नई सरकार का गठन होगा. इससे पहले बांग्लादेश में आखिरी बार साल 2021 में आम चुनाव कराए गए थे, जिसमें शेख हसीना की पार्टी को एकतरफा जीत मिली थी. अब शेख हसीना के तख्तापलट होने के बाद देश में चुनाव होने वाले हैं.
115 चुनाव चिन्ह किए गए तय
निर्वाचन आयोग (EC) ने आगामी 13वें राष्ट्रीय संसदीय चुनाव के लिए कुल 115 चुनावी चिन्ह पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित रखे हैं. इस सूची में पारंपरिक नौका और शापला/जल कुमुदिनी (Water Lily) प्रतीक शामिल नहीं हैं.
देश के पहले संसदीय चुनावों में कुल 69 चुनावी प्रतीक उपलब्ध थे. फिलहाल, चुनाव आयोग के साथ 50 दल रजिस्टर हैं, जबकि पांच दलों का पंजीकरण रद्द या निलंबित किया जा चुका है.
शापला (कमल) के चिन्ह को लेकर बवाल
नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) लगातार शापला प्रतीक की मांग कर रही थी, लेकिन आयोग ने इसे लिस्ट में शामिल नहीं किया. आयोग ने साफ किया कि शापला (कमल) आधिकारिक सूची का हिस्सा नहीं है और पार्टी को वैकल्पिक प्रतीक चुनने का निर्देश दिया.
नौका को क्यों किया बाहर
शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग का चुनाव चिन्ह परंपरागत रूप से नौका रहा है. इसी के चलते आवामी लीग की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगने और रजिस्ट्रेशन निलंबित होने की वजह से नौका प्रतीक को सूची से हटा दिया गया है.
बुधवार को जारी अधिसूचना में कहा गया कि यह कदम जनप्रतिनिधित्व आदेश, 1972 (Representation of the People Order, 1972) की धारा 94 के तहत, निर्वाचन आचार नियमावली, 2008 में संशोधन करते हुए उठाया गया है. नई सूची में दरीपल्ला (तराजू), जो पहले जमात-ए-इस्लामी का चुनाव चिह्न था उसको बहाल किया गया है. निर्वाचन आयोग ने पहले सूची में 46 नए प्रतीक जोड़कर कुल संख्या 115 तक बढ़ा दी थी.
कई लोग कर रहे विरोध
चुनाव चिन्ह को लेकर देश में विरोध भी दिखाई दे रहा है. नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) के मुख्य आयोजक (उत्तरी क्षेत्र) सरजिस आलम ने चुनाव आयोग के पार्टी को “शापला” (कमल) चुनाव चिन्ह आवंटित न करने के फैसले का विरोध किया है.
सरजिस ने तर्क दिया कि जिस दिन एनसीपी ने पंजीकरण के लिए आवेदन किया था, उसी दिन पार्टी ने स्पष्ट रूप से “शापला” चिन्ह के लिए अनुरोध किया था. उन्होंने लिखा, “शापला को सूची में शामिल करने की ज़िम्मेदारी किसकी थी? क्या वे इतने समय से चुनाव आयोग में बैठकर तमाशा देख रहे थे? या वो एक स्वतंत्र संस्था के रूप में काम करने के बजाय किसी अन्य संस्था, पार्टी या एजेंसी के निर्देशों पर काम कर रहे थे?”
उन्होंने कहा, “चूंकि कोई कानूनी बाधा नहीं है, इसलिए एनसीपी का चिन्ह शापला ही होना चाहिए. इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने आगे कहा, वरना, हम भी देखेंगे कि चुनाव कैसे होते हैं और कौन सत्ता में आने का सपना देखता है.