नई दिल्ली : रूस यूक्रेन की लड़ाई के लगभग 20 महीने हो गये है लेकिन दोनों देशों के बीच चल रही लड़ाई किसी अंजाम तक पहुंचती दिखाई नहीं दे रही है. इस बीच रूस की संसद ने उस अंतराष्ट्रीय संधि से बाहर निकलने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई है जिसके अंतर्गत देश किसी तरह के परमाणु हथियार के परीक्षण करने और परमाणु हथियारों का प्रयोग ना करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं.
CTBT से मुक्त होना चाहता है रुस
हाल ही में रूस की संसद में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अंतरराष्ट्रीय संधि CTBT यानी कांप्रिहेंसिव न्यूकिल्यर टेस्टबैन ट्रीटी (The Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty ) से बाहर निकलने का एक प्रस्ताव पास किया है . इस संधि के मुताबिक जो देश इस संधि के अंतर्गत अपनी सहमति देते हैं वे इस बात के लिए प्रतिबद्ध होते है कि वो ना तो किसी तरह के परमाणु परीक्षण करेंगे और ना ही किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियारों का प्रयोग करेंगे. ये संधि किसी भी तरह के परमाणु परिक्षण और प्रयोग का निशेष करता है.
मौजूदा हालात में CTBT से रूस का निकलना कितना खतरनाक है
वर्तमान परिदृश्य में रूस का इस संधि से निकलने का फैसला वैश्विक परिदृश्य मे बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. एक तरफ रूस यूक्रेन युद्ध, दूसरी तरफ इजराइल हमास युद्ध , तीसरे विश्व युद्ध की आहट के बीच रुस के इस कदम पर पूरी दुनिया की निगाह टिकी है.
आपको बता दें कि रुस की संसद ने पिछले सप्ताह ही इस संधि से बाहर निकलने के प्रस्ताव को पास कर दिया था अब केवल राष्ट्रपति पुतिन का हस्ताक्षर होना बाकी है. राष्ट्रपति पुतिन ये कह चुके हैं कि ‘ मैं परमाणु परीक्षण शुरु करने के बारे में बातें सुन रहा हूं, अभी मैं ये बताने के लिए तैयार नहीं हूं कि हमें वास्तव में अभी परमाणु परीक्षण के आवश्यकता है या नहीं.’
अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने 6 अक्तूबर को संधि से निकलने के बारे में बात कही थी. लेकिन ये स्पष्ट नहीं किया था कि इस निर्णय के बाद रूस परमाणु हथियारों का परीक्षण फिर से शुरु करेगा या नहीं.
क्या है CTBT?
आपको बता दें कि साल 1945 से लेकर 1996 तक दुनिया भर में करीब 2 हजार परमाणु परीक्षण हुए,इनमें से ज्यादातर करीब 90 प्रतिशत परीक्षण अमेरिका और सेवियत संघ (तत्कालीन) ने किए. हलांकि 196 से पहले भी कुछ अंतरराष्ट्रीय संधियों थी लेकिन इसका कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं था. फिर 1996 में यूनाइटेड नेशन में CTBT संधि बनाई गई, जिसपर हस्ताक्षर करने वाले हर देश के लिए इसके नियमों का मानना जरूरी है. रूस ने भी इस संधि पर हस्ताक्षर किया है.
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