सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे उत्पाद नीति घोटाला मामले और उससे जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आम आदमी पार्टी नेता मनीष सिसौदिया की जमानत याचिका पर 14 जुलाई को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है.
पत्नी की बीमारी के कारण जल्द सुनवाई करने की अपील की थी
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ इस मामले पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गई, जब दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने अदालत से इस आधार पर सुनवाई करने का आग्रह किया कि उनकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं.
पीठ ने कहा कि हालांकि मामला 17 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, लेकिन वह इस पर 14 जुलाई को सुनवाई करेगी.
ईडी ने पिछले हफ्ते जब्त की थी संपत्ति
पिछले हफ्ते, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग में पूर्व उपमुख्यमंत्री की 11.49 लाख रुपये की बैंक जमा राशि के अलावा गिरफ्तार आप नेता मनीष सिसौदिया और उनकी पत्नी की दो अचल संपत्तियों को जब्त कर लिया था.
जांच एजेंसी ने इस मामले में जांच के तहत सिसौदिया दंपति और कुछ अन्य आरोपियों की 52.24 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क करने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत एक अंतिम आदेश भी जारी किया.
51 साल के सिसौदिया को एजेंसी ने इस साल मार्च में गिरफ्तार किया था.
सिसौदिया पर है कौन से मामले दर्ज
बीते गुरुवार को सिसोदिया ने इन मामलों में अपनी जमानत याचिकाएं खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के दो आदेशों को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने वाले कई विभागों में से, सिसौदिया के पास उत्पाद विभाग भी था, उन्हें “घोटाले” में उनकी कथित भूमिका के लिए पहली बार 26 फरवरी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था, और तब से वह हिरासत में हैं.
उन्होंने 28 फरवरी को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था.
हाईकोर्ट ने ठुकरा दी थी जमानत याचिका
हाईकोर्ट ने 30 मई को सीबीआई के जांच की जा रही उत्पाद नीति घोटाला मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उप मुख्यमंत्री और उत्पाद शुल्क मंत्री होने के नाते, वह एक “हाई-प्रोफाइल” व्यक्ति हैं जो गवाहों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.
जबकि 3 जुलाई को, हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उत्पाद शुल्क नीति में कथित अनियमितताओं से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि कोर्ट का मानना था कि उनके खिलाफ आरोप “बहुत गंभीर प्रकृति” के है.
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